नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय का दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म में इस समय अराजक तत्वों का बोलबाला है। ये अराजक तत्व पत्रकारिता विभाग में घुसकर छात्रों से मारपीट कर रहे हैं। पिछले तीन दिनों में ये गुंडे परिसर में घुसकर दो बार छात्रों पर हमला कर चुके हैं। लेकिन विभाग के डायरेक्टर और विश्वविद्यालय प्रशासन मौन है। अभी तक डायरेक्टर की तरफ से न तो कोई एफआईआर दर्ज कराई गई और न ही छात्रों की सुरक्षा का कोई इंतजाम किया गया।
जानकारी के मुताबिक, छात्रों के साथ मारपीट की पहली घटना 31 दिसंबर की है और दूसरी बार आज यानि 2 फरवरी को फिर एक बार छात्रों पर हमला किया गया। बाहर से आए गुंडा तत्वों ने पत्रकारिता विभाग में पढ़ने वाले बीजे द्वितीय वर्ष के छात्र हिमांशु कुमार और अन्य छात्रों के साथ जमकर मारपीट की। छात्रों का कहना है कि कॉलेज परिसर में चाकू, बेसबॉल बैट और हथियार लेकर आए 10-15 गुंडों ने छात्रों पर हमला कर दिया। छात्रों का कहना है कि सबसे आश्चर्य की बात यह है कि मारपीट और घंटों उत्पात करने के बाद ये गुंडे आराम से कॉलेज परिसर से बाहर निकल गए। जबकि विभाग में सुरक्षा के लिए गार्ड मौजूद हैं।
2 फरवरी को एक बार फिर गुंडों ने पत्रकारिता विभाग में घुसकर छात्रों को मारा-पीटा और धमकाया। ये गुंडे बेरोक-टोक पत्रकारिता विभाग में घुसकर बीजे द्वितीय वर्ष के छात्रों को निशाना बना रहे हैं। बाहर से आकर गुंडा तत्व जब-तब छात्रों को मारपीट कर चले जाते हैं और विभाग के डॉयरेक्ट जेपी दुबे से जब विभाग में बाहरी तत्वों को रोकने की मांग की गयी तो वह उल्टे छात्रों को ही निलंबित करने की धमकी दे रहे हैं।

ऐसे मे सवाल उठता है कि परिसर में बिना किसी वजह के छात्रों को पीटने का सिलसिला क्यों चल रहा है? छात्रों का कहना है कि इसके पीछे छात्रों का एक आंदोलन है। दरअसल, 9 नवंबर को छात्रो ने फीस और स्कॉलरशिप के मुद्दे को उठाया। विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों की बात को मान लिया। लेकिन इस घटना के बाद डायरेक्टर जेपी दुबे चिढ़ गए।

छात्रों ने जब विभाग में बाहरी तत्वों के घुसने और मारपीट की घटना से डायरेक्टर और प्रशासन को अवगत कराया तो उन्होंने किसी भी तरह की सुरक्षा से इनकार कर दिया। पीड़ित छात्रों के मुताबिक डायरेक्टर जेपी दुबे ने कहा कि हम पढ़ाने आते हैं, छात्रों की सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी नहीं है। कुछ छात्रों का कहना है कि यह सब इसलिए हुआ क्योंकि कुछ जूनियर छात्रों ने रैगिंग का विरोध किया और वरिष्ठों की बात को नहीं माना।

फिलहाल, छात्रों के साथ मार-पीट करने के पीछे की वजह चाहे जो हो, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन और डायरेक्टर की उदासीनता मामले को गंभीर मोड़ तक ले जा सकती है।