राहुल गांधी नहीं, देश के लोकतंत्र पर हमला है: दीपंकर भट्टाचार्य 

राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द करने का बाद विपक्ष एकजुट हो गया है। सभी विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध किया है। राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द करने के खिलाफ माले ने भी पटना की सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन किया। इस दौरान माले ने कहा कि यह राहुल गांधी पर नहीं बल्कि देश के लोकतंत्र पर हमला है। माले ने यह भी कहा कि अडानी मामले में घिरी मोदी सरकार अब कोर्ट के जरिए विपक्ष की आवाज को दबाना चाहती है। माले महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिखकर विपक्षी दलों की व्यापक एकता की अपील की।

पटना के कारगिल चौक पर आयोजित प्रतिरोध सभा में माले के कई वरिष्ठ नेता, विधायक, कार्यकर्ता और नागरिक समुदाय के लोग शामिल हुए। प्रतिरोध सभा को भाकपा-माले पोलित ब्यूरो के सदस्य धीरेन्द्र झा, राजाराम सिंह, वरिष्ठ नेता केडी यादव, माले विधायक दल के नेता महबूब आलम समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने संबोधित किया। सभा में ऐपवा की शशि यादव, सरोज चौबे, जितेन्द्र कुमार, मुर्तजा अली सहित कई लोग मौजूद थे।

प्रतिरोध सभा में माले नेताओं ने कहा कि अडानी घोटाले में घिरी मोदी सरकार के दबाव में राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म की गई है। संसदीय परंपरा में यह पहली दफा है जब सत्ता पक्ष ही संसद नहीं चलने दे रहा है। उन्होंने कहा कि संसद में विपक्ष अडानी घोटाले की जेपीसी जांच की लगातार मांग उठा रहा है। अडानी को बचाने में लगी मोदी सरकार ने उल्टे राहुल गांधी की सदस्यता ही खत्म करवा दी। यह देश के लोकतंत्र का मजाक है।

नेताओं ने कहा कि 23 मार्च को कथित मोदी मानहानि मामले में राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन सजा को 30 दिनों तक सस्पेंड रखा गया था और राहुल गांधी को उच्चतर न्यायालय में अपील का अधिकार दिया गया था। कोर्ट की इस बात को खारिज करते हुए एक दिन बाद ही आनन-फानन में उनको लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया। इससे जाहिर होता है कि मोदी सरकार विपक्ष से कितनी डरी हुई है। यह भारत के लोकतंत्र के लिए एक काला अध्याय है।

सभा में कहा गया कि बीजेपी अपने राजनीतिक विरोधियों के दमन में न्यायालयों से लेकर ईडी-सीबीआई सबका दुरूपयोग कर रही है। दूसरी ओर, देश में महंगाई-बेरोजगारी अपने चरम पर है। लोगों में गुस्सा है। देश के लोकतंत्र और आम लोगों के जीवन पर जब-जब संकट आया है, बिहार की धरती से प्रतिरोध की आंधी उठ खड़ी हुई है। एक बार फिर बिहार, देश के इस निरंकुश-फासीवादी शासन मॉडल को शिकस्त देगा और देश में लोकतंत्र की पुनर्बहाली का रास्ता खोलेगा।

समय की मांग है कि इस निरंकुश आपातकाल के खिलाफ पूरा विपक्ष अपनी मजबूत एकजुटता दिखाए और साहस के साथ आगे बढ़े ताकि देश के लोकतंत्र पर मंडराते अब तक के सबसे गंभीर खतरे का सफलतापूर्वक सामना किया जा सके।

( प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित )

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