डीयू की छात्राओं को क्यों उतरना पड़ा आधी रात को सड़कों पर?

दिल्ली विश्वविद्यालय की 100 से अधिक छात्राओं ने अपने हॉस्टल और पीजी के प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए रविवार आधी रात को नॉर्थ कैंपस के आसपास सड़कों पर मार्च निकाला। डीयू पीजी या डॉस्टल से रात 9 बजे के बाद बाहर निकलने पर मनाही होती है। छात्राओं ने इसी रूल को तोड़ते हुए आधी रात को नारेबाजी की और सड़कों पर निकल आईं। सभी छात्राएं पूरे ऩॉर्थ कैंपस में घूमते हुए सुबह 3 बजे तक आर्ट्स फैकल्टी के बाहर जमा हो गईं।

मार्च की योजना स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने बनाई थी। एसएफआई ने कहा कि यह प्रदर्शन पूरी तरह से छात्राओं ने आयोजित किया था। जिससे वो खुलकर अपनी परेशानियों के बारे में बता सकें और रात में घूमने की आजादी फिर से पा सकें। उन्होंने कहा कि ‘देश के एक प्रगतिशील छात्र संगठन के रूप में, हम छात्राओं के रात्रि मार्च को डीयू में महिलाओं समानता के लिए संघर्ष के रूप में देखते हैं, और हमें उम्मीद है कि यह आयोजन ज्यादा से ज्यादा छात्राओं को हिंसा के खिलाफ बोलने के लिए प्रेरित करेगा।’

मार्च में शामिल एक प्रतिभागी ने कहा कि ‘महिलाओं को कर्फ्यू तोड़ते हुए और रात में घूमने के अपने अधिकार को दोबारा हासिल करते हुए देखना सुखद है। डीयू एक प्रगतिशील परिसर है लेकिन जब महिलाओं की बात आती है तो इसके कुछ अपने नियम हैं।’

पीजी द्वितीय वर्ष की छात्रा महिना ने कहा, ‘हमें स्वतंत्र रूप से घूमने के लिए अपने अधिकार को दोबारा हासिल करना होगा।’ उन्होंने कहा कि इतनी सारी छात्राओं का एक साथ आना और अपने हॉस्टल में बंद होने के अनुभवों को साझा करना बहुत अच्छा लग रहा है।

वहीं दिल्ली पुलिस ने सभा को 3 बजे तितर-बितर करने के लिए कहा। छात्राओं ने कहा कि चूंकि उन्होंने पहले ही कर्फ्यू तोड़ दिया था, इसलिए वे अपने-अपने हॉस्टल वापस नहीं जा सकती थीं। जिसके बाद पूरी सभा विजय नगर के सार्वजनिक पार्क में चली गई। जहां उन्होंने हाल की घटनाओं पर चर्चा की। जब कुछ युवकों ने सीमा लांघकर छात्रा कॉलेजों में घुसने की कोशिश की थी। छात्राएं सुबह होते ही अपने-अपने हॉस्टल चली गईं।

पिछले हफ्ते, आईपी कॉलेज में, कुछ युवकों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान जबरन घुसने की कोशिश थी। पिछले साल अक्टूबर में भी इसी तरह की घटना मिरांडा हाउस में विदाई समारोह के दौरान हुई थी। कार्यक्रम के आयोजकों में से एक छात्रा समा ने कहा कि, ‘नाइट मार्च के जरिये छात्राएं ये बताना चाहती हैं कि वे बिना किसी डर के जीना चाहती हैं और बिना किसी रोक-टोक के सार्वजनिक जगहों पर आने-जाने के अधिकार की मांग करती हैं।’

छात्राओं ने विश्वविद्यालय में नैतिक पुलिसिंग की संस्कृति पर भी चर्चा की। एक और प्रतिभागी ने कहा कि कैसे जब वे उत्पीड़न की घटना की रिपोर्ट करने के लिए पुलिस के पास जाते हैं, तो उनसे सवाल पूछे जाते हैं कि उन्होंने क्या पहना था, और वे रात में बाहर क्यों थे और क्या उनके माता-पिता उनके नाइट-आउट के बारे में जानते थे।
एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘हालांकि हमने मार्च के लिए अनुमति नहीं दी थी, लेकिन हमने सुरक्षा प्रदान की थी।‘ पुलिस ने कहा कि महिलाओं पुलिस कर्मियों सहित 15-20 से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था।

(कुमुद प्रसाद जनचौक में कॉपी एडिटर हैं।)

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