फाइनेंशियल टाइम्स ने खबर हटाने की अडानी की मांग को ठुकराया, कहा- हम अपनी रिपोर्ट पर कायम हैं

वित्तीय मामलों पर दुनिया का सबसे विश्वसनीय और प्रतिष्ठित अखबार फाइनेंसियल टाइम्स ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अडानी समूह के वित्तीय अनियमितताओं को लेकर अपने यहां जारी लेख को वापस लेने की अडानी समूह की मांग को ठुकरा दिया है। एफटी प्रवक्ता का कहना है कि “लेख त्रुटिहीन है और इसे बेहद सावधानी पूर्वक तैयार किया गया है, हम अपनी रिपोर्टिंग पर कायम हैं।”

कोलकाता स्थित ‘द टेलीग्राफ’ से अपनी बातचीत में फाइनेंसियल टाइम्स के प्रवक्ता ने कहा है कि “यह लेख सटीक है और इसे मनोयोग से तैयार किया गया है।” बता दें कि एफटी के इस लेख के आधार पर ही राहुल गांधी के द्वारा अडानी समूह के ऊपर 20,000 करोड़ रूपये कहां से आये, के बारे में बार-बार सवाल खड़े किये जा रहे हैं।

यह सवाल अडानी ही नहीं बल्कि मोदी सरकार तक को इतना बैचेन कर गया कि राहुल गांधी को खामोश करने के लिए आनन-फानन में स्थगित किये जा चुके मुकदमे की दुबारा सुनवाई हुई और देश की सबसे निचली अदालत में सजा मुकर्रर हो उससे पहले ही राहुल गांधी की संसद सदस्यता ही नहीं वरन उनका सरकारी आवास भी उनसे खाली करा लिया गया है।

गौतम अडानी समूह के द्वारा इस रिपोर्ट को मिथ्या प्रचार और अडानी समूह व अडानी परिवार को इरादतन सबसे बदतरीन सूरत में चित्रित करने वाला बताकर इसे हटाने की मांग की गई थी लेकिन लंदन स्थित इस बिजनेस समाचार पत्र ने इस मांग को सिरे से नकार दिया है।

फाइनेंशियल टाइम्स में रिपोर्ट 22 मार्च, 2023 को प्रकाशित हुई थी जिसे अभी भी एफटी वेबसाइट पर ऑनलाइन पढ़ा जा सकता है। अडानी समूह की ओर से 10 अप्रैल, 2023 को एफटी को लिखे एक पत्र में इस स्टोरी को हटाने की मांग की गई।

उक्त रिपोर्ट में कहा गया था कि “हाल के वर्षों में गौतम अडानी के समूह में सभी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का लगभग आधा हिस्सा उनके परिवार से जुड़ी ऑफशोर संस्थाओं से आया है, जो इस भारतीय टाइकून के व्यापारिक साम्राज्य के वित्तपोषण, जिसकी जांच बेहद कठिन है, में वित्त के प्रवाह की भूमिका को प्रमुखता से उजागर करता है।”

भारत में एफडीआई के जरिये धन के प्रवाह के आंकड़ों पर फाइनेंसियल टाइम्स के विश्लेषण से पता चलता है कि अडानी से जुड़ी ऑफशोर कंपनियों के द्वारा भारतीय कंपनियों में 2017 से 2022 के बीच में कम से कम 2.6 अरब डॉलर का निवेश किया गया, जो कि इस अवधि के दौरान भारत को प्राप्त कुल 5.7 अरब डॉलर की एफडीआई का 45.4% से अधिक है। 

“इन आंकड़ों से पता चलता है कि कैसे इस प्रकार के गैर-पारदर्शी फंड की मदद से अडानी को अपने विशालकाय समूह का निर्माण करने में मदद मिली, और इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास के एजेंडे के साथ खुद को जोड़ते हुए अडानी ने ट्रेडिंग और प्लास्टिक क्षेत्र से खुद को एक ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर महाबली’ में विस्तारित कर लिया। ऐसा अनुमान है कि फण्ड का यह प्रवाह अडानी समूह की कंपनियों में और भी होने की संभावना है, क्योंकि ‘एफडीआई’ के आंकड़ों में विदेशी निवेश का कुछ ही हिस्सा समाहित हो पाता है।”

अपनी कई रिपोर्टों के माध्यम से एफटी ने अडानी समूह पर लगातार अपनी नजर बनाए रखी है। एक रिपोर्ट के अनुसार, “सितंबर 2022 तक भारत में एफडीआई के रूप में धन को प्राप्त करने के मामले में अडानी समूह सबसे अव्वल रहा, जिसे देश में कुल इनफ्लो का 6% प्राप्त हुआ था। इस 12 माह की अवधि के दौरान 2.5 अरब डॉलर की रकम समूह को प्राप्त हुई, जिसमें 52.60 करोड़ डॉलर अडानी परिवार से जुड़ी कंपनियों से आये, जबकि बाकी की 2 अरब डॉलर की धनराशि अबू धाबी की एक ‘इंटरनेशनल होल्डिंग’ कंपनी से हासिल हुए थे।

इन ऑफशोर शेल कंपनियों के द्वारा एफडीआई की आपूर्ति का अब खुलासा हो गया है, और इनमें से अधिकांश कंपनियां अडानी की ‘प्रमोटर ग्रुप’ से संबद्ध हैं, जिसका अर्थ है कि ये सभी अडानी या उनके नजदीकी परिवार के सदस्य से संबद्ध हैं।

इस लेख पर अडानी समूह की प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार की थी। एफटी को लिखे अपने पत्र में, अडानी समूह ने कहा कि “हम आपसे अपनी वेबसाइट से इस स्टोरी को तुरंत हटाने की मांग करते हैं। इस स्टोरी ने मार्केट में और अन्य मीडिया समूहों के बीच में गलतफहमी पैदा कर दी है। और इसके चलते यह एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। परिणाम स्वरुप हम इस जानकारी को सार्वजनिक रूप से साझा करने के लिए मजबूर हो गये हैं। यह अफसोसजनक है लेकिन आपके पत्रकारों के द्वारा सावधानी और वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण अपनाकर इस स्थिति से बचा जा सकता था।”

इसमें आगे कहा गया कि “आपके रिपोर्टर को दिया गया हमारा बयान, जिसमें फाइनेंशियल टाइम्स ने जिन सभी लेन-देनों के बारे में पूछताछ की, उन सभी का सार्वजनिक रूप से खुलासा किया गया था, वे सटीक हैं, जबकि आपकी स्टोरी यह दर्शाती है कि आपके रिपोर्टर ने अपने मनमुताबिक उन सार्वजनिक खुलासे को सार्थक तरीके से नहीं देखने को चुना है या यहां तक कि संबंधित मीडिया विज्ञप्तियों की भी (जिनमें वह भी शामिल है जिसे फाइनेंशियल टाइम्स ने उस समय कवर किया था) की अनदेखी की गई है।”

पत्र में दावा किया गया है कि “सारे तथ्य आसानी से उपलब्ध हैं और पारदर्शी हैं। इन्हें प्रासंगिक प्रतिभूति विनियामक फाइलिंग के जरिये हासिल किया जा सकता है, जो उस समय उपलब्ध कराये गये थे और यह सार्वजनिक रिकॉर्ड में है।”

अडानी समूह की ओर से एफटी को जवाब में कहा गया है कि यह प्रतिभूति कानूनों का पूरी तरह से अनुपालन करता है और प्रमोटर के स्वामित्व और वित्तपोषण के बारे में किसी भी जानकारी को छुपाता नहीं है। समूह ने आरोप लगाया कि एक भ्रामक कहानी के माध्यम से, फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट ने अडानी समूह की कंपनियों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है।

यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि एफडीआई डेटा मॉरीशस-आधारित कई फंडों से आने वाले प्रवाह को कैप्चर नहीं करता है, जो पूर्व में विवाद का कारण रहा है, क्योंकि भारत में पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा लेनदेन एक अलग ‘रिपोर्टिंग रिजीम’ के तहत आती हैं। 2021 में, मीडिया रिपोर्टों और भारतीय सांसदों ने अडानी समूह में विदेशी निवेशकों के धन के स्वामित्व को लेकर चिंता जाहिर की थी, इनमें अल्बुला इन्वेस्टमेंट फंड और क्रेस्टा फंड प्रमुख हैं, जिन्होंने अडानी समूह की कंपनियों में भारी निवेश किया था। भारत के ‘सिक्योरिटीज वॉचडॉग’ ने तब कहा था कि उस समय वह नियमों के अनुपालन के संबंध में अडानी की कुछ कंपनियों की जांच कर रहा था, लेकिन अभी तक कोई फैसलाकुन रिपोर्ट नहीं आ सकी है।

कैपिटल आईक्यू के मुताबिक कुछ संस्थाओं ने तब से अपनी होल्डिंग कम कर दी है। लेकिन इसी तरह की मॉरीशस-आधारित फंड कंपनियों ने अपने निवेश को जारी रखा हुआ है। जिसमें लंदन स्थित एलारा कैपिटल की परिसंपत्ति प्रबंधन शाखा भी शामिल है, जो 2021 के मध्य में ‘अडानी एंटरप्राइजेज’ में तीसरी सबसे बड़ी शेयरधारक थी।

इस प्रकार कह सकते हैं कि 20,000 करोड़ रूपये कहां से आये, यह सवाल अभी भी अनुत्तरित बना हुआ है। चूंकि विपक्ष की ओर से इसे सबसे बड़ा मुद्दा बनाया जा रहा है। और इस बार का बजट सत्र तक बिना किसी बहस के पारित हो गया। पिछले 9 वर्षों में मोदी-अडानी की नजदीकियों और तमाम विदेशी दौरों के साथ-साथ अडानी समूह को एक के बाद एक सौदे की मंजूरी की खबरें अब एक-एक कर आम भारतीय की भी चेतना में जड़ जमाने लगी है। इसी के चलते अडानी समूह की ओर से राहुल गांधी को सीधे जवाब न देकर एफटी को जवाबी पत्र लिखकर अख़बार से अपने लेख को वापस लेने की मांग की गई।

इस संबंध में कांग्रेस पार्टी के डाटा एनालिटिक्स प्रमुख प्रवीण चक्रवर्ती की ओर से चुटकी लेते हुए एक ट्वीट किया गया है जिसमें कहा गया है कि “अडानी: तुम्हारी बात गलत है अपनी रिपोर्ट हटाओ। एफटी: हमारी रिपोर्ट सटीक है, नहीं हटाएंगे। अडानी को असली पत्रकारिता का स्वाद चखने को मिल रहा है।
राहुल गांधी का 20,000 करोड़ रुपये किसके हैं, यह सवाल अभी तक अनुत्तरित बना हुआ है।”

यहां तक कि एनडीटीवी के मशहूर एंकर रवीश कुमार, जिन्होंने अडानी समूह के टेकओवर से पहले ही अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया था, को भी यूट्यूब चैनल पर एफटी की खबर दिखाने पर अडानी समूह द्वारा इसे हटाने की मांग की गई है। उक्त आशय की एक चिट्ठी रवीश कुमार को प्राप्त हुई है, ऐसा उन्होंने अपने हालिया यूट्यूब वीडियो में बताया है।

देखना है शह और मात के इस शतरंजी बिसात पर अब अडानी समूह की ओर से दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित समाचार समूह को कैसी चुनौती पेश की जाती है, क्योंकि फाइनेंसियल टाइम्स की प्रतिष्ठा हिंडनबर्ग की तुलना में कई हजार गुना है और विदेशी संस्थागत निवेशकों से लेकर अर्थतन्त्र पर उसकी साख का कोई तोड़ निकालना एक टेढ़ी खीर साबित हो सकता है, और इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

(रविंद्र पटवाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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