यूरोपीय संसद से मणिपुर पर प्रस्ताव पारित, कहा-धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करे भारत

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नई दिल्ली। मणिपुर के मसले पर यूरोपीय संसद ने प्रस्ताव पास किया है। संसद से पारित प्रस्ताव में भारत सरकार से मणिपुर में हिंसा रोकने और सभी अल्पसंख्यक तबकों और खास कर ईसाइयों की रक्षा के लिए हर तरह के जरूरी कदम उठाने की अपील की गयी है।

प्रस्ताव को पांच राजनीतिक समूहों द्वारा संसद में रखा गया था और सभी सदस्यों ने हाथ उठा कर उसका अनुमोदन किया। यह प्रस्ताव आधिकारिक दौरे पर गए पीएम मोदी के फ्रांस में उतरने के दौरान पारित किया गया।

इसके एक दिन पहले भारतीय विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने रिपोर्टरों से बात करते हुए इसे भारत का आंतरिक मामला बताया था। इसके साथ ही उन्होंने इस मसले पर प्रस्ताव पारित होने से पहले यूरोपीय सांसदों से संपर्क साधने की बात की तरफ इशारा किया था।

प्रस्ताव को संसद में पेश करने वाले पांच संसदीय धड़ों में लेफ्ट ग्रीन्स-यूरोपीय फ्री अलायंस, दि सेंटर राइट यूरोपियन पीपुल्स पार्टी (ईपीपी), दि सेंटर लेफ्ट प्रोग्रेसिव अलायंस ऑफ सोशलिस्ट्स एंड डेमोक्रैट्स (एस एंड डी), दि लिबरल रिन्यू ग्रुप एंड राइट-विंग यूरोपियन कंजरवेटिव एंड रिफॉर्मिस्ट (ईसीआऱ) समूह शामिल हैं। 705 सांसदों में ये तकरीबन 80 फीसदी की संख्या का निर्माण करते हैं।

प्रस्ताव में पिछले दो महीनों से मणिपुर में जारी हिंसा में 120 लोगों की मौतों और 50 हजार लोगों के विस्थापन, 1700 घरों के ध्वंस के साथ ही 250 चर्चों समेत ढेर सारे मंदिरों के जलाए जाने पर गहरी चिंता जाहिर की गयी है।

प्रस्ताव में भारत से कहा गया है कि “ईसाई समुदाय जैसे सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए मणिपुर में जारी जातीय और धार्मिक हिंसा तथा उसके और आगे बढ़ने से पहले उस पर तत्काल रोक लगाने के लिए हर तरह के जरूरी उपाय किए जाएं।”

इसके साथ ही राजनीतिक नेताओं से भी तनाव को कम करने और लोगों में फिर से भरोसा कायम करने के लिए भड़काऊ बयानों से बचने की अपील की गयी है। साथ ही यूरोपीय संसद के इस प्रस्ताव में कहा गया है कि जो लोग सत्ता के प्रति आलोचक हैं उनको अपराधी की तरह देखने की प्रवृत्ति पर रोक लगनी चाहिए।

प्रस्ताव में सुरक्षा बलों के पक्षपाती रवैये पर भी बात की गयी है। इसमें कहा गया है कि सुरक्षा बलों के पक्षपाती रवैये ने भी अधिकारियों के प्रति लोगों में अविश्वास पैदा कर दिया है। यूरोपीय सांसदों ने कहा है कि भारत और यूरोप के बीच स्वतंत्र व्यापार समझौतों के लिए जारी बातचीत में मानवाधिकार एक महत्वपूर्ण पहलू रहेगा।

बुधवार को प्रस्ताव पर बहस के दौरान सबसे बड़े समूह ईपीपी के स्वेन सिमोन ने कहा कि हम यहां से किसी पर अंगुली नहीं उठाना चाहते हैं। लेकिन इस प्रस्ताव के जरिये सबसे बड़ी आबादी वाले लोकतंत्र से यह अपील करते हैं कि वह धार्मिक और खास कर मणिपुर में ईसाइयों की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए संविधान में निर्धारित अपने कर्तव्यों के पालन करे।

ईसीआर समूह की तरफ से बोलते हुए बर्ट जन रूसेन ने कहा कि हमारा संयुक्त प्रस्ताव बिल्कुल साफ है- धार्मिक और जातीय हिंसा को खत्म करने, अपराधियों को दंडित करने और हिंदू चरमपंथ को खत्म करने के लिए अपने शासन के दायरे में भारत वह सब कुछ करे जो वह कर सकता है। इस मामले में लौह गारंटी के बगैर हम भारत के साथ किसी नये व्यापार के लिए बातचीत नहीं कर सकते हैं।

अंत में ईयू कमिश्नर मैरीड मैक्गिनीज ने सांसदों को बताया कि यूरोपीय यूनियन मणिपुर की स्थितियों पर बहुत नजदीक से नजर बनाए हुए है और मई में मणिपुर में शुरू हुई हिंसा के बाद बड़ी संख्या में लोगों की मौतों, ढेर सारे लोगों के घायल और विस्थापित होने से हम बहुत दुखी हैं। और इसको लेकर हमें गहरी पीड़ा है।

इसके साथ ही उन्होंने यहां तक कहा कि मणिपुर में विभिन्न समूहों के बीच शांति और विश्वास कायम करने की दिशा में मांग किए जाने पर हम भारत को सहयोग देने के लिए तैयार हैं। उन्होंने इस दौरान भारत सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदमों मसलन जांच के लिए एक कमीशन और एक शांति कमेटी की स्थापना का भी जिक्र किया। 

उन्होंने कहा कि हम आशा करते हैं कि इन उपायों का जल्द ही नतीजा निकलेगा जिससे हिंसा का यह दौर और समुदायों के बीच मौजूद भीषण अविश्वास खत्म हो जाए।

इस बात को चिन्हित करते हुए कि भारत और ईयू रणनीतिक सहयोगी हैं ईयू कमिश्नर ने कहा कि दोनों पक्ष दोनों क्षेत्रों में आने वाली मानवाधिकार चुनौतियों पर नियमित बात करते रहते हैं। और खासकर ह्यूमन राइट डायलॉग के तहत बिल्कुल खुली बातचीत होती है।

उन्होंने कहा कि हमारे रिश्ते आपसी विश्वास पर आधारित हैं। इसके साथ ही मानवाधिकारों में बढ़ोत्तरी और उनकी रक्षा तथा बुनियादी स्वतंत्रता हमारी मित्रता की धुरी हैं। 

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