नई दिल्ली। तृणमूल कांग्रेस ने शनिवार को मांग की है कि पार्टी सांसद महुआ मोइत्रा को सदन से निकाले जाने को लेकर लोकसभा में चर्चा की जाए। कैश-फॉर-क्वेरी मामले में आचार समिति ने महुआ मोइत्रा को सदन से निष्कासित करने की सिफारिश की थी।
संसद के शीतकालीन सत्र से पहले दिल्ली में एक सर्वदलीय बैठक आयोजित की गई जिसमें लोकसभा और राज्यसभा में तृणमूल संसदीय दल के नेता सुदीप बंद्योपाध्याय और डेरेक ओ ब्रायन ने यह मांग उठाई।
मोइत्रा के निष्कासन के लिए आचार समिति की सिफारिश को सत्र के पहले दिन सोमवार को सदन में पेश करने के लिए सूचीबद्ध किया गया है। संसद का शीतकालीन सत्र 4 दिसंबर से शुरु होकर 22 दिसंबर को खत्म हो जाएगा।
बंद्योपाध्याय और ओब्रायन ने आचार समिति की रिपोर्ट लीक होने के लिए सरकार पर सवाल उठाए और सर्वदलीय बैठक में कहा कि उन्होंने मीडिया में दावे देखे हैं कि तृणमूल सांसद को “जल्द ही निष्कासित किया जाने वाला है।”
भाजपा के लोकसभा सदस्य निशिकांत दुबे ने अधिवक्ता जय अनंत देहाद्राई के इस आरोप को स्पीकर ओम बिरला के पास भेजा था कि मोइत्रा ने संसद में प्रश्न पूछने के लिए कारोबारी दर्शन हीरानंदानी से रिश्वत ली थी।
जबकि मोइत्रा का कहना है कि सदन में अडानी ग्रुप की व्यवसायिक गतिविधियां और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी कथित निकटता के बारे में सवाल पूछने के कारण उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है।
टीएमसी की ओर से मोइत्रा को सदन से निकाले जाने पर चर्चा की मांग से ये साफ हो गया है कि पार्टी हर हाल में मोइत्रा के साथ खड़ी है। इससे पहले मोइत्रा पर लगे आरोपों पर टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी चुप रहीं, जिससे ऐसा लग रहा था कि पार्टी ने मोइत्रा को उनके हाल पर छोड़ दिया है। लेकिन 23 नवंबर को ममता बनर्जी ने अपनी चुप्पी तोड़ी और भाजपा पर संसद से “मोइत्रा के निष्कासन की योजना बनाने” का आरोप लगाकर मोइत्रा के लिए समर्थन का संकेत दिया और कहा कि इससे उनकी लोकप्रियता और चुनावी संभावनाएं और बढ़ेंगी।
शनिवार को टीएमसी के एक सूत्र ने कहा कि पार्टी मोइत्रा को संसद से बाहर निकालने की कोशिशों का विरोध करने के लिए हर संभव प्रयास करेगी। सूत्र ने कहा, “पार्टी इस मुद्दे पर लोकसभा में चर्चा चाहती है और ये बात सर्वदलीय बैठक के दौरान साफ शब्दों में बता दी गई है।”
बैठक में केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कांग्रेस सांसद जयराम रमेश, गौरव गोगोई और प्रमोद तिवारी, एनसीपी सदस्य फौजिया खान और आरएसपी सदस्य एन.के. प्रेमचंद्रन शामिल थे।
बैठक में टीएमसी के सदस्यों ने इस बात पर जोर दिया कि आचार समिति की रिपोर्ट लोकसभा में चर्चा से पहले मीडिया में लीक नहीं होनी चाहिए थी। उनमें से एक ने जोर देकर कहा, “संसदीय समितियों की रिपोर्टों को तब तक इतनी बेशर्मी से सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि वे सदन में पेश न कर दी जाएं।”
बंद्योपाध्याय और ओब्रायन ने सरकार पर सर्वदलीय बैठकों को “समय की बर्बादी” करने का भी आरोप लगाया।
मोइत्रा के निष्कासन की सिफारिश से शीतकालीन सत्र हंगामेदार होने की संभावना है, यह तब स्पष्ट हो गया जब लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने स्पीकर को पत्र लिखकर संसदीय समितियों के कामकाज से संबंधित नियमों की समीक्षा की मांग की।
चौधरी पहले भी मोइत्रा के पक्ष में बोल चुके हैं। उन्होंने कहा कि “अनैतिक आचरण” शब्द के लिए कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है और हालांकि प्रक्रिया के नियमों के नियम 316 बी के तहत “आचार संहिता” की परिकल्पना की गई है, लेकिन संहिता अभी तक तैयार नहीं की गई है।
चौधरी ने पत्र में लिखा, “अगर मोहुआ मोइत्रा को संसद से निष्कासित करने की आचार समिति की सिफारिशों पर मीडिया रिपोर्ट सही हैं, तो यह शायद लोकसभा की आचार समिति की पहली ऐसी सिफारिश होगी। संसद से निष्कासन, आप सहमत होंगे श्रीमान, एक अत्यंत गंभीर सज़ा है और इसके बहुत व्यापक प्रभाव होते हैं।”
बंद्योपाध्याय और ओब्रायन ने ममता की सरकार से उन तीन विधेयकों को पारित न करने की मांग भी दोहराई, जिनका उद्देश्य भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम को बदलना है।
ममता बनर्जी ने हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखा था जिसमें कहा गया था कि मौजूदा कानूनों में किसी भी बदलाव से पहले “अत्यधिक सावधानी” और “उचित परिश्रम” किया जाना चाहिए। तीनों विधेयकों को हाल ही में गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने मंजूरी दे दी थी।
(‘द टेलिग्राफ’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)
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