आखिर भारत सरकार बोइंग के साथ नरमी से पेश क्यों आ रही है ?

अहमदाबाद विमान दुर्घटना वाले हादसे के बाद, हर कोई भारत सरकार से उम्मीद कर रहा था कि वह बाकी के सभी 33 बोइंग 787 ड्रीमलाइनर हवाईजहाजों को तब तक उड़ान भरने की इजाजत नहीं देगी, जब तक कि इनसे जुड़े सुरक्षा के मुद्दे हल नहीं कर लिए जाते, या कम से कम सरकार द्वारा गठित एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट पेश नहीं हो जाती। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। सरकार ने बाक़ी के ड्रीमलाइनर्स के बारे में सिर्फ “सुरक्षा जांच” का आदेश जारी कर दिया, जो कि हर बार हवाईजहाज को उड़ान भरने से पहले रूटीन जांच में करना पड़ता है।

जबकि हकीकत यह है कि 13 जून की उस सुबह भी ऐसे निरीक्षण से गुजरने के बावजूद, बदकिस्मत बोइंग 787 ड्रीमलाइनर क्रेश कर गया और 270 यात्रियों सहित कुल 241 लोग मारे गये किंतु नागरिक विमानन नियामक प्राधिकरण के भीतर इस घटना को लेकर चिंता की कोई लकीरें नहीं उभरीं। डीजीसीए के द्वारा केवल बाक़ी के ड्रीमलाइनरों की सुरक्षा जांच के आदेश जारी कर दिए गये।

इसके कुछ दिन बाद ही डीजीसीए कार्यालय ने घोषणा कर दी कि 9 ड्रीमलाइनरों की सुरक्षा जांच पूरी हो चुकी है और बाकी की जांच अगले कुछ दिनों में पूरी हो जाएगी। हालात एक बार फिर से सामान्य हो चुके हैं। बोइंग अब भारत में शेष ड्रीमलाइनरों को बिना किसी रुकावट के संचालित कर सकता है। यह पहली बार नहीं है जब बोइंग का रवैया सुरक्षा स्थिति की गंभीरता के प्रति उदासीन रहा हो।

जब पीएम मोदी ने फरवरी 2023 में बाइडन प्रशासन के दौरान अमेरिका का दौरा किया था, तो बाइडन की मौजूदगी में मोदी ने बोइंग के सीईओ के साथ 220 बोइंग विमानों की खरीद का समझौता किया था। यह उस सौदे से अलग था, जिसमें फ्रांस की एयरबस इंडस्ट्रीज से 225 विमानों की खरीद का समझौता हुआ था, जिसे मोदी ने अपने “दोस्त” मैक्रों की उपस्थिति में अमेरिका को रवाना होते समय किया था।

इस बोइंग सौदे में 225 विमानों की डिलीवरी हो जाने के बाद 70 और विमानों की संभावित खरीद का एक अनुच्छेद भी शामिल था, जिसके चलते कुल लागत करीब 45 अरब डॉलर तक पहुंच जाती। अहमदाबाद की घटना के बाद, भारत सरकार को इस विशाल बोइंग विमान सौदे पर भी पुनर्विचार करने की जरूरत थी, और सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर इसे निलंबित भी कर देना चाहिए था। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ

बोइंग ने मोदी को कैसे खुश रखा

दरअसल बोइंग ने पीएम मोदी के निजी उपयोग के लिए दो बोइंग 777 मॉडल के विमानों की आपूर्ति की थी। भारत सरकार ने इन दो विमानों के लिए कुल 8,458 करोड़ रुपये का भुगतान किया। आमतौर पर बोइंग 777 मॉडल वाले एक विमान की कीमत तकरीबन 2,600 करोड़ रूपये बैठती है। इस मामले में अधिक लागत को आधिकारिक तौर पर इन विमानों में अतिरिक्त सुरक्षा सुविधाओं के रेट्रोफिटिंग के लिए जिम्मेदार ठहराया गया।

बोइंग ने स्पष्ट रूप से मोदी को खुश करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपतियों के द्वारा उपयोग में लाये जाने वाले एयरफोर्स वन विमानों की तर्ज पर निजी विमान विकसित किया था। इस सौदे में शामिल अतिरिक्त लागत को निश्चित रूप से “उत्पादक रूप से” खर्च किया गया होगा! इसलिए कोई आश्चर्य की बात नहीं कि भारत सरकार बोइंग के साथ नरमी से पेश आ रही है!

भारत सरकार बोइंग के बदतरीन सेफ्टी रिकॉर्ड से विचलित नहीं दिख रही  

भारतीय नागर विमानन प्राधिकरण बोइंग विमानों के भारत में विवादास्पद सुरक्षा रिकॉर्ड को लेकर परेशान नजर नहीं आ रही। हालांकि उनका दावा है कि यह पहला उदाहरण है जिसमें बोइंग 787 दुर्घटनाग्रस्त हुआ है, लेकिन पहले के बोइंग 737 के संस्करणों का बारंबार आपदाओं का लंबा रिकॉर्ड रहा है। 31 मई 1973 की बोइंग 737 दुर्घटना से आरंभ होकर, जिसमें सांसद मोहन कुमारमंगलम और बालदंडायुथम सहित अन्य 46 लोगों की जान चली गई थी, और हाल की बोइंग 737 दुर्घटनाओं में, जैसे दिसंबर 2024 में दक्षिण कोरिया की जेजू एयर बोइंग 737 दुर्घटना जिसमें 179 लोग मारे गए, और जनवरी 2024 में अलास्का एयरलाइंस की उड़ान में विमान का दरवाजा हवा में उड़ गया। 2019 तक, भारत सहित कई देशों ने सुरक्षा कारणों से बोइंग 737 विमानों को ग्राउंड कर दिया था, लेकिन बोइंग ने कुछ तकनीकी सुधारों और बेहतर सुरक्षा उपायों का दावा करते हुए उन्हें फिर से संचालन में लाने में कामयाबी हासिल कर ली।

बोइंग 787 के बारे में दावा किया गया कि सुरक्षा मानकों के मामले में ये विमान बोइंग 737 से कहीं बेहतर है, लेकिन 13 जून को अहमदाबाद में हुई दुर्घटना ने इस दावे पर गंभीर संदेह खड़े कर दिए हैं। अहमदाबाद हवाई दुर्घटना जैसी भीषण त्रासदी के बावजूद, भारत सरकार बोइंग के साथ नरमी से पेश क्यों आ रही है? इतने खराब सुरक्षा रिकॉर्ड वाली विवादास्पद कॉर्पोरेट दिग्गज पर सरकार कोई कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है? 

भारतीय राजनीतिक अभिजात वर्ग पर बोइंग का असाधारण प्रभाव मुख्य रूप से इसकी प्रभावी राजनीतिक पैरवी और राजनेताओं को कथित तौर पर दिए जाने वाले किकबैक की वजह से है। बोइंग ने भारत में हसन अली और बाद में संजय भंडारी जैसे बेहद ताकतवर और अत्यधिक प्रभावशाली बिचौलियों को इन सौदों में शामिल किया था। इन दोनों को ही कर चोरी सहित धन शोधन के कई अदालती मामलों में उलझना पड़ा था, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से ये दोनों रिश्वतखोरी के आरोपों से बच निकले।

हसन अली का मामला

भारत में बोइंग का प्रमुख एजेंट हसन अली था, जिसे यूपीए सरकार के दौरान स्विस बैंकों में लगभग 8 अरब डॉलर की धनराशि रखने के लिए आरोपी बनाया गया था। भारत सरकार ने उसके खिलाफ कई मामले दर्ज किए, लेकिन स्विस अधिकारियों द्वारा असहयोग के चलते उसे किसी भी मामले में दोषी नहीं ठहराया जा सका। हैदराबाद के रहने वाले हसन अली ने पुणे में एक घोड़ों का फार्म खोला और कुछ दिनों बाद अचानक से एक प्रमुख हथियार डीलर बन गया।

हालांकि, बोइंग एजेंट के रूप में उसकी भूमिका अधिक विवादास्पद रही। हसन अली ने कथित तौर पर दो बोइंग विमानों की बिक्री की सुविधा प्रदान करने के लिए लगभग 11.5 मिलियन डॉलर की कमीशन अर्जित की थी। सरकार ने उसके खिलाफ केवल मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी के मामले दर्ज किए, लेकिन उसके खिलाफ रिश्वतखोरी का कोई आरोप नहीं था। विपक्ष में रहते हुए तब बीजेपी नेताओं ने आरोप लगाया था कि उसके पास स्विस बैंकों में जमा 8 अरब डॉलर असल में सोनिया गांधी के थे, एक ऐसा आरोप जिसे वे सत्ता में आने के बावजूद साबित नहीं कर पाए हैं।

हसन अली अपने केस लड़ रहे थे और एनडीए शासन के तहत उसने 4 साल जेल में भी काटे, लेकिन जेल में बीमार होने के बाद उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया था और 23 फरवरी 2023 को उसका निधन हो गया। हसन अली के निधन के साथ ही बोइंग से संबंधित मामले सहित सभी मामले, जिसमें उनके सोनिया गांधी से कथित संबंधों के आरोप शामिल हैं, पूरी तरह से दफन हो गए। हसन अली के बाद, बोइंग का दूसरा भारतीय एजेंट संजय भंडारी था।

संजय भंडारी का मामला 

संजय भंडारी अपनेआप में एक रहस्यमय व्यक्ति है। उसने एक छोटे हथियार डीलर के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की। बाद में वो एक बोइंग एजेंट बन गया। बिचौलिए के अपने काम के माध्यम से, उसने अकूत संपत्तियाँ अर्जित कीं। उसके पास लंदन के ब्रायनस्टन स्क्वायर में एक मकान है। इसके अलावा, लंदन में बोरडन स्ट्रीट पर उसके पास एक और प्रॉपर्टी है। यूएई में भी उसके पास एक घर है। पनामा में वह एक कंपनी का मालिक है, और पनामा की टैक्स हेवन के रूप में प्रतिष्ठा सभी को मालूम है।

नई दिल्ली के ग्रेटर कैलाश स्थित उसके आवास पर आयकर छापों के दौरान, आयकर विभाग को रक्षा मंत्रालय के कुछ बेहद संवेदनशील दस्तावेज मिले थे, और यह मुद्दा कि ये कागजात उसके पास कैसे आए, कभी सुलझाया नहीं गया। हालांकि 2023 में संजय भंडारी के खिलाफ आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत एक मामला दर्ज किया गया। बाद में, एक गैर-जमानती पीएमएलए मामला भी दर्ज किया गया।

भंडारी के खिलाफ इतने मामले होने के बावजूद, वह लंदन कैसे भाग गया, यह अभी भी एक रहस्य बना हुआ है। बेशक, उसके पास विजय माल्या, मेहुल चोकसी और नीरव मोदी जैसे पूर्ववर्ती महारथियों का इतिहास मौजूद है। पीएमएलए से संबंधित क्लिप्स की एक त्वरित समीक्षा से पता चला है कि कम से कम 24 ऐसे भगोड़े हैं जो अपने साथ लाखों करोड़ रुपये लेकर चंपत हो गये।

निश्चित रूप से, संजय भंडारी एक वेल-कनेक्टेड व्यक्ति प्रतीत होता है, जिसके एनडीए नेताओं से भी संबंध रहे हैं। इन संबंधों के बावजूद, ईडी ने कथित तौर पर उससे 10,000 करोड़ रुपये की अघोषित संपत्ति जब्त की है। भंडारी पर हांगकांग, सिंगापुर और थाईलैंड जैसे देशों में 10,000 करोड़ रुपये से अधिक की अवैध प्रेषण की सुविधा प्रदान करने का आरोप है।

हालांकि भारत सरकार ने रक्षा सौदों में कमीशन एजेंटों पर प्रतिबंध लगाया हुआ है, लेकिन सबको पता है कि नई दिल्ली और बेंगलुरु में अभी भी कई लोग इस धंधे में फल-फूल रहे हैं।

कानून के तहत दायित्व

हवाई दुर्घटनाओं और विमान हादसों के लिए जिम्मेदारी दुर्घटना के कारणों पर निर्भर करता है। अमेरिका के एविएशन डिजास्टर फैमिली असिस्टेंस एक्ट के तहत, यदि दुर्घटना की वजह पायलट की गलती या परिचालन में लापरवाही के कारण होती है, तो एयरलाइन ऑपरेटर के ऊपर इसकी जिम्मेदारी आन पड़ती है और पीड़ितों के परिवारों को मुआवजा देना पड़ता है।

यदि दुर्घटना की वजह मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट के कारण पाई जाती है, तो विमान निर्माता को दायित्व और मुआवजे की लागत वहन करनी पड़ती है। ब्रिटिश कानून में भी यही स्थिति है। इसलिए, इस प्रावधान के तहत यदि यह साबित हो जाता है कि अहमदाबाद दुर्घटना डिज़ाइन डिफेक्ट की वजह से हुई थी, तो बोइंग को इसकी पूरी ज़िम्मेदारी लेनी होगी। यही कारण है कि बोइंग के प्रवक्ता ब्लैकबॉक्स के विवरण सामने आने से पहले ही पायलटों पर दोष मढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। बोइंग किसी भी प्रकार के दायित्व से बचना चाहती है।

भारत में हवाई दुर्घटनाओं के लिए दायित्व का कानूनी परिदृश्य अभी भी प्रारंभिक चरण में है। मौजूदा समय में, कैरिज बाय एयर एक्ट 1972 के तहत, जो यात्रियों की मृत्यु या घायल होने पर दायित्व और मुआवजे को निर्दिष्ट करता है, एक कमज़ोर कानून है जिसमें अनेक खामियाँ हैं, जिनका उपयोग ऑपरेटर और विमान निर्माता अपने बचाव के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। अहमदाबाद त्रासदी ने और ज्यादा प्रभावी कानूनों की जरूरत को उजागर किया है।

सैन्य शीर्ष अधिकारियों और बोइंग के बीच का गठजोड़

एयर इंडिया को यात्री विमान बेचने के अलावा, बोइंग भारतीय नौसेना और भारतीय सेना को भी विमान बेच रहा है। भारतीय नौसेना ने 2.1 अरब डॉलर में 12 पी-81 समुद्री गश्ती विमान की खरीद की है और इसके अलावा 1.5 अरब डॉलर में और 6 विमानों का ऑर्डर देने जा रही है। बोइंग ने भारतीय सेना को 22 एएच-64 अपाचे हेलीकॉप्टर भी डिलीवर किए हैं, और भारतीय सेना 6 और खरीदने के लिए बातचीत कर रही है। बोइंग के एजेंटों जैसे हसन अली और संजय भंडारी ने शीर्ष राजनेताओं और यहां तक कि सेना और नौसेना के शीर्ष अधिकारियों के साथ मजबूत संबंध स्थापित किए हुए हैं।

हालांकि बोइंग के पास आज भी कई एजेंट हैं, किंतु अब उनके पास टाटा जैसे अधिक संस्थागत एजेंट उपलब्ध हैं। टाटा-बोइंग एयरोस्पेस लिमिटेड बोइंग और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स के बीच एक संयुक्त उद्यम है, और लगभग 300 औद्योगिक इकाइयां इस फर्म के माध्यम से बोइंग को कलपुर्जों की आपूर्ति कर रही हैं। बोइंग ने अब अपनी स्वयं की सहायक कंपनी बोइंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड स्थापित की है, जो मार्केटिंग का ध्यान रखती है। हालांकि इस फर्म के अधिकारी विमान आपूर्ति के सौदों को अंतिम रूप देने के लिए सीधे सेना के अधिकारियों से निपटते हैं, इसके बावजूद बोइंग कुछ एजेंटों के साथ काम को जारी रखे हुए है जो मूल रूप से फिक्सर हैं।

रहस्यमयी हथियार डीलर संजय भंडारी मामले में नवीनतम अपडेट

10 जून 2025 को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने संजय भंडारी से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) मामले में पूछताछ के लिए कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा को समन किया था, किंतु रॉबर्ट वाड्रा समन को नजरअंदाज करते हुए ईडी के समक्ष पेश नहीं हुए। जो लोग इस मामले को विस्तार से फॉलो नहीं कर रहे हैं, उनके लिए संक्षेप में इसकी पृष्ठभूमि को यहां पर दोहरा देते हैं।

आर्म्स डीलर संजय भंडारी, जो हसन अली के बाद भारत में बोइंग का एजेंट था, 2016 में आयकर विभाग द्वारा नई दिल्ली में उसके आवास पर छापेमारी के बाद लंदन भाग गया था। आम लोगों की स्मृति में केवल विजय माल्या और मेहुल चोकसी का मामला ही बचा हुआ है। मेनस्ट्रीम मीडिया भी लगता है इस बात को भुला चुकी है कि संजय भंडारी भी उसी श्रेणी में आता है। रक्षा सहित अन्य वाणिज्यिक सौदों, जिसमें बोइंग का सौदा शामिल है, में रिश्वतखोरी के गंभीर आरोपों के बावजूद, मोदी सरकार ने 2016 में संजय भंडारी के खिलाफ केवल एक हल्का आयकर उल्लंघन का मामला दर्ज किया था। संजय भंडारी ने संकेत समझ लिया और वह फौरन लंदन के लिए नौ-दो-ग्यारह हो गया।

हालाँकि, भारत सरकार ने उसके प्रत्यर्पण की मांग की थी। लेकिन भारतीय सरकार ब्रिटिश अदालत में उनके प्रत्यर्पण के लिए पर्याप्त मजबूत केस नहीं बना सकी, और संजय भंडारी को प्रत्यर्पण मामले में बरी कर दिया गया। भारतीय सरकार ने ब्रिटिश कानून के अनुसार इस फैसले के खिलाफ ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट में अपील की अनुमति मांगने के लिए ब्रिटिश अदालत में याचिका भी दायर की, लेकिन इस महीने की शुरुआत में यह मामला भी खारिज हो गया था।

इसका मतलब यह हुआ कि बोइंग के पूर्व एजेंट और अब भगोड़े संजय भंडारी को कभी भी भारत लाकर भारतीय कानून का सामना नहीं करना पड़ेगा। निश्चित रूप से प्रत्यर्पण के लिए एक हल्का आयकर मामला पर्याप्त आधार नहीं था। 2023 में जाकर ईडी ने संजय भंडारी के खिलाफ पीएमएलए मामले में चार्जशीट दायर की थी, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि उसने 2009 में रॉबर्ट वाड्रा के कहने पर लंदन के 12, ब्रायनस्टन स्क्वायर में एक हवेली खरीदी थी, और ईडी का आरोप है कि इस घर को खरीदने के लिए रॉबर्ट वाड्रा ने धन मुहैया कराया था।

वाड्रा ने, निश्चित रूप से, इन आरोपों को नकार दिया है। उन्होंने लंदन में किसी भी संपत्ति के स्वामित्व से इनकार किया है और आरोप लगाया है कि यह मोदी के द्वारा राजनीतिक प्रतिशोध का मामला है। यूपीए के दौर में बोइंग के एजेंट के खिलाफ कर चोरी के मामले से शुरू होकर यह मोदी के दौर में वाड्रा के खिलाफ पीएमएलए केस में तब्दील हो जाने की गाथा है। सच, निश्चित रूप से, कभी सामने नहीं आने वाला है।

अब संजय भंडारी मोदी के लिए वाड्रा के खिलाफ एक और लीवर हासिल करने के लिए उपयोगी टूल साबित हो सकता है, हालांकि पूरी तरह से आरोप सिद्ध करने लायक नहीं। जैसे यूपीए ने कभी मोदी को जेल की सलाखों के पीछे नहीं भेजा, उसी प्रकार मोदी भी गांधी परिवार के गणमान्य व्यक्तियों को जेल के पीछे नहीं भेजने वाले  हैं। भारतीय राजनीतिक वर्ग में पहिए के भीतर पहिए और रिंग के भीतर रिंग मौजूद हैं-चाहे वह सत्तारूढ़ व्यवस्था हो या प्रमुख विपक्षी दल हो।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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