यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार अपने सुशासन यानि गुड गवेर्नेंस का ढोल पीटती रही है और विधानसभा के आसन्न चुनावों के दौर में सुशासन यानि गुड गवेर्नेंस का ढोल पीटने की तीव्रता बहुत ज्यादा बढ़ गयी है।बड़े बड़े अख़बारों और गोदी मीडिया को लाखों करोड़ों के विज्ञापन देकर सुशासन का डंका बजाने की असफल कोशिश की जा रही है।इस बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह पूछकर कि यूपी सरकार अपने बनाए कानूनों को सरकारी वेबसाइट पर अपलोड क्यों नहीं कर रही है, सुशासन के दावों की हवा निकाल दी है ।
चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने मंगलवार को यूपी सरकार से पूछा कि वह अपने बनाए कानूनों को सरकारी वेबसाइट पर अपलोड क्यों नहीं कर रही है? कोर्ट ने कहा कि सरकार ने कई कानून बनाए हैं। उनमें संशोधन भी हुए हैं, लेकिन प्राइवेट प्रकाशक उनका सही प्रकाशन नहीं करते हैं। इससे न्यायिक व्यवस्था से जुड़े लोगों को परेशानी होती है। गलत प्रकाशित कानूनों के चलते कोर्ट को भी केसों की सुनवाई के दौरान सही जानकारी नहीं मिल पाती।
इस मामले पर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने कहा कि सरकार का यह दायित्व है कि वह अपने बनाए कानून को सरकारी वेबसाइट पर अपलोड करे, ताकि आम जनता और कानून के क्षेत्र से जुड़े लोगों को सही जानकारी मिल सके।
याचिका में हाईकोर्ट के निर्देश पर सरकार की तरफ से जवाबी हलफनामा दाखिल किया गया था। इसमें कहा गया था कि सरकार ने ऑफिशियल वेबसाइट पर अपलोड करने का प्रावधान पहले से ही बना रखा है।
इस पर चीफ जस्टिस ने कोर्ट में उपस्थित अपने स्टाफ का रुख किया। उनसे कहा कि वे देखें कि सरकार के किस वेबसाइट पर कानून संबंधी जानकारी, एक्ट और रूल्स अपलोड हैं। इस पर कोर्ट स्टाफ ने जब चेक किया, तो उसे वेबसाइट पर जानकारी नहीं मिली।
इस पर सरकार की तरफ से कोर्ट को वस्तुस्थिति की सही जानकारी के साथ कोर्ट को फिर इसके बारे में बताने का अनुरोध किया गया। साथ ही कोर्ट से कुछ और समय की मांग की गई।कोर्ट ने इस पर 16 दिसंबर को फिर सुनवाई करने का निर्देश दिया है। उसने कहा कि उस दिन सरकार इस मामले में सही कार्यवाही कर कोर्ट को बताए।
(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)
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