वक्फ अधिनियम में संशोधन : पहले वे कम्युनिस्टों के लिए आए…

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वक्फ अधिनियम को संशोधित कर दिया गया है।संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किए जाने और राष्ट्रपति का अनुमोदन हासिल होने के बाद ‘यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट, एम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट एक्ट 2025″ लागू हो गया है। इसके पारित होने के बाद लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गाँधी ने कहा था कि अब अन्य समुदायों की धार्मिक संपत्तियों को निशाना बनाया जायेगा। ठीक यही हुआ। संसद में विधेयक के पारित होने के तुरंत बाद आरएसएस के मुखपत्र द आर्गेनाइजर ने कैथोलिक चर्च की संपत्ति के बारे में एक लेख प्रकाशित किया। यद्यपि यह लेख प्रकाशन की वेबसाइट से तुरंत हटा लिया गया मगर जो सन्देश दिया जाना था, वह दे दिया गया है।

झारखण्ड की एक मंत्री ने आशंका जाहिर की कि आरएसएस-भाजपा इसी तरह आदिवासियों की संपत्ति को भी हड़पने का प्रयास करेंगे। अगला शिकार कौन होगा, यह अभी कहना मुश्किल है। विधेयक पर बहस के दौरान एनडीए के गैर-भाजपा घटक दलों के नेताओं जैसे नीतीश कुमार, चन्द्रबाबू नायडू, चिराग पासवान और जयंत चौधरी भी भाजपा के पिछलग्गू बन गए और मुस्लिम समुदाय को बहुत बड़ा धोखा दिया। अगर वे बहुवाद के सिद्धांत में विश्वास रखते होते तो विधेयक को पारित होने से रोक सकते थे।

जैसा कि पास्टर मार्टिन निमोलर की ख्यात कविता साफ़ बताती है कि फासीवादी एक बार में एक समूह को निशाने पर लेते हैं।उसे अन्यों के साथ मिलकर कुचल देते हैं। फिर दूसरे की बारी आती है।कैथोलिक बिशप, वक्फ संशोधन विधेयक का उत्साह से स्वागत कर रहे हैं। मगर उन्हें शायद यह नहीं पता कि अगला निशाना वे भी हो सकते हैं। ये लोग कुछ अजीब से हैं। वे इस्लामोफोबिया से इतने ग्रस्त हैं कि बिना सोचे-समझे सांप्रदायिक रणनीतियों का समर्थन कर रहे हैं।

वक्फ वह संपत्ति है जिसे मुसलमान धार्मिक उद्देश्यों के लिए दान देते हैं। गैर-मुस्लिम भी अपनी संपत्ति को वक्फ कर सकते हैं।ऐसा बताया जा रहा है कि वक्फ देश में संपत्ति का तीसरा सबसे बड़ा मालिक है। मगर सच यह है कि हिन्दू ट्रस्टों और मंदिरों के पास वक्फ से कहीं ज्यादा संपत्ति है। वक्फ एक्ट में जो संशोधन किये गए हैं वे हिन्दू राष्ट्रवादी एजेंडा का हिस्सा हैं और इनका उद्देश्य वक्फ बोर्डों पर मुसलमानों के नियंत्रण को कमज़ोर करना है।

हिन्दू ट्रस्टों और मंदिरों का नियंत्रण केवल हिन्दुओं के हाथों में है। मगर अब गैर-मुसलमान भी वक्फ बोर्डों के सदस्य बन सकेंगे और वक्फ संपत्तियों के मालिकाना हक के बारे में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार जिला कलेक्टरों को होगा। हिन्दू ट्रस्टों और वक्फ के बीच यह अंतर पक्षपाती है। सरकार वक्फ से जुड़े मसलों में मुसलमानों के हुकूक कम करना चाहती है।

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजुजू ने विधेयक प्रस्तुत करते समय अपने भाषण में कहा कि उसका उद्देश्य गरीब मुसलमानों के हालात में बेहतरी लाना है। वक्फ संपत्ति धार्मिक और सामाजिक उद्देश्यों के लिए है। गरीबी मिटाना सरकार का काम है और यह सरकार इस दिशा में कोई प्रयास नहीं कर रही है।सरकार का एकमात्र लक्ष्य है बड़े औद्योगिक घरानों की जेब भरना। सभी सरकारी नीतियां इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर बनाई जा रहीं हैं। सरकार को न हिन्दू गरीबों से कोई मतलब है, न मुसलमान गरीबों से और ना ही किसी और मज़हब के गरीबों से।

और अगर धार्मिक संस्थाओं के पैसे का उपयोग समुदाय के हालात में बेहतरी लाना ही है तो फिर हम हिन्दू बहुसंख्यकों से शुरू क्यों नहीं करते? हिन्दू ट्रस्टों और मंदिरों के पास अकूत सम्पदा है जिसे स्कूल और अस्पताल खोले जा सकते हैं और रोज़गार के अवसर निर्मित किये जा सकते हैं। हिन्दू राष्ट्र के संघी एजेंडा पर चल रही यह सरकार यह सुनिश्चित क्यों नहीं कर रही कि मंदिरों के ट्रस्टों के संपत्ति का उपयोग गरीब हिन्दू किसानों, बेरोजगार हिन्दू युवाओं और अन्य कमज़ोर वर्ग के हिन्दुओं की भलाई के लिए किया जाए।

किरण रिजुजू ने दावा किया कि कई गरीब मुसलमानों ने उन्हें सरकार के इस निर्णय के लिए बधाई दी है। क्या यह चुटकुला है? सच यह है कि हजारों मुस्लिम संगठनों ने इस संशोधन का विरोध किया है। इस संशोधन को भाजपा सरकार मुस्लिम समुदाय पर जबरन लाद रही है ताकि उसे कमज़ोर किया जा सके। यह दावा बचकाना है कि गरीब मुसलमान इस संशोधन के पक्ष में हैं।

यह तो जगजाहिर है कि भाजपा को प्रजातान्त्रिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों से कोई लेनादेना नहीं है। वो भारत के मुसलमानों के बदहाली पर जो आंसू बहा रही है उन्हें देखकर तो मगरमच्छ भी शर्मा जायेगा। दरअसल, भाजपा के केंद्र में सत्ता में आने से सबसे ज्यादा परेशानियाँ मुसलमानों को ही हुई हैं। उन्हें सड़क पर नमाज़ पढने के लिए पीटा जाता है, उन्हें बीफ खाने पर निशाना बनाया जाता है, हिन्दू धार्मिक मेलों आदि में उनका बहिष्कार होता है, उन पर कोरोना जिहाद करने का आरोप लगाया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के कड़े निर्देशों के बावजूद राज्य सरकारें मुसलमानों की संपत्तियों पर बुलडोज़र चला रही हैं।

मोदी ने संविधान के प्रति अपना सम्मान प्रदर्शित करने के लिए उसकी एक प्रति को माथे से लगाया था। यह 2024 के आम चुनाव की बात है जब इंडिया गठबंधन ने संविधान को अपने चुनाव अभियान का प्रमुख प्रतीक बनाया था। भाजपा के लिए संविधान मात्र एक शोपीस है। उत्तर प्रदेश में वक्फ बिल का विरोध करने वाले व्यक्ति को दो लाख रुपये का बांड भरना होगा।यह है इस सरकार में प्रजातान्त्रिक अधिकारों की स्थिति।

वक्फ संशोधन बिल भारतीय संविधान के प्रावधानों और उसकी आत्मा दोनों के खिलाफ है। पी. चिदंबरम ने पूरी स्थिति का सटीक वर्णन किया है: “अदालतों ने कई मामलों में गैर-मुसलमानों द्वारा किये गए वक्फ को मंजूरी दी है। वर्तमान में लागू कानून के अनुसार वक्फ काफी हद तक स्वतंत्र और स्वायत्त हैं। राज्यों में उच्चतम नियामक संस्था वक्फ बोर्ड होती है, जिसके सभी सदस्य मुस्लमान होते हैं और जिसका मुख्य कार्यकारी अधिकारी भी मुसलमान होना आवश्यक है। बोर्ड अपना काम वक्फ के निर्देशों, वक्फ के उद्देश्य और वक्फ के रीति-रिवाजों के अनुरूप करता है।वक्फ के मामलों में न्यायिक फैसले एक ट्रिब्यूनल करता है, को एक जिला जज की अध्यक्षता में गठित न्यायिक संस्था होती है।”

भाजपा ने जो संशोधन किये हैं वे वक्फ के उद्देश्यों के एकदम उलट हैं। यह मुसलमानों को डराने और उन्हें कमज़ोर करने की दिशा में एक और कदम है। वक्फ के मामलों में भ्रष्टाचार की शिकायतें गंभीर हैं। जैसा कि अन्ना-केजरीवाल के जन लोकपाल अभियान से जाहिर है, ये तरीके काम नहीं करते। हम अपनी संस्थाओं को और अधिक पारदर्शी और प्रजातान्त्रिक बना कर ही भ्रष्टाचार मिटा सकते हैं। यह न केवल वक्फ के मामले में लागू है वरन उन अधिकांश धार्मिक संस्थाओं के मामले में भी लागू है जिनके पास ज़मीनें और संपत्ति है।

आर्गेनाइजर में कैथोलिक चर्च की संपत्ति के बारे में लेख से यह साफ़ है कि जो लोग मुस्लिम समुदाय पर इस हमले का समर्थन कर रहे हैं, उन्हें इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि अन्य अल्पसंख्यकों पर हमलों का समर्थन कर वे अपने-आप को बचा लेंगे।

मुस्लिम समुदाय द्वारा इस संशोधन का विरोध तेजी पकड़ रहा है और जो भी लोग प्रजातान्त्रिक और बहुवादी मूल्यों में यकीन रखते हैं उन्हें इस विरोध का समर्थन करना चाहिए और उनके साथ खड़ा होना चाहिए। जो लोग सत्ता के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं उनका पर्दाफाश हो गया है। हम उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले चुनावों में लोग उन्हें उनकी सही जगह दिखा देंगे-जो इतिहास के कूड़ेदान में है।

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया। लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

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