अमेरिकी नागरिक संगठनों ने उठाई संजीव भट्ट की रिहाई की मांग

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सुप्रीम कोर्ट ने हिरासत में हुई मौत के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा निलंबित करने को लेकर पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट की याचिका पर सुनवाई 22 जनवरी से टालकर 27 जनवरी कर दी है। इससे पहले शीर्ष अदालत ने सोमवार को पूर्व  याचिका को जनवरी के तीसरे हफ्ते में सूचीबद्ध किया है।

कल शुक्रवार को मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि हम इस मामले को 27 जनवरी को सुनेंगे। संजीव भट्ट के वकील फारूख रशीद ने सुनवाई टालने की अपील की थी। रशीद ने पीठ को बताया कि इस मामले में वरिष्ठ वकील अस्वस्थ हैं और मामले को टाल दिया जाए।

बता दें कि अक्तूबर, 2019 में गुजरात हाई कोर्ट ने पालनपुर की जेल में बंद भट्ट की सजा निलंबित करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद संजीव भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था।

इससे पहले सोमवार 18 जनवरी को इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC ) और हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन में नागरिक संगठनों और कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि हत्या के एक मामले में भट्ट पर लगे आरोप गलत हैं और झूठे सबूतों पर आधारित हैं। कार्यक्रम में भारत और अमेरिका के कई नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों ने भारत के उच्चतम न्यायालय से अपील की कि 22 जनवरी की सुनवाई में वह पूर्व पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट की जमानत मंजूर करे।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री शशि थरूर ने कहा कि वह भट्ट के साथ हुए अन्याय से क्षुब्ध हैं, जिन्हें समाज के लिए कर्तव्यनिष्ठ होकर सेवा करने और ताकतवर से सच बोलने की अदम्य क्षमता के कारण जेल भेज दिया गया।

थरूर ने कहा, ‘‘संजीव का मामला उस खराब दौर को दर्शाता है, जिसमें हम रह रहे हैं, जहां सभी भारतीयों को संविधान द्वारा प्रदत्त संवैधानिक मूल्य एवं मौलिक अधिकार कई मामलों में कमजोर होते और कई बार ऐसी ताकतों द्वारा छीने जाते भी प्रतीत होते हैं जो उदार नहीं हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जिन भारतीयों की अंतरात्मा संजीव भट्ट की तरह जीवित है, उन्हें खड़े होना चाहिए और इस प्रकार की चुनौतियों के खिलाफ लड़ना चाहिए, जो हमारे गणतंत्र के आधार को कमजोर करने का खतरा पैदा कर रही हैं।’’

प्रख्यात वृत्तचित्र फिल्म निर्माता आनंद पटवर्धन ने कहा कि भट्ट को इसलिए जेल भेज दिया गया, क्योंकि उन्होंने 2002 में हुए नरसंहार का विरोध किया और इसके खिलाफ आवाज उठाई। पटवर्धन ने कहा कि समाज को भट्ट की रिहाई के लिए आंदोलन चलाना चाहिए।

मानवाधिकार कार्यकर्ता, शास्त्रीय नृत्यांगना और अभिनेत्री मल्लिका साराभाई ने कहा कि ऐसा नहीं है कि केवल भट्ट के मामले में उनके खिलाफ निश्चित एजेंडा चलाया जा रहा है, बल्कि मोदी सरकार के अधिकतर आलोचकों के साथ ऐसा हो रहा है।

साराभाई ने कहा, “यदि कोई सरकार के खिलाफ बोलता है या कोई सवाल पूछता है, जो कि हमारे लोकतंत्र में प्रदत्त मौलिक अधिकार है, तो उसे किसी न किसी तरह दंडित किया जाता है। उसके खिलाफ छापे मारे जाते हैं, झूठे मामले चलाए जाते हैं और उन्हें चुप करा दिया जाता है।”

आईएएमसी के कार्यकारी निदेशक रशीद अहमद ने कहा कि भारत सरकार को संजीव भट्ट के मामले का राजनीतिक प्रबंधन बंद कर देना चाहिए और सरकार से डरे हुए या स्वयं राजनीतिक बन चुके न्यायाधीशों के बजाए स्वतंत्र न्यायाधीशों की निगरानी में कानून को अपना काम करने देना चाहिए।”

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