रांची। झारखंड सरकार द्वारा जमशेदपुर को इंडस्ट्रियल टाउन बनाये जाने के खिलाफ सौरभ विष्णु और जमशेदपुर के 50 से अधिक नागरिकों ने राज्य के उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर किया है। जमशेदपुर शहर को इंडस्ट्रियल टाउन बनाये जाने के बाद शहर के अधिकांश नागरिकों के अधिकार बहुत सीमित हो जाएंगे और टाटा कंपनी के अधिकार बहुत बढ़ जाएंगे। झारखंड सरकार ने शहर को इंडस्ट्रियल टाउन बनाये जाने का नोटिफिकेशन 23 दिसंबर 2023 को जारी किया था।
शुक्रवार यानि 13 सितंबर को जमशेदपुर को इंडस्ट्रियल टाउन बनाये जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका की सुनवाई माननीय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद और माननीय न्यायाधीश अरुण कुमार राय की पीठ में हुई! सुनवाई के दौरान झारखंड के महाअधिवक्ता ने जमशेदपुर के एक नागरिक जवाहरलाल शर्मा द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में 2018 में दायर रिट संख्या 549 के तहत पारित एक आदेश का हवाला देकर कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार से सहमति जताई थी कि जमशेदपुर को इंडस्ट्रियल टाउन बनाया जा सकता है!
पिटीशनर के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने माननीय अदालत को बताया कि जवाहरलाल शर्मा का 2018 का सर्वोच्च न्यायालय में लंबित रिट उनके द्वारा जमशेदपुर में नगर निगम के गठन के लिए 1988 में दायर रिट संख्या 154 का ही आगे का सिलसिला है और उस समय झारखंड सरकार ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय को कहा था कि वे जमशेदपुर में संविधान के तहत इंडस्ट्रियल टाउन बनायेगी! उस समय इंडस्ट्रियल टाउन की कोई अधिसूचना नहीं थी न ही इसके स्वरूप के बारे में कोई योजना ही सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत की गयी थी इसलिए सर्वोच्च न्यायालय के समय 2018 में इंडस्ट्रियल टाउन का मसला था ही नहीं।
उन्होंने आगे कहा कि वैसे भी जमशेदपुर के नागरिक न तो जवाहर शर्मा के रिट में पार्टी हैं न झारखंड सरकार और टाटा के किसी प्राइवेट समझौते के तहत पार्टी है अतः जमशेदपुर के नागरिकों को हक है कि वे इंडस्ट्रियल टाउन की वैधानिकता को चुनौती दें! उन्होंने आगे बताया कि रिट में जमशेदपुर में अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों की जमीन का अधिग्रहण कर टाटा को दिये गये 15725 एकड़ सरकारी अनुदान को असंवैधानिक और अवैध तरीके से लीज में तब्दील करने, टाटा द्वारा 12708 एकड़ जमीन को सबलीज में देने, टाटा द्वारा लैंड रिवेन्यू कलक्टर की अवैध भूमिका में रहते हुए पिछले 100 सालों से अवैध रूप से खरबों रुपये लैंड रिवेन्यू वसूल करने के खिलाफ भी है!
पिटीशनर के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने कहा कि माननीय अदालत से हमारी प्रार्थना है कि तथाकथित लीज को अवैध घोषित किया जाय और टाटा द्वारा अवैध रूप से वसूला गया लैंड रिवेन्यू सरकारी खजाने में जमा करवाया जाय! माननीय अदालत ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि इंडस्ट्रियल टाउन या नगर निगम जिसे भी माननीय उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय मान्य करेगी उसके नियंत्रण में जमशेदपुर की 15725 एकड़ जमीन निहित हो जायेगी। वह टाटा के नियंत्रण में नहीं होगी। पर इस पर सुनवाई के बाद फैसला होगा चाहे इस उच्च न्यायालय में हो या सर्वोच्च न्यायालय में हो। पर फिलवक्त चूंकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय का एक आदेश जवाहरलाल शर्मा की 2018 की रिट में पारित है इसलिए उच्च न्यायालय में विचाराधीन इस रिट के बारे में माननीय उच्च न्यायालय को सूचित करना चाहिए।
इसके पश्चात माननीय न्यायाधीश ने आदेश पारित करते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में जवाहरलाल शर्मा के लंबित रिट की सुनवाई 20.09.2024 को संभावित है अतः यह अदालत माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जवाहरलाल शर्मा के रिट के निष्पादन के उपरांत सौरव विष्णु और जमशेदपुर के अन्य दर्जनों नागरिकों द्वारा दायर इस रिट को सुनेगी!
गौरतलब है कि झारखंड सरकार ने 23.12.2023 की अधिसूचना द्वारा जमशेदपुर के नागरिकों के स्वशासन के संवैधानिक अधिकार को समाप्त कर टाटा कंपनी के कोलोनियल शासन को बरकरार रखने की बदनीयत से पूरे जमशेदपुर को इंडस्ट्रियल टाउन बनाने की घोषणा की है जिसके तहत टाटा ने अपनी साक्ची अवस्थित सुपरवाइजर्स कॉलोनी और साक्ची ईलाके के आसपास की सैकड़ों प्रतिष्ठानों की भवनों को अवैध तरीके से ध्वस्त कर 500 एकड़ से अधिक जमीन पर अवैध कब्जा कर अपने प्लांट का अवैध विस्तार कर लिया है।
झारखंड सरकार ने टाटा के 100 साल से चले आ रहे कॉलोनियल राज को जिसके तहत टाटा ने आदिवासियों की 12708 एकड़ जमीन को गैरआदिवासियों को सबलीज किया है और उन जमीनों पर 100 सालों से रिवेन्यू कलक्टर की तरह अवैध रूप से भू-राजस्व वसूल कर रही है, को बनाये रखने के लिए जमशेदपुर को औधोगिक शहर बनाने का नोटिफकेशन जारी किया जिसे झारखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी है! उस जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि झारखंड सरकार द्वारा किया गया 20.08.2005 का लीज समझौता एक बहुत बड़ा फर्जीवाड़ा है। इस जमीन पर नगर निगम का अधिकार है और नगर निगम को ही भू-राजस्व वसूलने का अधिकार है जबकि टाटा भू-राजस्व वसूलती है।
(जनचौक की रिपोर्ट)