Friday, April 26, 2024

जन्मदिन विशेषः मौलाना आज़ाद ने कहा था- धार्मिक जुनून से बड़ी कामयाबी नहीं मिल सकती

आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री और मशहूर शिक्षाविद् मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म 11 नवंबर सन् 1888 में अरब के मक्का में हुआ था। मौलाना आजाद की शख्सियत को शब्दों और वाक्यों में परिभाषित करना ऐसा है जैसे किसी समुद्र की घेराबंदी करना। विद्वान, राजनीतिज्ञ, पत्रकार, वक्ता, दर्शनशास्त्री, इस्लामी स्कॉलर और रहनुमा जैसे प्रतिष्ठित शब्दों में भी कैद नहीं किया जा सकता। मौलाना आजाद को न सिर्फ आजादी की लड़ाई में एक योद्धा के रूप में या आजादी के बाद सिर्फ़ शिक्षा मंत्री के रूप देखा जा सकता है, बल्कि मौलाना आजाद की शख्सियत को जिंदगी के हर पहलू में उसके किरदार को याद किया जा सकता है। हकीकत तो यह है कि मौलाना आजाद के इल्म और प्रतिभा के कायल महात्मा गांधी, नेहरू और पटेल रहे, लेकिन मुसलमानों ने उनकी प्रतिभा को पहचाना ही नहीं ओर उनको कांग्रेस के नेता के रूप में देखते रहे।

मौलाना आजाद ने 13-14 वर्ष के ही आयु में फिक्ह, हदीस और अन्य इस्लामी शिक्षा से जुड़ी उच्च श्रेणी की डिग्री हासिल कर ली थी। अपने पिता मौलाना खैरुद्दुन के अलावा मोलवी इब्राहीम, मोलवी मोहम्मद उमर और मोलवी शहादत से शिक्षा ग्रहण की। बाद में पत्रकारिता की दिशा में बढ़ गए।

मौलाना आजाद ने अपनी जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा पढ़ने-लिखने, राजनीति और समाजी कार्यों में गुजारा। मौलाना आजाद ने 31 जुलाई 1906 को सप्ताहिक पत्रिका ‘अल-हिलाल’ का पहला संस्करण प्रकाशित किया। इसका अहम मकसद हिंदू और मुसलमानों में आपसी भाईचारा और देशप्रेम का भाव पैदा करना था। ‘अल-हिलाल’ का हिन्दुस्तानी अवाम में बढ़ती लोकप्रियता से घबराकर ब्रिटिश सरकार ने उसको जब्त कर लिया। ‘अल-हिलाल’ के जब्त हो जाने के बाद मौलाना आजाद ने ‘अल-बलाग’ के नाम से नया अखबार प्रकाशित करना शुरू किया। मौलाना आजाद जितने बेबाक पत्रकार थे, उतने ही प्रखर वक्ता भी थे।

मौलाना आजाद जहां मुल्क के बटवारे के सख्त खिलाफ थे, वहीं वह मुसलमानों पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव को लेकर भी बेचैन रहते थे। मौलाना आजाद न सिर्फ मुसलमानों के बारे में बल्कि पूरे हिन्दुस्तानियों को एक साथ लेकर चलने को लेकर हमेशा फिक्रमंद रहते थे। मौलाना आजाद आजादी की लड़ाई के एक मुखर योद्धा थे।

मौलाना आजाद धर्म के नाम पर किसी भी काम के खिलाफ थे। अपने एक भाषण में उन्होंने कहा था, “जिन मुसलमानों ने मुल्क के बटवारे का सपना देखा था और इस्लामी गणराज्य बनाने की बात की थी आज उनकी बात कुबूल हो गई और हम गुनाहगारों की दुआएं काम में न आईं मगर मैं आज यह बात भी दो रुपये के कागज़ पर लिख सकता हूं कि जिस चीज़ पर भी धार्मिक जुनून का अमली जामा पहनाया जाता है वह लंबी सदियों तक कामयाब नहीं हो सकता। मुझे साफ नजर आ रहा है कि पाकिस्तान भी दो हिस्सों में बट जाएगा। एक तरफ धार्मिक जुनून वाले तो दूसरी तरफ आधुनिक सोच रखने वाले होंगे और उन दोनों में जब टकराव होगा तो पूरे पाकिस्तान में बेचैनी फैल जाएगी।”

मौलाना आजाद का यह पैगाम सिर्फ पाकिस्तानी नौजवान लोगों के लिए नहीं था बल्कि आज भी यह पैगाम उतना ही सही है जितना उस वक्त था। पाकिस्तान और हिन्दुस्तान की मौजूदा सरकार को उस पर गौर करने की जरूरत है। मौलाना के कार्य शैली को देखते हुए महात्मा गांधी ने कहा था, “मौलाना आजाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उच्च श्रेणी के सरदार हैं और भारतीय राजनीति के अध्ययन करने वाले हर एक शख्स को चाहिए कि वह उस हकीकत को नज़र अंदाज़ न करें।”

(लेखक रिसर्च स्कॉलर और लेक्चरर हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

पुस्तक समीक्षा: निष्‍ठुर समय से टकराती औरतों की संघर्षगाथा दर्शाता कहानी संग्रह

शोभा सिंह का कहानी संग्रह, 'चाकू समय में हथेलियां', विविध समाजिक मुद्दों पर केंद्रित है, जैसे पितृसत्ता, ब्राह्मणवाद, सांप्रदायिकता और स्त्री संघर्ष। भारतीय समाज के विभिन्न तबकों से उठाए गए पात्र महिला अस्तित्व और स्वाभिमान की कहानियां बयान करते हैं। इस संग्रह में अन्याय और संघर्ष को दर्शाने वाली चौदह कहानियां सम्मिलित हैं।

Related Articles

पुस्तक समीक्षा: निष्‍ठुर समय से टकराती औरतों की संघर्षगाथा दर्शाता कहानी संग्रह

शोभा सिंह का कहानी संग्रह, 'चाकू समय में हथेलियां', विविध समाजिक मुद्दों पर केंद्रित है, जैसे पितृसत्ता, ब्राह्मणवाद, सांप्रदायिकता और स्त्री संघर्ष। भारतीय समाज के विभिन्न तबकों से उठाए गए पात्र महिला अस्तित्व और स्वाभिमान की कहानियां बयान करते हैं। इस संग्रह में अन्याय और संघर्ष को दर्शाने वाली चौदह कहानियां सम्मिलित हैं।