गोरखपुर। “महिलाओं की राजनीति में भागीदारी को सुनिश्चित करने के हर प्रयास में इस बात का ध्यान रखना होगा कि सत्ता में हर जाति–वर्ग की महिलाओं का समावेश हो।” कवयित्री सुनीता अबाबील ने मेरा रंग की संगोष्ठी में कहा, “वरना इसके बिना महिलाओं को राजनीति में दिया गया आरक्षण का अभिप्राय सफल नहीं होगा।”
लैंगिक असमानता, रंग, वर्ण, जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ कार्य करने वाली संस्था ‘मेरा रंग फाउंडेशन’ के बैनर तले शनिवार को गोरखपुर प्रेस क्लब सभागार में ‘राजनीति में महिलाएं: चुनौतियां और अवसर’ विषय पर चर्चा आयोजित हुई।
महिलाओं की राजनीति में भागीदारी हेतु आरक्षण को लागू करने में जातिगत आंकड़ों का भी विशेष ध्यान रखना होगा। कवियत्री सुनीता अबाबील ने कहा कि अनुसूचित जाति, जनजाति की महिलाओं को उनकी जाति के कारण राजनीति में अतिरिक्त चुनौती का सामना करना पड़ता है। इसका स्वरूप सामाजिक और आर्थिक दोनो हो सकता है।

राजनीति शास्त्र शिक्षक डॉ अमित कुमार उपाध्याय ने अपने संबोधन में राजनीतिक पार्टियों द्वारा महिलाओं को दिए गए टिकटों की संख्या के आंकड़ों को उल्लेखित करते हुए कहा कि सरकार में शामिल लोग मंचों पर जिस तरह से महिलाओं की हिमायत करते नजर आते हैं, उसका अनुपालन नहीं करते हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में 543 सांसदों में से केवल 78 महिलाएं हैं। उन्होंने कहा कि मंचों पर महिलाओं को बराबरी का हक अधिकार देने की बात करने वाले वाली राजनीतिक पार्टियों महिलाओं को टिकट देने में आना-कानी क्यों करते हैं, यह सवाल महिलाओं को सभी राजनीतिक दलों से पूछना चाहिए?
छात्र नेता व कवियत्री डॉ. चेतना पांडे ने कहा कि सरकार राजनीति में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की बात कर रही है लेकिन जब तक इस धरातल पर स्थापित नहीं किया जाता है तब तक हमें खुश होने की जरूरत नहीं है, उन्होंने कहा कि यह समय है महिलाओं को घरों से निकाल कर देश को देश की बागडोर संभालने का है।
सोशल वर्कर कंचन त्रिपाठी ने कहा कि आरक्षण मिलने के बाद भी महिलाओं के सामने राजनीति में हिस्सेदारी को लेकर बड़ी चुनौतियां हैं जिसमें सबसे पहले परिवार का राजनीति को लेकर सकारात्मक रवैया होना बेहद जरूरी है, इसके साथ ही समाज में महिलाओं के लिए भय का वातावरण समाप्त करना होगा और महिलाओ को यह समझाना होगा कि जब तक वो स्वयं अपने लिए नीतियां नहीं बनाएंगे उन्हें बराबरी और न्याय नहीं मिलेगा।
पत्रकार प्रकृति त्रिपाठी ने कहा कि विषम से विषम परिस्थिति में महिलाएं अपने घर संभालती हैं, खुद संयमित रहकर कम से कम संसाधन में बेहतर से बेहतर संयोजन करना महिलाओं से अच्छा कोई नहीं जानता, और हमारे देश की राजनीति में इसी संयम और समायोजन का भाव है जिसको महिलाएं ठीक ढंग से पूरा कर सकती हैं। देश और समाज की बेहतरीन के लिए महिलाओं को राजनीति में आने के लिए हर वर्ग को सहयोग करना चाहिए।

अधिवक्ता अमिता शर्मा ने कहा कि महिलाओं को राजनीति में भागीदारी के लिए सबसे बड़ी चुनौती उनका राजनीति में झुकाव न होना है, उन्होंने कहा कि महिलाओं को निर्णय लेना होगा कि वे कब तक इस बात के भरोसे बैठी रहेगी की सरकार ने उनके सुख सुविधा के हिसाब से उनके विकास के लिए नीतियां बनाईं और कार्य करें? उन्होंने कहा कि अब समय है महिलाओं को खुद मैदान में उतरकर सत्ता में हिस्सेदारी करनी होगी और अपनी नीति अपने हाथों से तय करनी होगी।
कार्यक्रम के आरंभ में मेरा रंग फाउंडेशन की संस्थापक अध्यक्ष शालिनी श्रीनेत ने उपरोक्त चर्चा में उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने यह भी बताया कि मेरा रंग फाउंडेशन गोरखपुर में पर्यावरण तथा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू कर रहा है। कार्यक्रम के समापन में पूर्वांचल सेना अध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप ने सभी अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापित किया और उपस्थित सभी अतिथियों को मेरा रंग की टीम के द्वारा स्मृति चिन्ह के रूप में पौधों व मेरा रंग सेंटर की महिलाओं के हाथ से बने थैलों को भेट दिया। कार्यक्रम का संचालन ऋचा पांडे ने किया।
चर्चा के दौरान वेद प्रकाश, डॉ रचना धूलिया, गायत्री मिश्रा, तान्या सिंह, श्वेता मिश्रा, रंजना सिंह, पूजा विश्वकर्मा, रंजीता सिंह, अनुराग पांडे, कामिनी गुप्ता, अजय सिंह, कनक, संजू, अलका होरा, निशा किन्नर, पूजा विश्वकर्मा, आशीष नंदन, रेनू सिंह, शिखा, योगेन्द्र, विकास शाही, रूपा, प्रमिला सागर, संगीता मल्ल, चंद्रेश आजमगढ़ी मौजूद रहे।
(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित)
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