स्मृति दिवस : संघर्षशील व आंदोलनकारी कॉमरेड सुरेश भट्ट

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मुंबई। मुम्बई के आराम नगर स्थित अस्मिता थिएटर के परिसर में गत 4 नवम्बर को देश के जाने माने जनवाद व समाजवाद के मुखर पक्षधर, संघर्षशील व्यक्तित्व के धनी और आम जन के सवालों को लेकर आंदोलनकारी रहे कॉमरेड सुरेश भट्ट के स्मृति दिवस पर एक आयोजन किया गया जिसका विषय था-‘आज का समय और हमारे युवा।’ 

कार्यक्रम का आयोजन कॉमरेड सुरेश भट्ट की पुत्री और चर्चित अभिनेत्री असीमा भट्ट द्वारा किया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत वरिष्ठ अभिनेत्री सविता बजाज तथा दीप्ति मिश्र (ग़ज़लकार) के द्वारा दीप जलाने और जाने माने वरिष्ठ रंगकर्मी प्रसन्ना जी के द्वारा कॉमरेड सुरेश भट्ट जी की तस्वीर पर माल्यार्पण करने के साथ की गई। 

जनवादी होने के लिए संवेदनशील होना भी एक शर्त है और जो संवेदनशील होता है, वह इन्सान-इन्सान में भेद नहीं करता, चाहे वह विरासत से प्राप्त आर्थिक सम्पन्न क्यों ना हो।

उसके भीतर आम जनजीवन की आर्थिक परेशानियों, सामाजिक विषमताओं के कारणों पर एक बेचैनी सी रहती और इन विषमताओं को कैसे मिटाया जाए, शोषण विहीन समाज की स्थापना कैसे हो, को लेकर उसकी बेचैनी बढ़ती चली जाती है। तब वह आम शोषित-पीड़ित लोगों के लिए लड़ना शुरू कर देता है, अपना पूरा जीवन उन्हीं के लिए न्योछावर कर देता है।

इन तमाम गुणों पर एकाधिकार था काॅमरेड सुरेश भट्ट में, जिनका जन्म 1930 में रामनवमी के दिन बिहार के नवादा जिले के पं. यमुना प्रसाद प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य के घर में हुआ था। पिता पं. यमुना प्रसाद का नाम शहर के सबसे अमीर लोगों में शुमार था। उनका सिनेमा हॉल और ईंट भट्ठा का व्यवसाय था। 

सुरेश भट्ट बचपन से ही मेधावी थे, बावजूद पिता ने इनके भीतर मौजूद एक विद्रोही को महसूस किया तथा उन्हें पुत्र के प्रति चिंता होने लगी थी। 

पिता चिकित्सक होने के साथ-साथ व्यवसायी भी थे। उनके घर शहर के कलेक्टर से लेकर अन्य सरकारी अधिकारियों का भी आना-जाना रहता था। इनमें अंग्रेज भी शामिल थे। चूंकि सुरेश भट्ट में देश के प्रति देश-भक्ति समा चुका था, अतः वे देश पर क़ब्जा करने वाले अंग्रेजों को पसंद नहीं करते थे।

उनके मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे 14 साल की उम्र में अंग्रेजों की गाड़ी में आग लगा दी थी। 

पढ़ाई के ही दौरान सुरेश भट्ट पंडित मदन मोहन मालवीय के संपर्क में आए। वे कबीर, विवेकानंद, राहुल सांकृत्यायन और भगत सिंह के साथ मार्क्स, लेनिन, चेगुअरा और फिडेल कास्त्रो आदि को पढ़ा।

 वे शोषण विहीन समाज की स्थापना के लिए पूंजीवादी सत्ता के खिलाफ जीवन पर्यन्त लड़ते रहे।

अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ भी आन्दोलनकारी रहे और इसी क्रम में उन्होंने रेल लाइनें उखाड़ डालीं और पोस्ट ऑफिस में आग लगा दी। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, उन्हें जेल भेज दिया गया।   

आजादी के बाद इमरजेंसी के दौरान हुए जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में भी हिस्सा लिया। उसी दौरान उन्होंने एक मासिक पत्रिका ‘लाल सलाम’ निकालना शुरू किया। वे आदिवासियों के हक़ की लड़ाई भी लड़ते रहे। 

उन्हें नक्सली होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें सात साल की कैद की सजा हुई। 

बाहर आने के बाद भी वे नहीं रूके, शोषण विहीन समाज की स्थापना को लेकर लगातार आंदोलित रहे। उनका एक ही सपना था “क्षमता के मुताबिक काम और आवश्यकता के मुताबिक भोजन” सबको उपलब्ध हो।

इन्हीं संघर्षों के बीच उन्होंने 4 नवंबर 2012 को आखिरी सांस ली। 

आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कवि संचालक देवमणि पांडेय ने कहा कि “क्रांतिकारी सुरेश भट्ट सच्चे अर्थों में जन नेता थे। वे छात्र जीवन में ही जन आंदोलनों से जुड़ गए थे और पूरी ज़िंदगी शोषितों पीड़ितों और वंचितों की लड़ाई लड़ते रहे।

इस लड़ाई के प्रति वे इतने प्रतिबद्ध और समर्पित थे कि कभी उन्होंने अपने परिवार के सुख दुख की परवाह नहीं की। उन्हें किसी पद और प्रतिष्ठा की कामना नहीं थी। समाज को ख़ुशहाल देखना ही उनका सपना था”।

“वे चाहते थे कि पिछली क़तार में खड़े लोग भी आज़ादी से सांस ले सकें। भूख और ग़रीबी से जूझने वाले लोग भी अपने अधिकार हासिल कर सकें।”

इस अवसर पर पत्रकार हरी मृदुल ने कॉमरेड सुरेश भट्ट की बेटी असीमा भट्ट द्वारा लिखित पुस्तक ‘मन लागो मेरो यार फ़क़ीरी में’ के माध्यम से कॉमरेड सुरेश भट्ट के जीवन की सादगी और समाज के लिए आजीवन निरपेक्ष भाव से किए गए उनके संघर्ष की चर्चा की।

अवसर पर अभिनेता शैलेंद्र गौड़ ने पुस्तक में प्रकाशित डॉ. कैलाश सत्यार्थी द्वारा लिखित आलेख का पाठ किया। 

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता मुंबई विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफ़ेसर डॉ. हूबनाथ पाण्डेय ने कहा कि “आज समाज में सत्ता के षड्यंत्र की वजह से जिस तरह के युवा पैदा हो रहे हैं, उनकी स्थितियां और मजबूरियां उन्हें एक कामकाजी नौकर, भीड़ का हिस्सा, निराश और कुंठित व्यक्ति, अशिक्षित और ग़ैर-अनुशासित मानवपशु बनाता जा रहा है।

जिसकी अपने और अपने परिवार के प्रति यदि थोड़ी बहुत जिम्मेदारियां हुई तो ठीक, वरना समाज के प्रति तो कोई ज़िम्मेदारी उसे नहीं महसूस हो रही है।

कार्यक्रम के दौरान अभिजीत घोषाल, विनोद दुबे, सुधाकर स्नेह ने फ़ौजी भाइयों, मां गंगा और देश-समाज पर अपने गीत प्रस्तुत किए। 

कार्यक्रम का संचालन देवमणि पाण्डेय ने किया। 

अंत में असीमा भट्ट ने सभी का आभार व्यक्त किया और धन्यवाद ज्ञापन अजित राय ने किया। 

इस अवसर पर मालती जोशी फ़ाज़ली, विजया पंत तूली माउंटेनियर, अभिनेता जहांगीर ख़ान, संतोष ओझा, फ़िल्म निर्देशक और पेंटर मनोज मौर्या, नीलिमा पाण्डेय, नीलिमा पुंडरीक, कमलेश के. मिश्र, अर्चना जौहरी, ऋचा शरद, रज़िया रागिनी, प्रतिमा सिन्हा, शैलेन्द्र राय, दीपक खेर, अभिनेता अशोक लोखंडे, रवि यादव, विनीता यादव, अज़म क़ादरी और उनकी बेगम, जयंत गाडेकर, सीमा आज़मी कुसुम तिवारी, प्रवासी भारतीय अरुणा गुप्ता जी, परवेज़ आलम, शैलेन्द्र प्रियदर्शी आदि उपस्थित रहें।

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