मोहन राकेश ने अपने बारे में पूरी ईमानदारी से लिखा : जयदेव तनेजा

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नई दिल्ली। साहित्योत्साव के पांचवें दिन ‘भारत की अवधारणा’ पर विचार-विमर्श के साथ ही प्रख्यात लेखक मोहन राकेश एवं कवि गोपालदास नीरज को उनकी जन्मशताब्दियों के अवसर पर याद किया गया। मोहन राकेश जन्मशती संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने की और बीज वक्तव्य प्रख्यात हिंदी नाट्य समालोचक जयदेव तनेजा ने दिया। आरंभिक वक्तव्य हिंदी परामर्श मंडल के संयोजक गोविंद मिश्र ने दिया।

अपने स्वागत वक्तव्य में साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने मोहन राकेश के व्यक्तित्व को बहुआयामी बताते हुए कहा कि उनके लेखन के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है। अपने आरंभिक वक्तव्य में गोविंद मिश्र ने कहा कि वह पहले ऐसे नाटककार हैं जिनके नाटक, नाटक के स्तर पर सौ फीसदी खरे उतरते हैं। उनके लेखन का द्वंद्व उनके निजी जीवन का भी द्वंद्व है और वह समाज को आंकने के लिए कई सूत्र देता है।

मोहन राकेश पर वृहद काम कर चुके जयदेव तनेजा ने कहा कि एक लेखक के रूप में मोहन राकेश हिंदी साहित्य के सबसे ज़्यादा एक्सपोस्ड लेखक हैं। उन्होंने अपने बारे में पूरी ईमानदारी और दबंगई से लिखा और स्वीकार किया। उन्होंने उनके बारे में गढ़ लिए गए बहुत से मिथकों के बारे में बात करते हुए कहा कि उन्होंने पहली बार हिंदी नाटककार को गरिमापूर्ण छवि प्रदान की। उन्होंने उनपर अपने पुराने घर, दादी और यायावरी जीवन जीने के बारे में भी विस्तार से बताया। उन्होंने उनकी डायरी आदि में लिखे उन अधूरे उपन्यासों/कहानियों आदि की विस्तार से चर्चा की, जो बाद में किसी और नाम से प्रकाशित हुए।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में माधव कौशिक ने कहा कि उनके व्यक्तित्व के बजाय हमें उनके लिखे हुए को पढ़ना चाहिए और उसपर बात करनी चाहिए। अपनी सृजनात्मकता को बचाए रखने के लिए उन्होंने अपने जीवन में कभी भी किसी बेताल को अपने कंधे पर बैठने नहीं दिया।

मोहन राकेश के नाट्य साहित्य सत्र की अध्यक्षता करते हुए एम.के. रैना ने कहा कि मोहन राकेश ने थियेटर की आत्मा को पकड़ा और उसकी भाषा ही बदल दी। उन्होंने नए नाट्य निर्देशकों से अपील की कि वे उनके नाटकों को सीमित ढांचे में न रखकर उनके साथ नए-नए प्रयोग करें।

आशीष त्रिपाठी ने कहा कि वे अपने नाटकों को एक डिजाइनर की तरह सोचते हैं। उनके नाटकों की भाषा अभिनेताओं के लिए बहुत बेहतर करने के नए आयाम खोलती है।

मोहन राकेश के कथा साहित्य पर देवेंद्र राज अंकुर की अध्यक्षता में अजित राय, शंभु गुप्त एवं वैभव सिंह ने अपने विचार व्यक्त किए। शंभु गुप्त ने कहा कि उनके कथा साहित्य में साधारण जीवन का यथार्थ है। अजित राय ने उनके नाटकों को आज के समय में स्त्री विरोधी कहा। उन्होंने मोहन राकेश की निजी जिंदगी को उनके लेखन से अलग करने की बात भी कही।

वैभव सिंह ने उन्हें संपूर्ण लेखक मानते हुए कहा कि मोहन राकेश हमेशा सत्ता की स्वीकार्यता से डरते रहे और बार-बार पलायन/निर्वासन/आत्मनिर्वासन जैसे चरित्र गढ़ कर उन्हें अलग-अलग मूड में चित्रित करते रहे। वे स्वाभाविक रूप से एक उत्कृष्ट लेखक थे।

देवेंद्र राज अंकुर ने उनके व्यक्तित्व और साहित्य को एक सा मानते हुए कहा कि वे अपने नाटकों में कहानी ही कहते हैं और अपने जीवन के कई हिस्सों का वास्तविक चित्रण करते हैं।

गोपालदास नीरज की जन्मशती पर ‘कवि नीरज: अप्रतिम रोमांटिक दार्शनिक’ शीर्षक से हुई परिचर्चा की अध्यक्षता प्रख्यात गीतकार बालस्वरूप राही ने की और इसमें उनके पुत्र मिलन प्रभात गुंजन के साथ ही अलका सरावगी, निरुपमा कोतरू और रत्नोत्तमा सेनगुप्ता ने हिस्सा लिया। ‘कथासंधि’ के अंतर्गत प्रख्यात हिंदी कथाकार जितेंद्र भाटिया का कथा-पाठ भी आज संपन्न हुआ।

अन्य आयोजित कार्यक्रमों में स्वातंत्र्योत्तर भारतीय साहित्य में राष्ट्रीयता, भारत का लोक साहित्य, साहित्य और अन्य कला-रूपों के बीच साझा बिंदु, उत्तर-पूर्वी और पूर्वी भारत के मिथक और दिव्य चरित्र आदि विषयों पर बातचीत हुई, वहीं राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन, भारत के महाकाव्य, धर्म साहित्य, मध्यकालीन भक्ति साहित्य एवं स्त्री लेखन के प्रस्फुटन पर बातचीत हुई।

सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत आज नलिनी जोशी द्वारा हिंदुस्तानी गायन प्रस्तुत किया गया।

(प्रेस विज्ञप्ति)

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