मशहूर ऐतिहासिक पत्रों में “एक हिन्दू को पत्र” (A Letter to a Hindu) की अपनी ख़ास जगह है। जिस समय हिंदू होने को फिर से परिभाषित किए जाने का प्रयास चल रहा है, ऐसे समय में यह पत्र आम हिंदुओं का मार्गदर्शन कर सकता है। इस पत्र को महान रूसी लेखक और विचारक लियो टॉलस्टॉय द्वारा 1908 में लिखा गया था। यह एक ऐतिहासिक और नैतिक दस्तावेज़ है। यह पत्र तारकनाथ दास द्वारा लियो टॉल्स्टॉय से पूछे गए सवाल के जवाब में लिखा गया था। तारकनाथ दास उस समय भारत की आज़ादी के लिए काम कर रहे एक युवा क्रांतिकारी थे। टॉलस्टॉय ने यह पत्र मूल रूप से रूसी भाषा में लिखा था,जो बाद में अंग्रेज़ी में अनुवादित होकर सबसे पहले The Indian Sociologist में छपा,फिर 1909 में महात्मा गांधी की पत्रिका-The Opinion में प्रकाशित हुआ। इस पत्र का रूसी भाषा से अंग्रेज़ी में अनुवाद लियो वीनर ने किया था।
यह पत्र दो कारणों से ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है:
1. यह टॉलस्टॉय के उपनिवेशवाद, धर्म और अहिंसा पर विचार को दर्शाता है।
2. इसने महात्मा गांधी को गहरा प्रभावित किया, जिन्होंने इसे दक्षिण अफ्रीका में अपने अखबार Indian Opinion में प्रकाशित किया था और अपने बाद के विभिन्न आंदोलनों में इस पत्र में सुझाए गए नैतिक एवं व्यावहारिक रणनीतियों को अपनाया।
यह पत्र इस समय इसलिए प्रासंगिक है कि आम हिंदू जनमानस इस समय राजनीतिक और सांस्कृतिक दुर्घर्स से गुज़र रहा है। ऐसे में लियो टॉलस्टॉय द्वारा तारकनाथ दास को लिखे इस पत्र से बहुत हद तक मार्गदर्शन पाया जा सकता है।
पृष्ठभूमि: तारकनाथ दास का सवाल
तारकनाथ दास अमेरिका में रहकर भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रचार कर रहे थे।उन्होंने टॉलस्टॉय को पत्र लिखकर पूछा था कि भारत को अंग्रेज़ी शासन से मुक्त होने के लिए क्या करना चाहिए- ख़ासकर यह सवाल कि क्या हिंसा ज़रूरी है या कोई और मार्ग संभव है ?
टॉलस्टॉय का उत्तर: “एक हिन्दू को पत्र”
टॉलस्टॉय ने अपने उत्तर में बहुत गहराई से यह समझाया कि हिंसा, घृणा या युद्ध से कभी भी सच्ची स्वतंत्रता नहीं हासिल की जा सकती। उन्होंने अहिंसा, प्रेम और नैतिक बल को सबसे शक्तिशाली हथियार बताया।
इस पत्र के मुख्य विचार
दमन तब तक होता है, जब तक हम उसे स्वीकार करते हैं
“भारतीयों की ग़ुलामी का कारण अंग्रेज़ों की शक्ति नहीं, बल्कि भारतीयों का स्वयं का सहयोग है।”
टॉलस्टॉय ने इस पत्र में लिखा है कि कोई भी सत्ता तब तक नहीं चल सकती, जब तक लोग उसका सहयोग करते हैं, चाहे वह डर से हो, लालच से या आदतन।
सच्चा धर्म केवल प्रेम है
टॉलस्टॉय ने कहा कि धर्म का असली उद्देश्य प्रेम और करुणा है, न कि पूजा-पाठ, मूर्तियाँ या बाहरी कर्मकांड।
“सच्चा धर्म केवल प्रेम है, और प्रेम ही वह शक्ति है, जो मानवता को बचा सकती है।”
हिंसा, हिंसा को जन्म देती है
टॉलस्टॉय ने अपने उस पत्र में भारत के स्वतंत्रता सेनानियों को चेतावनी दी थी कि अगर वे अंग्रेज़ों को हिंसा से हटाएंगे, तो खुद हिंसक सत्ता बन सकते हैं।
“बुराई का प्रतिकार हिंसा से मत करो।”
व्यक्ति की नैतिक ज़िम्मेदारी
हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने अंतरात्मा की आवाज़ सुने, भले ही समाज या सरकार कुछ और कहे।
नैतिक बल और आत्मबल ही असली ताकत है।
भारत का नैतिक अवसर
टॉलस्टॉय ने माना कि भारत की आध्यात्मिक विरासत (जैसे उपनिषद, भगवद गीता, बुद्ध और गांधी के विचार) में इतनी शक्ति है कि वह पूरी दुनिया को अहिंसा और प्रेम का रास्ता दिखा सकता है।
गांधी पर प्रभाव
महात्मा गांधी ने लिखा:
“टॉलस्टॉय का यह पत्र सत्य से भरा है और उसने मुझे गहराई से प्रभावित किया।”
गांधी ने इसे अपने अख़बार Indian Opinion में प्रकाशित किया और बाद में टॉलस्टॉय से निजी पत्र-व्यवहार भी किया। यही संवाद गांधी के सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों की नींव बना।
“एक हिन्दू को पत्र” (A Letter to a Hindu) से कुछ प्रसिद्ध अंश
“कोई भी सरकार तभी तक शासन कर सकती है, जब तक लोग उसका सहयोग करें। अगर लोग सहयोग देना बंद कर दें, तो वह सत्ता स्वयं गिर जाती है।”
“एक व्यापारिक कंपनी ने दो सौ मिलियन लोगों को ग़ुलाम बना लिया, यह बात सुनकर कोई स्वतंत्र व्यक्ति यह नहीं समझ पाएगा कि यह कैसे हुआ।”
“अंग्रेज़ों ने भारत को छीना नहीं, हमने उन्हें सौंप दिया।”
अंतत:
“एक हिन्दू को पत्र” केवल एक राजनीतिक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि एक नैतिक और आत्मिक आह्वान है। टॉलस्टॉय ने यह स्पष्ट किया कि हिंसा से नहीं, केवल प्रेम और सच्चाई के रास्ते से ही असली आज़ादी संभव है।
इस पत्र ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया नैतिक दृष्टिकोण दिया और गांधी के नेतृत्व में यही विचार बाद में सत्याग्रह और अहिंसा के रूप में सामने आए, जिसने न केवल भारत को बदल दिया, बल्कि दुनिया भर के आंदोलनों को भी गहराई से प्रेरित किया।इस समय इस पत्र की प्रासंगिकता इसलिए और भी बढ़ गयी है, क्योंकि इसमें हिंदू होने को स्पष्ट किया गया है। लियो टॉलस्टॉय ने इस पत्र की शुरुआत जिन तीन उद्धरणों से की है, वे तीन उद्धरण ही दरअसल धर्मों और मनुष्य होने का सार है:
जो कुछ भी मौजूद है, वह एक ही है। लोग इस एक को ही अलग-अलग नामों से पुकारते हैं -वेद
ईश्वर प्रेम है, और जो प्रेम में होता है, वह ईश्वर में होता है, और ईश्वर उसमें होता है। आई जॉन, 4. 16.
ईश्वर एक संपूर्णता है; हम उसके अंश हैं
-विवेकानंद द्वारा वेदों की शिक्षा की व्याख्या
(उपेंद्र चौधरी वरिष्ठ पत्रकार हैं।)