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ज़रूरी ख़बर

इस्तांबुल की फ़िज़ाओं में इंसानियत की सदा-जब आसिफ मुज़तबा की ख़ामोश आंखों से रौशनी बह निकली

इस्तांबुल/नई दिल्ली। कुछ लोग तारीख़ नहीं बदलते, तर्ज़-ए-फ़िक्र बदलते हैं। कुछ नाम अपने वजूद से नहीं, अपने असर से ज़िंदा रहते हैं। और कुछ कामयाबियां [more…]

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तहज़ीब की ताबानी पर साया-ए-सियाही- औरंगज़ेब से बहादुर शाह ज़फ़र तक तारीख़ की तौहीन का दर्दनाक फ़साना

तहज़ीब की रूह कभी-कभी चीख़ती नहीं, सिसकती है। वो शोर नहीं मचाती, बस ख़ामोश होकर हमारी पेशानी से अपना नूर वापस ले लेती है। और [more…]