इस्तांबुल की फ़िज़ाओं में इंसानियत की सदा-जब आसिफ मुज़तबा की ख़ामोश आंखों से रौशनी बह निकली
इस्तांबुल/नई दिल्ली। कुछ लोग तारीख़ नहीं बदलते, तर्ज़-ए-फ़िक्र बदलते हैं। कुछ नाम अपने वजूद से नहीं, अपने असर से ज़िंदा रहते हैं। और कुछ कामयाबियां [more…]
इस्तांबुल/नई दिल्ली। कुछ लोग तारीख़ नहीं बदलते, तर्ज़-ए-फ़िक्र बदलते हैं। कुछ नाम अपने वजूद से नहीं, अपने असर से ज़िंदा रहते हैं। और कुछ कामयाबियां [more…]
तहज़ीब की रूह कभी-कभी चीख़ती नहीं, सिसकती है। वो शोर नहीं मचाती, बस ख़ामोश होकर हमारी पेशानी से अपना नूर वापस ले लेती है। और [more…]