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बीच बहस

मनोज कुमार झा का लेख: कविता राजनीति की आत्मा है, यह हमेशा से संसद का हिस्सा रही है

भारत की संसद के पवित्र हॉल में, जहां कानून बनाये जाते हैं और नियति को आकार दिया जाता है, हमेशा शब्दों का निर्विवाद प्रभाव रहा [more…]

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राजनीति

मनोज झा-ग़ज़ाला जमील का लेख: सामाजिक न्याय ‘पहचान की राजनीति’ नहीं, धड़कते दिलों की उम्मीद है

भारत में जाति को लेकर मुख्य समझ एक सांस्कृतिक परिघटना के रूप में जाति के विचार पर केंद्रित रही है। जाति और व्यापक सामाजिक न्याय [more…]

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राजनीति

आरजेडी सांसद मनोज झा का नेहरू जी को पत्र

मैं इन बातों को लिखने की सोच रहा हूं क्योंकि हर दिन आपके और आपके प्रिय विचारों के खिलाफ मिथ्या अभियान चलाए जाते हुए देखता [more…]

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बीच बहस

फ़िलिस्तीन के हमारे प्रिय लोगों, हमारी चुप्पी के लिए हमें क्षमा करें

(मनोज कुमार झा लिखते हैं: गाजा हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के प्रस्ताव पर मतदान न करना अपने इतिहास और दोनों जगहों की अवाम [more…]

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बीच बहस

शोकसंतप्त और शर्मिंदा गणतंत्र की ओर से एक नागरिक का माफ़ीनामा

श्रध्देय मृतक साथी गण प्रणाम!! यह पत्र मूलतः आपमें से उन मृतात्माओं के नाम है जिन्हें हमने बीते ढाई-तीन महीनों में खो दिया है। आपमें [more…]

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बीच बहस

सरकार की नाकामी ‘सिस्टम’ के मत्थे!

मेरे प्यारे सिस्टम जी, जयहिंद। मैं बड़ी बेकरारी से आपका पता ढूंढ़ रहा था, जिससे कि अपने विचारों को आपके सम्मुख प्रस्तुत कर सकूं, लेकिन [more…]