चैत्र को आखिर क्यों माना जाता है सम्वत का पहला महीना?

क्या देश की एकता और समरसता से कैलेंडर या पंचांग का कोई नाता हो सकता है? आज़ादी के बाद, 1952…

असमिया लोगों को बीजेपी ग़रीब और पिछड़ों से भी ज्यादा निपट मूर्ख मानती है!

‘गुजरात मॉडल’ का नगाड़ा बजाने के बाद संघ-बीजेपी को ‘डबल इंजन’ का झुनझुना बजाने की जैसी लत लग गयी। इसका…

क्या बाड़ ही खाने लगा है बीजेपी का खेत? विशेष संदर्भ उत्तराखंड

कुर्सी पर रहते हुए अपनी आभा गँवाने वाले भगवा नेताओं की सूची में त्रिवेन्द्र सिंह रावत सबसे नया नाम है।…

कॉरपोरेट की रीढ़ तोड़े बग़ैर किसान नहीं हो पाएंगे कामयाब

किसान आन्दोलन ने 100 दिन पूरा करके दुनिया में चले सबसे लम्बे प्रदर्शन का रिकॉर्ड बना लिया है। शायद, ये…

बिहार चुनाव के बीच मोदी सरकार को चुनाव आचार संहिता से छूट क्यों मिली?

चुनाव आयोग, क्या सरकारी कर्मचारियों को मतदाता नहीं मानता? क्योंकि यदि सरकारी कर्मचारी भी मतदाता हैं तो चुनाव की घोषणा…

पाटलिपुत्र की जंगः बिहार में सबसे दिलचस्प बना ‘गच्चेबाज़’ बनाम ‘सौदागर’ का खेल

बिहार की सियासी बिसात पर वैसे तो सभी ख़ेमों में भितरघाती चालों की सरगर्मियां हैं, लेकिन इसने घाट-घाट का पानी…

राजनीति को अपराधियों से बचाये बग़ैर नहीं बचेंगी बेटियां

हाथरस वाले निर्भया कांड ने एक बार फिर देश के सामने महिलाओं के प्रति होने वाला अपराध सबसे बड़ा मुद्दा…

हाथरस के निर्भया कांड को बाबरी मस्जिद के चश्मे से भी देखिए

एक मशहूर ग़ज़ल का मतला है कि ‘बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी, लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे…’।…

‘बिहार चुनाव’ के लिए की गयी ‘मोदी को किसानों का भगवान’ बनाने की ब्रॉन्डिंग

जो कोरोना से नहीं घबराये, प्रवासी मज़दूरों की दुर्दशा से बेचैन नहीं हुए, बेरोज़गारी और नौकरियाँ ख़त्म करने वाली महामारी…

यक़ीनन, अबकी बार बिहार पर है संविधान बचाने का दारोमदार

संघियों का एक ही एजेंडा है कि सांसद और विधानसभाओं को ख़रीदकर या सैद्धान्तिक रूप से ध्वस्त करके भारतीय लोकतंत्र…