Author: ज़ाहिद खान

  • गीत और संगीत का अमर हमसफर यानी इंदीवर

    गीत और संगीत का अमर हमसफर यानी इंदीवर

    ‘‘चंदन सा बदन चंचल चितवन’’, ‘‘फूल तुम्हें भेजा है ख़त में’’, ‘‘कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे’’, ‘‘चांद को क्या मालूम चाहता है’’, ‘‘ओह रे ताल मिले नदी के जल में’’, ‘‘नदिया चले, चले रे धारा’’, ‘‘है प्रीत जहाँ की रीत सदा’’, ‘‘जो तुमको हो पसंद वही बात करेंगे’’, ‘‘दुश्मन न करे दोस्त ने जो…

  • कृश्न चंदर की पुण्यतिथि: कड़वी हकीकत का सच्चा अफसानानिगार

    कृश्न चंदर की पुण्यतिथि: कड़वी हकीकत का सच्चा अफसानानिगार

    उर्दू अदब, खास तौर से उर्दू अफसाने को जितना कृश्न चंदर ने दिया, उतना शायद ही किसी दूसरे अदीब ने दिया हो। इस मामले में सआदत हसन मंटो ही उनसे अव्वल हैं, वरना सभी उनसे काफी पीछे। उन्होंने बेशुमार लिखा, हिंदी और उर्दू दोनों ही जबानों में समान अधिकार के साथ लिखा। कृश्न चंदर की जिंदगी के ऊपर तरक्कीपसंद…

  • साहिर का जन्मशती वर्षः ‘आओ कि कोई ख्वाब बुनें कल के वास्ते’

    साहिर का जन्मशती वर्षः ‘आओ कि कोई ख्वाब बुनें कल के वास्ते’

    साल 2021, शायर-नग्मा निगार साहिर लुधियानवी का जन्मशती साल है। इस दुनिया से रुखसत हुए, उन्हें एक लंबा अरसा हो गया, मगर आज भी उनकी शायरी सिर चढ़कर बोलती है। उर्दू अदब में उनका कोई सानी नहीं। 8 मार्च, 1921 को लुधियाना के नजदीक सोखेवाल गांव में जन्मे साहिर लुधियानवी का असली नाम अब्दुल हई…

  • फिराक की पुण्यतिथिः हिंदुस्तान के माथे का टीका और उर्दू ज़बान की आबरू

    फिराक की पुण्यतिथिः हिंदुस्तान के माथे का टीका और उर्दू ज़बान की आबरू

    ‘‘एक उम्दा मोती, खु़श लहजे के आसमान के चौहदवीं के चांद और इल्म की महफ़िल के सद्र। ज़हानत के क़ाफ़िले के सरदार। दुनिया के ताजदार। समझदार, पारखी निगाह, ज़मीं पर उतरे फ़रिश्ते, शायरे-बुजु़र्ग और आला। अपने फ़िराक़ को मैं बरसों से जानता और उनकी ख़ासियतों का लोहा मानता हूं। इल्म और अदब के मसले पर…

  • जयंतीः गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा ने ही आकाशवाणी को दिया ‘विविध भारती’

    जयंतीः गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा ने ही आकाशवाणी को दिया ‘विविध भारती’

    वे हिंदी की आन-बान और शान थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि-गीतकार, लेखक, अनुवादक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और प्रशासक अपने जीवन में पंडित नरेन्द्र शर्मा को जो भी भूमिका मिली, उन्होंने उसके साथ पूरा न्याय किया। हिंदी साहित्य में प्रगतिवाद के वे प्रारंभिक कवियों में से एक थे। साल 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में…

  • हिंदू- मुस्लिम एकता के एंबेसडर थे मौलाना आजाद

    हिंदू- मुस्लिम एकता के एंबेसडर थे मौलाना आजाद

    स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री, महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद की आज 63वीं पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 22 फरवरी, 1958 को मौलाना आजाद हमसे हमेशा के लिए जुदा हो गए थे। शिक्षा के क्षेत्र में मौलाना आजाद का योगदान अतुल्यनीय है। आजादी के बाद शिक्षा के क्षेत्र में जो…

  • जोश मलीहाबादी की पुण्यतिथि: मेरा नाम इंकलाबो, इंकलाबो, इंकिलाब

    जोश मलीहाबादी की पुण्यतिथि: मेरा नाम इंकलाबो, इंकलाबो, इंकिलाब

    उर्दू अदब में जोश मलीहाबादी वह आला नाम है, जो अपने इंकलाबी कलाम से शायर-ए-इंकलाब कहलाए। जोश का सिर्फ यह एक अकेला शे’र,‘‘काम है मेरा तगय्युर (कल्पना), नाम है मेरा शबाब (जवानी)/मेरा नाम ‘इंकलाबो, इंकलाबो, इंकिलाब।’’ ही उनके तआरुफ और अज्मत को बतलाने के लिए काफी है। वरना उनके अदबी खजाने में ऐसे-ऐसे कीमती हीरे-मोती हैं, जिनकी चमक कभी कम नहीं होगी।…

  • पुण्यतिथिः नामवर सिंह को बाबा नागार्जुन मानते थे चलता-फिरता विद्यापीठ

    पुण्यतिथिः नामवर सिंह को बाबा नागार्जुन मानते थे चलता-फिरता विद्यापीठ

    हिंदी साहित्य के आकाश में नामवर सिंह उन नक्षत्रों में से एक हैं, जो अपनी चमक हमेशा बिखेरते रहेंगे। उनकी चमक कभी खत्म नहीं होगी। नामवर की विद्वता का कोई सानी नहीं था। साहित्य, संस्कृति, राजनीति और समाज कोई सा भी विषय हो, वे धारा प्रवाह बोलते थे। उनको सुनने वाले श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाया…

  • ‘मैं उनके गीत गाता हूं, जो शाने पर बगावत का अलम लेकर निकलते हैं’

    ‘मैं उनके गीत गाता हूं, जो शाने पर बगावत का अलम लेकर निकलते हैं’

    जां निसार अख्तर, तरक्कीपसंद तहरीक से निकले वे हरफनमौला शायर हैं, जिन्होंने न सिर्फ शानदार ग़ज़लें लिखीं, बल्कि नज़्में, रुबाइयां, कितआ और फिल्मी नगमें भी उसी दस्तरस के साथ लिखे। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 18 फरवरी, 1914 को जन्मे सैय्यद जां निसार हुसैन रिजवी उर्फ जां निसार अख्तर को शायरी विरासत में मिली। उनके…

  • गुलाम रब्बानी की जयंती: रब्बानी ने थामा था घर से बगावत करके लाल झंडा

    गुलाम रब्बानी की जयंती: रब्बानी ने थामा था घर से बगावत करके लाल झंडा

    मौलाना हामिद हसन कादरी और मैकश अकराबादी की अदबी सोहबतों में उनका शे’री शौक परवान चढ़ा। तालीम पूरी होने के बाद, उन्होंने कुछ दिन वकालत की। शायराना मिज़ाज की वजह से उन्हें यह पेशा ज्यादा समय तक रास नहीं आया। जमींदार परिवार और परिवार के अंग्रेजपरस्त होने के बाद भी गुलाम रब्बानी ताबां की अपनी…