पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति याहया ख़ान की आपत्ति के बाद भारत के राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद को मोरक्को के शहर रबात से ख़ाली हाथ लौटना पड़ा था। याहया ने कहा था कि अगर भारत को शामिल करना है तो पाकिस्तान इस्लामी देशों के संगठन यानी ओआईसी की बैठक में ग़ैर मौजूद रहना चाहेगा। संगठन की पहली ही बैठक से तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को इसकी अहमियत का अहसास हो गया था, उन्हीं के आग्रह पर फ़ख़रुद्दीन अली अहमद को रबात भेजा गया था, लेकिन अहमद अपनी बात मनवाने में कामयाब नहीं रहे। भारत की दलील थी कि दुनिया में मुसलमानों की आबादी का अकेला 11 प्रतिशत भारत में रहता है।
कहना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कामयाबी थी कि इतने बरस बाद पाकिस्तान के बायकॉट के बावजूद फरवरी 2019 में इसी संगठन के अबू धाबी में आयोजित दो दिन के सम्मेलन में भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को आमंत्रित किया गया और उन्होंने आतंकवाद के मुद्दे पर ओआईसी के 1 और 2 मार्च के सम्मेलन में भारत का पक्ष रखा। जबकि पाकिस्तान के आग्रह पर सिर्फ पांच दिन पहले ओआईसी ने कश्मीर में भारतीय सेना की भूमिका पर बैठक बुलाकर रोष प्रकट किया था।
लेकिन 14 महीने में ऐसा क्या हो गया कि जो संयुक्त अरब अमीरात, पाकिस्तान जैसी एकमात्र इस्लामी परमाणु शक्ति और इस्लामी देशों में सबसे शक्तिशाली सेना के बावजूद भारत का पक्ष लेता नज़र आ रहा था, उसी की जनता और राजपरिवार के लोग आज भारत के विरोध में आवाज़ बुलंद करते हुए नज़र आ रहे हैं? इतना ही नहीं संयुक्त अरब अमीरात की आपत्ति सामने आने के साथ ही इस्लामी देशों के संगठन ने भी भारत की निंदा करते हुए प्रस्ताव पारित कर दिया। पहले यह समझ लेते हैं कि इस्लामी देशों का संगठन क्या है, भारत के विरुद्ध यह प्रस्ताव क्या कहता है और इसके प्रभाव कितने दूरगामी हो सकते हैं।
ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज यानी ओआईसी की स्थापना 1969 में की गई थी। आज 57 इस्लामी देशों के इस संगठन में उत्तरी अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर बाकी सभी महाद्वीपों के देश शरीक हैं जिसमें एशिया और अफ्रीका का बहुमत है। ज़ाहिर है इसी क्षेत्र में भारत के आर्थिक, सामरिक, राजनीतिक और भौगोलिक हित निहित हैं। ओआईसी का मुख्यालय जेद्दाह, सऊदी अरब में है। जेद्दाह यानी सऊदी अरब, जहाँ सबसे अधिक विदेशी के तौर पर नौकरियाँ करने वाले भारतीय हैं। दुनिया के तीन सबसे अधिक मुस्लिम अधिसंख्य देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और इंडोनेशिया से यह संख्या कई गुना अधिक है। इसी तरह क़तर, बहरीन, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान और इराक़ में भी सबसे अधिक विदेशी नागरिक के तौर पर नौकरी करने वालों की संख्या में भारतीय सबसे अधिक हैं।
पूरी दुनिया से भारत को क़रीब 55 अरब डॉलर यानी क़रीब 42 खरब रुपए विदेशों में नौकरी करने वालों के मेहनताने के तौर पर प्राप्त होते हैं। पिछले कई सालों से दुनिया में भारत विदेशी रेमिटेंस प्राप्त करने वाला एक नम्बर देश है। हमारी लाखों की जनसंख्या को रोज़गार देने वाले अरब का भारत के प्रति गुस्सा हमें विचलित करना चाहिए, लेकिन स्थिति सुधरने की बजाय लगातार बिगड़ती जा रही है।
ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज यानी ओआईसी ने अप्रैल 2016, मई 2018 और इसके बाद अगस्त 2019 में कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन और सेना के दमन के आरोप लगाते हुए भारत को स्थितियाँ सुधारने और कश्मीरियों के साथ न्याय करने की अपील की। आम अरब में ओआईसी के इस क़दम को लेकर कोई विचलन नहीं देखा गया लेकिन इस साल दिल्ली दंगों में मुसलमानों के साथ हिंसा, पुलिस की दंगाइयों के साथ मिलकर पत्थर फेंकने और मस्जिद पर कब्जे के वीडियो से अरब में भारत के प्रति राय काफी बदली।
रहा सहा काम कोरोना वायरस फैलने के बाद इसका इल्ज़ाम तबलीगी जमात के माध्यम से मुसलमानों पर लगाए जाने और सुबूत के तौर पर कई वीडियो और अंग्रेज़ी की इस्लामोफोबिया से ग्रस्त मीडिया क्लिप ने अरब जगत की यह राय बना दी कि भारत में हर विपत्ति और संकट के लिए मुसलमानों को दोषी बताकर उनका देशव्यापी उत्पीड़न किया जा रहा है। देखते ही देखते संयुक्त अरब अमीरात की राजकुमारी हिंद अलक़सीमी के ट्विटर हैंडल @Ladyvelvet_HFQ के एक ट्वीट ने अरब जगत में हंगामा खड़ा कर दिया।
उन्होंने दुबई में कार्यरत किसी सौरभ उपाध्याय के मुसलमानों के लिए नफरत से भरे ट्वीट को रिट्वीट करते हुए उन्हें देश छोड़ने के लिए ट्विटर पर ही पुलिस और सरकार को आदेश दे डाले। सौरभ को आनन-फानन करोड़ों रुपए का कारोबार छोड़ना पड़ा। इस्लाम और मुस्लिम विरोध ने उन्हें एक ही झटके में सड़क पर ला दिया। उन्होंने बाद में अपना ट्विटर, फेसबुक, लिंक्ड इन और वेबसाइट सब डाउन किए, लेकिन तब तक उनकी विदाई की तैयारी कर ली गई। ओआईसी ने भी भारत में इस्लामोफोबिया के बढ़ते स्तर पर चिंता जताई।
राजकुमारी अलक़सीमी ने अपने ट्वीट में यह भी लिखा कि ‘यह उदाहरण है’। उनकी देखा देखी कुवैत से वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का पूरा दल ही खड़ा हो गया, जो भारत में मुस्लिमों के उत्पीड़न के बदले के तौर पर सबसे पहले अरब में रहकर नफरत फैलाने वालों को निकालने में जुट गया। भारत के लिए स्थिति काफी विकट हो गई। कुछ लोगों की नौकरी जाना उतनी बड़ी चिन्ता नहीं, जितनी बड़ी चिन्ता है अरब में भारत के प्रति जनमत का ख़राब होना। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपील की कि कोरोना वायरस को किसी नस्ल से नहीं जोड़ा जा सकता।
संयुक्त अरब अमीरात में भारत के राजदूत पवन कपूर ने ट्वीट किया कि अमीरात में काम करने वाले भारतीयों को याद रखना चाहिए कि भेदभाव हमारे नैतिक मूल्यों के विपरीत है। भारत के क़तर में दूतावास ने कहा कि नकली ट्विटर खातों की मदद से दोनों देशों के बीच के संबंध खराब करने की कोशिश की जा रही है, जबकि ओमान में भारतीय दूतावास ने दोनों देशों के संबंधों का हवाला दिया। अरब के कई वेरीफाइड ट्विटर खातों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निशाना बनाया जा रहा है और भारत में मुसलमानों के प्रति हिंसा के लिए आरएसएस को दोषी बताया जा रहा है। इसमें अधिकांश ट्वीट की भाषा अरबी है यानी ट्वीट करने वाले अपनी जनता को आरएसएस के प्रति आगाह कर रहे हैं।
अब भी अरब और भारत के लोगों के बीच ट्विटर वॉर चल रही है। कई हिन्दू राष्ट्रवादी कहलाए जाने वाले खातों से अब भी अरब के ट्विटरधारकों को या तो गालियाँ बकी जा रही हैं या फिर उन्हें भारत के मुसलमानों के नाम पर देश के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देने की चेतावनी दी जा रही है। यह ट्विटर बहस इतनी गंभीर है कि सरकार के तनाव रोकने के प्रयासों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। यह सही बात है कि पाकिस्तान स्थित कई नकली ट्विटर खातों से भी इस आग में घी डालने का काम किया गया।
राजकुमारी अलक़सीमी ने बाद में ‘द वायर’ को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि वह भारत के प्रति अच्छी राय रखती हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मेरे धर्म, मेरे पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद और मेरे देश अरब को गाली दी जाए। भारत और अरब के बीच यह नागरिक तनाव है, सरकारी नहीं। इससे जनता की राय प्रभावित हो रही है। आर्थिक संकट से जूझ रहे हमारे देश के लिए अरब में इस समय जनमत ख़राब होना शुभ संकेत नहीं है।
(लेखक कूटनीतिक मामलों के जानकार हैं।)
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