हर साल की तरह इस बार भी सरकार ने बजट को “सबका विकास“, “आर्थिक सुधार“, और “आत्मनिर्भर भारत“ जैसे खोखले नारों में लपेटकर पेश किया है। लेकिन असलियत क्या है? क्या यह बजट वास्तव में गरीबों, युवाओं, किसानों और महिलाओं को सशक्त बनाएगा, या फिर यह धन को आम जनता से निकालकर कॉरपोरेट घरानों और विदेशी वित्तीय संस्थानों की तिजोरियों में भरने की योजना मात्र है? आइए, इस बजट की असली तस्वीर देखें और समझें कि कैसे इसे ‘जनता के शोषण का दस्तावेज़’ कहा जा सकता है।
1. 11.21 लाख करोड़ का पूंजीगत व्यय: किसके लिए?
सरकार ने दावा किया है कि यह बजट इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास को बढ़ावा देगा। लेकिन “पूंजीगत व्यय” (Capital Expenditure) के नाम पर 11.21 लाख करोड़ का आवंटन असल में किसके लिए है? इस पैसे का बड़ा हिस्सा उन्हीं ठेकेदारों, निजी कंपनियों और उद्योगपतियों के हाथों में जाएगा जो पहले से ही संसाधनों पर नियंत्रण रखते हैं।
- सड़कें, हवाई अड्डे, रेलवे: यह सब निजी कंपनियों के लिए सोने की खान हैं। सरकार टैक्स के पैसे से बुनियादी ढांचा बनाती है, और फिर उसे औने-पौने दामों में निजी कंपनियों को सौंप देती है।
- “विकास” का मतलब निजीकरण: 2019 से 2023 के बीच 4.3 लाख करोड़ की सरकारी संपत्तियां बेची गईं। अब इस बजट में 10 लाख करोड़ की “एसेट मोनेटाइजेशन” योजना का मतलब साफ़ है-सार्वजनिक संपत्तियों को बेचने की नई साजिश।
- सरकारी कंपनियां घाटे में, मगर निजी कंपनियां फायदे में! एयर इंडिया, भेल, एचपीसीएल जैसी सरकारी कंपनियों को नुकसान में दिखाकर बेचा जा रहा है, जबकि रिलायंस, अडानी और टाटा की कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं। क्या यह सिर्फ़ संयोग है?
2. टैक्स में छूट या भ्रमजाल?
सरकार ने दावा किया है कि 12 लाख तक की आय पर टैक्स नहीं लगेगा। लेकिन असलियत क्या है?
- “कराधान भार” (Tax Burden) किस पर पड़ रहा है?
- भारत में अप्रत्यक्ष कर (GST) का बोझ गरीबों और मध्य वर्ग पर ज़्यादा है। 2023 में केंद्र सरकार की कुल टैक्स कमाई का 70% हिस्सा अप्रत्यक्ष करों से आया।
- एक मजदूर, जो रोज़मर्रा की चीज़ें खरीदता है, वह भी 18% GST भरता है, जबकि बड़े पूंजीपतियों को “कर छूट” (Tax Exemptions) दी जाती हैं।
- 2023 में केवल 10% सबसे अमीर भारतीयों ने कुल आयकर का 80% भुगतान किया, जबकि कई अरबपति कंपनियां जीरो टैक्स देती हैं!
- बीमा क्षेत्र में 100% FDI:
- अब विदेशी कंपनियां आपके बीमा प्रीमियम से मुनाफा कमाएंगी।
- बीमा कंपनियां “जोखिम” (Risk) से नहीं, बल्कि ग्राहकों की जेब से मुनाफा कमाती हैं। जब सरकार बीमा क्षेत्र को विदेशी हाथों में सौंप देती है, तो इसका अर्थ है कि आपकी गाढ़ी कमाई का हिस्सा अब विदेशी वित्तीय संस्थानों को जाएगा।
3. कर्ज़ में जकड़ने का षड्यंत्र!
सरकार ने गरीबों और छोटे उद्यमियों को आर्थिक आज़ादी देने का दावा किया है:
- स्ट्रीट वेंडर्स को 30,000 तक का UPI-लिंक्ड क्रेडिट कार्ड।
- महिलाओं, दलितों और आदिवासियों के लिए 2 करोड़ तक का कर्ज़।
- छोटे उद्योगों के लिए 10,000 करोड़ का फंड।
लेकिन यह मदद है या जाल?
- “ऋण आधारित अर्थव्यवस्था” (Debt-Driven Economy) क्या होती है?
- जब गरीबों को कर्ज़ दिया जाता है, तो वे उसे चुकाने के लिए और अधिक मेहनत करते हैं। लेकिन अगर बाज़ार में मंदी आ जाए, या कोई प्राकृतिक आपदा आ जाए, तो यह कर्ज़ बोझ बन जाता है।
- 2023 में 5.3 लाख करोड़ के कृषि ऋण माफ किए गए, लेकिन इसका फायदा केवल बड़े किसानों और कॉरपोरेट फार्मिंग कंपनियों को मिला, जबकि छोटे किसान आत्महत्या करते रहे।
- भारत में औसतन हर दिन 28 किसान आत्महत्या करते हैं।
- गरीबों को कर्ज़ दो, अमीरों का कर्ज़ माफ़ करो?
- 2017 से 2023 के बीच सरकार ने 10.72 लाख करोड़ के कॉरपोरेट लोन माफ़ किए।
- वहीं, किसानों का कर्ज़ माफ करने की मांग हर बार ठुकरा दी जाती है।
4. शिक्षा और स्वास्थ्य: खोखले वादे, असली हमले
सरकार ने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी घोषणाएं की हैं:
- 10,000 मेडिकल सीटें बढ़ेंगी।
- 50,000 अटल टिंकरिंग लैब्स स्कूलों में बनाई जाएंगी।
- IITs में 10,000 नई फेलोशिप दी जाएंगी।
लेकिन असलियत?
- 2014 के बाद से सरकारी स्कूलों और विश्वविद्यालयों का बजट लगातार घटाया जा रहा है, जबकि निजी शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- 2023 में, एम्स जैसे संस्थानों के बजट में 30% की कटौती की गई, जबकि निजी अस्पतालों को टैक्स छूट दी गई।
- सरकारी स्कूलों की संख्या कम हो रही है, जिससे मजबूरन गरीबों को महंगे निजी स्कूलों में जाना पड़ता है।
यह “सार्वजनिक सेवाओं के निजीकरण” (Privatization of Public Services) का सबसे बड़ा उदाहरण है।
5. बिहार को ‘खुश’ करने का खेल
बिहार को हवाई अड्डे, कोसी नहर, मखाना बोर्ड और नई इंडस्ट्रीज का वादा मिला। लेकिन क्या यह “असली विकास” है, या सिर्फ़ चुनावी सौगात?
- चुनाव से पहले बिहार को बड़े वादे, चुनाव के बाद बजट की कटौती।
- पिछले 10 सालों में बिहार के लिए घोषित परियोजनाओं का 60% अधूरा पड़ा है।
- क्या कोसी नहर परियोजना अगले चुनाव तक पूरा हो जाएगी, या यह सिर्फ़ एक “प्रचार स्टंट” है?
बजट 2025 जनता का नहीं, धन्नासेठों का है!
बजट 2025 को देखने के बाद कुछ स्पष्ट है:
- सरकार आम लोगों से टैक्स लेती है और उसे कॉरपोरेट्स को छूट और कर्ज़ माफी के रूप में सौंप देती है।
- गरीबों को कर्ज़ में डुबोकर अमीरों का साम्राज्य और मजबूत किया जा रहा है।
- सार्वजनिक सेवाओं को कमजोर कर निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- विकास की योजनाएँ सिर्फ़ चुनावी जुमले हैं, असल में उनका क्रियान्वयन नहीं होता।
यह बजट आर्थिक न्याय का दस्तावेज़ नहीं, बल्कि “संपत्ति और शक्ति का पुनर्वितरण अमीरों के पक्ष में” करने का सुनियोजित षड्यंत्र है!
(मनोज अभिज्ञान स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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