दिल्ली पुलिस ने जानबूझकर कर तो बचाव का कवच नहीं दे दिया जज साहब को !

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दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट के  मुख्य न्यायाधीश को 16 घंटे बाद अग्निकांड की सुचना देकर तथा मौके से जली नोटों और मलबे को अपने कब्जे में लेकर पंचनामा न करके दिल्ली हाइकोर्ट के जज यशवंत वर्मा को बचाव का कवच मुहैया करा दिया है। अभी तो मामला जाँच का विषय है परन्तु जाँच के पहले ही पुलिस लापरवाही अथवा जानबूझकर साक्ष्य मिटाने से पूरा मामला न केवल रहस्यमय बन गया है  बल्कि इसमें सरकार न्यायपालिका के बड़े-बड़े प्लेयरों की अपरोक्ष भूमिका भी संदिग्ध दिखाई पड़ रही है। आग की घटना 14 मार्च 2025 की रात 11:35 बजे हुई थी, और मुख्य न्यायाधीश को संभवतः 15 मार्च को दोपहर 3: 35 बजे सूचित किया गया। 

14 मार्च 2025 को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आधिकारिक निवास पर आग लग गई थी। यह घटना रात 11:35 बजे की थी, और अग्निशमन विभाग तथा पुलिस तुरंत मौके पर पहुंची। आग को कुछ मिनटों में नियंत्रित कर लिया गया, लेकिन बाद में पुलिस ने वहां बड़ी मात्रा में नकदी पाई, जो कि गैर-हिसाब की मानी गई।

आग की घटना रात 11:35 बजे हुई थी, और संभावना है कि मुख्य न्यायाधीश को 15 मार्च को दोपहर 3:35 बजे सूचित किया गया, जो 16 घंटे बाद है। यह मामला न्यायिक कदाचार के आगे अपराध और सबूत मिटाने का बन गया है क्योंकि अभी तक मौके पर मौजूद परिजनों, नौकरों, सुरक्षाकर्मियों से किसी तरह की पूछताछ नहीं की गयी।

एक अप्रत्याशित पहलू यह है कि दिल्ली अग्निशमन विभाग के प्रमुख अतुल गर्ग ने कहा कि अग्निशमन कर्मियों ने आग बुझाने के दौरान कोई नकदी नहीं पाई, लेकिन बाद में पुलिस ने नकदी की खोज की, जिससे समयरेखा में और देरी हुई। दिल्ली फायर सर्विस के चीफ के दो बयान सामने आये हैं- 

1. 21 मार्च: दिल्ली फायर सर्विस के प्रमुख अतुल गर्ग ने कहा कि 14 मार्च की रात 11:35 बजे आग की सूचना मिली। आग स्टोर रूम में लगी थी, जहां स्टेशनरी और घरेलू सामान था। आग बुझाने के दौरान कोई नकदी नहीं मिली।

2. 22 मार्च: दिल्ली फायर सर्विस के प्रमुख अतुल गर्ग ने कहा कि मैंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है कि कैश नहीं मिला है।स्रोत: दैनिक भास्कर

एक रात ने बदल दी कहानी

14 मार्च 2025 की रात 11:43 बजे दिल्ली पुलिस को एक पीसीआर कॉल मिली। कॉल में बताया गया कि 30 तुगलक क्रेसेंट कोठी में आग लग गई है। ये कोठी दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा को आवंटित है। इस खबर ने न सिर्फ़ पुलिस और अग्निशमन विभाग को हरकत में ला दिया, बल्कि आगे चलकर एक बड़े विवाद को जन्म दिया। दिल्ली पुलिस ने इस घटना पर सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र भेजा, जिसमें आग के बाद स्टोर रूम से अधजली बोरियों में भारतीय मुद्रा के अवशेष मिलने की बात कही गई। जस्टिस वर्मा ने इसे अपने खिलाफ साज़िश बताया, लेकिन पुलिस के इस पत्र ने पूरे मामले को नया मोड़ दे दिया।

दिल्ली पुलिस के पत्र के मुताबिक, 14 मार्च 2025 की रात 11:43 बजे एक पीसीआर कॉल के ज़रिए सूचना मिली कि जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले, 30 तुगलक क्रेसेंट, में आग लगी है। कॉल जस्टिस वर्मा के निजी सचिव (PS) ने अपने मोबाइल से की थी, जो दिल्ली हाई कोर्ट के नाम से रजिस्टर्ड है। निजी सचिव को ये खबर घर के एक नौकर ने दी थी। पुलिस ने तुरंत हरकत में आते हुए दो दमकल गाड़ियों को मौके पर भेजा। आग बंगले के एक कोने में चारदीवारी से सटे कुछ कमरों में लगी थी, जिनका इस्तेमाल स्टोर रूम के तौर पर होता था। इनमें से एक कमरे में बंगले पर तैनात सुरक्षाकर्मी भी रहते थे।

अग्निशमन विभाग ने तेज़ी से काम करते हुए आग पर काबू पा लिया। पुलिस के मुताबिक, शुरूआती जांच में आग का कारण शॉर्ट सर्किट बताया गया। लेकिन असली सनसनी तब हुई, जब आग बुझने के बाद स्टोर रूम की तलाशी ली गई। वहां 4-5 अधजली बोरियां मिलीं, जिनमें भारतीय मुद्रा के जले हुए अवशेष थे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी वीडियो में आलमारी में जलते हुए नोट नजर आ रहे है। पुलिस ने अपने पत्र में साफ़ लिखा कि ये नकदी की बोरियां थीं, जो आग में आंशिक रूप से जल गई थीं। ये खोज इतनी चौंकाने वाली थी कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।

सवाल उठते हैं कि अगर आग शॉर्ट सर्किट से लगी, तो क्या ये मुमकिन है कि बोरियों में नकदी रखी हो और किसी को पता न चले? पीसीआर कॉल निजी सचिव ने की, लेकिन क्या उन्हें नकदी की जानकारी थी? स्टोर रूम में सुरक्षाकर्मी रहते थे, तो क्या उन्हें भी इसकी भनक नहीं थी?

दिल्ली पुलिस ने अपने पत्र में कुछ और अहम बातें बताईं। पहली, ये कि अग्निशमन विभाग को अलग से कोई कॉल नहीं की गई थी। पीसीआर कॉल के बाद सूचना अपने आप दिल्ली फायर सर्विस को चली गई थी। दूसरी, स्टोर रूम बंगले के सुरक्षा गार्ड के कमरे से सटा हुआ था। ये गार्ड सीआरपीएफ की 70वीं वाहिनी के एफ कंपनी से तैनात थे। पुलिस के मुताबिक, स्टोर रूम को ताला लगाकर रखा जाता था, यानी ये कोई खुला कमरा नहीं था, जैसा जस्टिस वर्मा ने अपने जवाब में दावा किया।

तीसरी बात, सुरक्षा गार्ड ने पुलिस को बताया कि 15 मार्च की सुबह स्टोर रूम से मलबा और आंशिक रूप से जला हुआ सामान हटा दिया गया था। पुलिस ने इसकी और जांच नहीं की कि ये मलबा किसने हटाया और उसमें क्या-क्या था। लेकिन अधजली बोरियों में नकदी के अवशेष मिलने की बात को पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा।

सवाल है कि अगर स्टोर रूम में ताला था, तो नकदी वहां कैसे पहुंची? क्या ताला तोड़ा गया था? मलबा सुबह हटाया गया, लेकिन क्या उसमें बची हुई नकदी भी थी? पुलिस ने मलबे की जांच क्यों नहीं की? क्या ये लापरवाही थी या कुछ छुपाने की कोशिश?

साज़िश का इल्ज़ाम

जस्टिस वर्मा ने 22 मार्च 2025 को दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय को एक लंबा जवाब लिखा। उनके मुताबिक, आग 14-15 मार्च की रात को स्टोर रूम में लगी थी, जो स्टाफ क्वार्टर्स के पास था। वो उस वक्त अपनी पत्नी के साथ भोपाल में थे और 15 मार्च की शाम को इंडिगो फ्लाइट 6E 2303 से दिल्ली लौटे। आग की खबर उन्हें उनकी बेटी ने दी थी।

जस्टिस वर्मा ने कहा कि ये कमरा पुराना सामान रखने के लिए था-जैसे फर्नीचर, बोतलें, क्रॉकरी, गद्दे, कालीन, स्पीकर, और  सीपीडब्लूडी का सामान। उनके मुताबिक, ये कमरा हमेशा खुला रहता था और स्टाफ, माली, और बाहरी लोग इसे इस्तेमाल करते थे। उन्होंने साफ़ इनकार किया कि वहां कोई नकदी थी। वो कहते हैं कि न तो उन्होंने और न ही उनके परिवार ने कभी उस कमरे में नकदी रखी। उनके लिए ये “हास्यास्पद” और “अविश्वसनीय” है कि कोई इतनी नकदी एक खुले कमरे में रखेगा।

जस्टिस वर्मा ने कहा कि जब वो 15 मार्च की शाम को लौटे और पीपीएस  के साथ कमरे को देखा, तो वहां कोई नकदी नहीं थी। उन्होंने इसे अपने खिलाफ साज़िश बताया, खासकर पुलिस के वीडियो और फोटो को देखकर, जिसमें जली हुई नकदी दिख रही थी। उनका दावा है कि ये वीडियो उस वक्त का नहीं हो सकता, जब वो मौके पर गए थे।

सवाल है कि जस्टिस वर्मा कहते हैं कि कमरा खुला था, लेकिन पुलिस कहती है कि ताला था। सच क्या है? अगर नकदी नहीं थी, तो पुलिस की बोरियों में क्या था? साज़िश की बात सही हो सकती है, लेकिन इसका सबूत क्या है?

वीडियो और फोटो

दिल्ली पुलिस ने अपने पत्र में अधजली बोरियों का ज़िक्र किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट को भेजे गए सबूतों में वीडियो और फोटो भी शामिल थे। इनमें एक फायरमैन को प्लास्टिक बैग से जली हुई नकदी निकालते देखा गया। वीडियो में एक आवाज़ सुनाई देती है, “महात्मा गांधी में आग लग गई,” जो गांधी जी की तस्वीर वाली नोटों की ओर इशारा करती है। ये सबूत दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा ने चीफ जस्टिस उपाध्याय को भेजे थे।

पुलिस के मुताबिक, ये नकदी स्टोर रूम में थी, जो आग में जल गई। लेकिन जस्टिस वर्मा का कहना है कि जब वो PPS और PS के साथ कमरे में गए, तो वहां कुछ नहीं था। पुलिस ने ये भी नहीं बताया कि नकदी की कितनी मात्रा थी या उसे बरामद किया गया या नहीं। सिर्फ़ इतना कहा कि अवशेष मिले थे।

सवाल है कि अगर वीडियो में नकदी दिख रही है, तो वो कमरे से गायब कैसे हुई? पुलिस ने नकदी को जब्त क्यों नहीं किया? क्या ये सबूत छुपाने की कोशिश थी? वीडियो असली है या बनावटी? क्या इसका समय सत्यापित हुआ?

मलबा हटाने का रहस्य

पुलिस के पत्र में एक अहम बात ये है कि सुरक्षा गार्ड ने बताया कि 15 मार्च की सुबह स्टोर रूम से मलबा और जला हुआ सामान हटा दिया गया था। जस्टिस वर्मा ने अपने जवाब में कहा कि उनके स्टाफ ने सिर्फ़ मलबा निकाला, जो अभी भी बंगले में एक तरफ रखा है। वो कहते हैं कि कोई नकदी नहीं हटाई गई, क्योंकि वहां कोई नकदी थी ही नहीं। लेकिन पुलिस ने इस मलबे की जांच नहीं की, और न ही ये बताया कि उसे किसने हटाया।

सवाल उठता है कि अगर नकदी थी, तो क्या वो मलबे के साथ हटा दी गई? या फिर पुलिस के आने से पहले ही उसे ठिकाने लगा दिया गया? जस्टिस वर्मा का कहना है कि वो उस वक्त भोपाल में थे, तो उनके लिए कुछ हटाना मुमकिन नहीं था। सवाल उठता है कि मलबा किसने हटाया-स्टाफ, गार्ड, या कोई और? अगर नकदी मलबे में थी, तो क्या उसे जानबूझकर हटाया गया? पुलिस ने मलबे की जांच क्यों नहीं की? क्या ये उसकी नाकामी थी?

पुलिस ने जस्टिस वर्मा के फोन रिकॉर्ड और पिछले छह महीनों के सुरक्षा स्टाफ की डिटेल भी मांगी है। इससे साफ़ है कि जांच अब गंभीर हो चुकी है।

सवाल है कि फोन रिकॉर्ड से क्या पता चलेगा? क्या जस्टिस वर्मा ने किसी से इस बारे में बात की थी? सुरक्षा स्टाफ की डिटेल से क्या साबित होगा? क्या वो इसमें शामिल थे? कमेटी की रिपोर्ट कब तक आएगी, और क्या वो सच सामने लाएगी?

ये मामला सिर्फ़ जस्टिस वर्मा का नहीं, बल्कि पूरी न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही का सवाल है। सवाल है कि अगर नकदी थीतो वो कहां से आई? और अगर नहीं थी, तो पुलिस के सबूत क्या हैं? सुप्रीम कोर्ट की कमेटी का फैसला इस मामले को सुलझा सकता है। सवाल उठते हैं कि क्या जस्टिस वर्मा की साख सचमुच साफ़ है, या ये सिर्फ़ दिखावा है? अगर नकदी उनकी नहीं थी, तो क्या ये किसी और की साज़िश थी? न्यायपालिका इस मामले को कैसे हैंडल करेगी-पारदर्शी तरीके से या ढकने की कोशिश में?

दिल्ली पुलिस के पत्र ने एक साधारण आग को बड़े विवाद में बदल दिया। 14 मार्च की रात जो शुरू हुआ, वो अब जस्टिस वर्मा की साख, पुलिस की जांच, और न्यायपालिका की विश्वसनीयता का सवाल बन गया है। पुलिस कहती है कि स्टोर रूम में नकदी थी, जस्टिस वर्मा इसे साज़िश बताते हैं। सच क्या है-ये सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की रिपोर्ट से पता चलेगा।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं)

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