इन दिनों प्रदेश भाजपा में घमासान मचा हुआ है। तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों में भगदड़ सी मची हुई है। बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ भाजपा के मुख्यालयों पर गो बैक के पोस्टर लगे हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष को अपनी पार्टी के समर्थकों के ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा विधायकों को टूटने से बचाने के लिए विधानसभा में विपक्ष व भाजपा के नेता शुभेंदु अधिकारी दल बदल कानून पर अमल किए जाने के लिए दबाव बनाने में जुट गए हैं।
जो पार्टी कभी 200 से अधिक विधायकों के साथ सरकार बनाने का दावा कर रही थी अब उनके समर्थक तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के लिए धरना तक देने लगे हैं। इधर मुकुल राय ने आने के साथी ऊंचे स्तर पर ऑपरेशन भाजपा शुरू कर दिया है।
अलीपुरद्वार जिला के भाजपा अध्यक्ष गंगा प्रसाद शर्मा अपने समर्थकों के साथ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। अलीपुरद्वार जिले में विधानसभा की कुल पांच सीटें हैं और सभी पर भाजपा के विधायक जीते हैं। जिला परिषद और पंचायतों में तो भाजपा सदस्यों के तृणमूल में शामिल होने की होड़ सी मची है। बीरभूम जिले में भाजपा के करीब तीन सौ समर्थक तृणमूल कांग्रेस के कार्यालय के सामने भूख हड़ताल पर बैठ गए। उनकी मांग थी कि उन्हें पार्टी में शामिल किया जाए। बहरहाल गंगाजल से पवित्र करने के बाद उन्हें पार्टी में शामिल कर लिया गया। हुगली जिले के थानाकुल में करीब 500 भाजपा समर्थक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। भाजपा में जाने के अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए उनमें से कई ने अपने सर मुड़ा लिए। इतना ही नहीं कई जिलों में तो भाजपा कार्यकर्ता अपने इस गुनाह के लिए ऑटो पर सवार होकर लाउडस्पीकर से गांव वालों से माफी मांग रहे हैं।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं कि वफादार हैं वे पार्टी में बने रहेंगे। इसके साथ ही कहते हैं कि अगर किसी को कोई दिक्कत है तो उसे बातचीत से हल किया जा सकता है। उन्हें तो जिलों के वफादार समर्थकों के साथ ही तृणमूल से आए कार्यकर्ताओं का भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। पश्चिम मिदनापुर, यहां से सांसद हैं, खड़कपुर यहां से कभी विधायक थे, के साथ ही बर्दवान और हुगली आदि कई जिलों में दिलीप घोष को भाजपा कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ा है। सबसे ज्यादा दुर्गति तो पश्चिम बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय की हो रही है। एक जमाने में प्रदेश भाजपा उनके इशारे पर चलती थी और अब उन्हीं के खिलाफ भाजपा के कोलकाता के मुरलीधर लेन और हेस्टिंग्स के मुख्यालय में विजयवर्गीय गो बैक के पोस्टर लगे हैं। विजयवर्गीय बंगाल में नहीं दिख रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं ने आईटी प्रभारी अरविंद मेनन को भी नहीं बख्शा है और वे भी बंगाल से लापता हैं।
दूसरी तरफ मुकुल राय के तृणमूल में आने के बाद से यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि भाजपा के 18 में से आठ नौ सांसद और बड़ी संख्या में भाजपा विधायक टूटकर तृणमूल में आने के लिए तैयार हैं। यह कयास और 50 विधायकों के आंकड़े ने शुभेंदु अधिकारी और भाजपा को मुश्किल में डाल रखा है। यहां गौरतलब है कि विधानसभा में चुनाव के बाद जब दिलीप घोष ने विधानसभा में भाजपा विधायकों की बैठक बुलाई थी तो 50 विधायक ही आए थे। शुभेंदु अधिकारी जब दल बदल कानून पर अमल करने की मांग करते हुए राज्यपाल से मिलने गए थे तब भी 50 विधायक ही थे। अगर भाजपा के दो जीते हुए सांसदों और मुकुल राय को अलग कर दें तो भाजपा के 74 विधायक हैं, तो फिर यह 24 कहां गुम हो जा रहे हैं। एडवोकेट अनामिका पांडे कहती हैं कि दल बदल कानून के तहत दो तिहाई सांसद या विधायक अलग दल का गठन कर सकते हैं।
इसके अलावा यह सवाल भी है कि विधानसभा चुनाव से पहले जो आए थे वे अब कब तक रुकेंगे। मसलन बर्दवान के सांसद सुनील मंडल पहले बड़े जोश से भाजपा में शामिल हुए थे। अब उन्हें पछतावा हो रहा है। काथी के सांसद और शुभेंदु अधिकारी के पिता शिशिर अधिकारी ने प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा किया था और भाजपा में जाने का ऐलान भी किया था। अब दिलीप घोष कहते हैं कि वे तो भाजपा में कभी शामिल हुए ही नहीं थे। दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस ने सुनील मंडल और शिशिर अधिकारी को दल बदल कानून के तहत अयोग्य करार देने का आवेदन लोकसभा अध्यक्ष से किया है।
अब प्रदेश भाजपा के सामने दोहरा संकट है। एक तो सांसदों और विधायकों को तृणमूल में जाने से रोकना है। इसके साथ ही कार्यकर्ताओं के मनोबल को बनाए रखना है। कुल मिलाकर भाजपा के लिए बहुत कठिन है डगर पनघट।
(कोलकाता से वरिष्ठ पत्रकार जेके सिंह की रिपोर्ट।)
+ There are no comments
Add yours