Friday, April 26, 2024

शराबबंदी से नहीं, कार्य स्थिति में सुधार व सामाजिक सुरक्षा से थमेगा मौत का सिलसिला

मई, जून, जुलाई के आग बरसाते दिन। तापमान कभी 40 डिग्री, कभी 45 डिग्री तो कभी 48 डिग्री। निर्माणाधीन बिल्डिंग के मालिक व ठेकेदार छाता लेकर 10-15 मिनट खड़े होते तो पसीने से तर हो जाते और बहुत गर्मी है, कहते हुये दूर छाया में भाग पराते। जबकि उस बिल्डिंग के निर्माण में जुटे मज़दूर व मिस्त्री जलती धूप में पसीना सुखाते, सूरज का दमखम आजमाते अपने काम में तल्लीन रहे। घंटे दो घंटे की कड़ी मेहनत मशक्कत के बाद वो रुकते एक जगह बैठकर पानी पीते चिलम सुलगाते और फिर काम में जुट जाते। जब नये बनते बिल्डिंग के मालिकों के बच्चे व स्त्रियां तपती धूप में काम करते मज़दूरों को देख करुणा से भर आते तो मालिक लोग कहते सब गांजा का कमाल है। दारू गांजा पीने के बाद न ठंड लगती है, न धूप।

रिक्शाचालक दूधनाथ पटेल की उम्र हो चली है। वो बताते हैं कि परिवार पालने के लिये उन्होंने पूरी ज़िन्दगी शहर जा जाकर पैडल वाला रिक्शा चलाया है। दूधनाथ बताते हैं कि माघ पूष की ठंड में जब हाथ पांव बर्फीली शीतलहर से सुन्न हो जाते। ठंड में महीनों बूंदा बारिश होती रहती, उतना ही कोहरा पाला पड़ता कि कई दिन सूरज के दीदार न होते, लोग बाग सारा दिन आग छोड़कर न उठते ऐसी हालत में भी शहर जा जाकर रिक्शा खींचा है। इतने ठंड में कैसे करते थे पूछने पर दूधनाथ बताते हैं कि नशा ही एक सहारा था। चिलम से काम चल जाता तो ठीक है नहीं तो कुछ घूंट दारू का सहारा लेते। कई बार सवारियां ‘मुंह से शराब की बदबू आ रही है’ कहकर चली जातीं। तो दिन में क्यों पीते थे। पूछने पर दूधनाथ बताते हैं कि जब ठंड असह्य हो जाती तो लगता जान बचाने के लिये अब नहीं पीया तो मर ही जाऊंगा।

अपने इलाके में दारू पीने के लिये बदनाम तुलसीदास लोहार बिरादरी से आते हैं और बढ़ईगीरी का काम करते हैं। आज से पैंतीस साल पहले आईटीआई पास तुलसीदास कमाई का आधा हिस्सा दारू पर ख़र्च कर देने का मर्म पूछने पर वो मौजूदा शोषणकारी व्यवस्था में अपने जीवन का दर्शन समझाते हैं। तुलसीदास कहते हैं-दिन रात खटने के बावजूद हम पेट से ऊपर नहीं उठ पाते, न बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाते हैं, न इलाज। न ही बहुत अच्छा खा, पहन पाते हैं। जबकि इसी जगह बिना बहुत मेहनत किये लोग मोटा पैसा कमाते हैं, उनके पास एसी, फ्रीज, टीवी, सोफा, बेड, कार सब है। महंगा मोबाइल चलाते हैं। बच्चों को महंगे स्कूल में पढ़ाते हैं बीमार होने पर महंगे स्कूल में इलाज करवाते हैं। तुलसीदास रूंधे गले से कहते हैं इतना ऊँच नीच देख देखकर दिमाग भर्रा जाता है, विद्रोह करने लगता है। दो घूंट अंदर जाता है तो जीवन की सारी दुश्वारियां, सारे ग़म, सारी थकान, छू हो जाती है। दिन भर खटने के बाद अगर रात को न पीयें तो अगले दिन काम ही न कर पायें।

तुलसीदास और उनका साथी

सोना देवी श्रृंग्गवेरपुर घाट पर लाशों को आग देने का काम करती हैं। सोना बताती हैं कि पहले यह काम उनके पति करते थे। वो बहुत शराब पीते थे, लेकिन शराब ही उनको पी गयी। 35 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई तब बच्चे बहुत छोटे थे। सोना देवी के दो बेटे हैं और बेटों ने अब पिता का काम संभाल लिया है। वो लोग घाट पर लाशों को जलाते हैं। सोचिये कि अप्रैल, मई, जून, जुलाई की तपती दोपहर में आग के पास खड़े होकर लाश जलाने का काम क्या बिना नशा के हो सकता है। सोना बताती हैं उनके दोनों बेटे शराब नहीं पीते। क्या शराब पर पाबंदी होनी चाहिये ये सवाल पूछने पर सोना देवी कहती हैं जिसे पीना है वो पाबंदी के बावजूद पीयेगा जिसे नहीं पीना है वो मुफ़्त की शराब भी नहीं पीयेगा।

कानून पुलिस सजा देने के लिये हैं

सोना देवी ने आखिर में बहुत मार्के की बात कही है कि जिसे पीना है लाख पाबंदी के बाद भी पीयेगा जिसे नहीं पीना वो नहीं पीयेगा। जीवन के कई दशक मज़दूरों को समर्पित कर देने वाले कोलकाता के मजदूर कार्यकर्ता मोदक दा से जब हमने पूछा कि क्या सरकार द्वारा शराब पर पाबंदी लगाना सही है। इस सवाल के जवाब में मोदक दा कहते हैं ये नागरिक अधिकारों का हनन है। जो नागरिक सरकार चुनते हैं वो नागरिक क्या उन्हें क्या पीना खाना है क्या नहीं इसका चयन नहीं कर सकते? मोदक दा कहते हैं शराबबंदी किसी भी मक़सद से क्यों न किया गया हो लेकिन यह एक तानाशाही भरा फैसला है और लोकतांत्रिक मूल्यों के ख़िलाफ़ है। वो आगे कहते हैं जनचेतना सामाजिक चेतना से दूर होगी यह क़ानून और पुलिस से नहीं।

घाट पर लाश जलाने वाला सोना देवी का बेटा 

नागरिकों को शराब पीने की छूट देने वाले राज्यों की तुलना में शराबबंदी वाले राज्य में शराब से ज़्यादा मौत होती है। गुजरात और बिहार के अलावा अन्य किसी राज्य में शराब पीने से एक साथ इतना ज्यादा मौत की ख़बरे नहीं सुनाई पड़ती हैं। क्योंकि अन्य राज्यों में सरकार कम पैसे में अच्छी शराब सरकारी दुकानों पर उपलब्ध करवाती है। इससे वहां नकली या जहरीली शराब का कारोबार नहीं फलने फूलने पाता है।

शराबबंदी नहीं कार्य स्थिति और मजदूरी में सुधार से बदलेगी स्थिति

मज़दूरों, निर्माण मज़दूरों और दिहाड़ी मज़दूरों व कृषि मज़दूरों के साथ काम करते हुये उनकी विषम कार्य स्थिति व निम्न आय मज़दूर वर्ग के लोगों में मद्यपान की मुख्य वजह है। दुरूह कार्य स्थिति को देखते उनका विश्लेषण करके हुये मैंने इतना निष्कर्ष निकाला है कि बिना कार्य स्थिति बदले और उनका व उनके परिवार की सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित किये बिना उनके जीवन में सुधार नहीं लाया जा सकता है। क़ानून और पुलिस सिर्फ़ सजा दे सकते हैं यातना दे सकते हैं शराब नहीं छुड़वा सकते।

बिहार में जहरीली शराब से हाहाकार

बता दें कि बिहार में 14-17 दिसंबर के बीच जहरीली शराब पीने से 80 लोगों की जान चली गई थी। जहरीली दारू के शिकार छपरा-सीवान और बेगूसराय के लोग हुए थे। वे लोग जो मजदूरी करके जीने वाले थे और जिनकी शाम की बैठकी 20 रुपये की कच्ची शराब पर जमती। जहरीली शराब से बीमार होकर अस्पताल आने वालों में सबसे अधिक मजदूर वर्ग के लोग थे। अधिकतर मरीजों की उम्र 25 से 40 वर्ष की थी। जहरीली शराब को पीकर मरने वाले लोग बेहद ग़रीब थे इतने ग़रीब कि इनकी मौत के बाद इनका अंतिम संस्कार करने के लिए भी परिवारों को क़र्ज़ लेना पड़ा।

साल 2022 की शुरुआत से अब तक सिर्फ़ छपरा में 50 लोगों की जान जहरीली शराब ने ली है। इसी साल 18 और 19 जनवरी को छपरा के मकेर और अमनौर में जहरीली शराब से एक दर्जन लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। इसके बाद अगस्त में छपरा के ही पानापुर और मकेर-भेल्दी में 8 लोगों ने इस जानलेवा जहरीली शराब से दम तोड़ा था। बिहार में हर साल जुलाई से सितंबर के दरम्यान जहरीली शराब से बड़ी संख्या में लोगों की मौत होती है और मामले में राजनीति हो हल्ला होने के बाद अगली मौत होने तक चुप्पी छा जाती है।

30 दिसंबर को दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने द्वारका से बिहार जहरीली शराब कांड के कथित मास्टरमाइंड रामबाबू महतो को गिरफ्तार कर लिया। इसके साथ ही शराबबंदी मामला एक बार फिर बहस के केंद्र में है। रामबाबू महतो सारण जिले के मशरक पुलिस थाना और इसुआपुर थाने में दर्ज दो मामलों में आरोपी है। महतो किसान परिवार से है और परिवार में चार भाई और दो बहनें हैं। उसके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। पुलिस के मुताबिक बिहार में शराबबंदी के कारण उसे जल्दी और आसानी से पैसा कमाने की सूझी। वह कथित तौर पर होम्योपैथिक दवाओं से नकली शराब बनाने और उसकी बिक्री करने में लग गया।

गुजरात में मौत से हाहाकार

वहीं इस साल गुजरात में भी गुजरात के भावनगर जिले की तीन तहसीलों में जहरीली शराब पीने से 57 लोगों की मौत हुई थी। मृतकों में 12 तो एक ही गांव के थे, जिनमें दो महिलाएं भी शामिल थीं। यहां रहने वाले कनुभाई नाम के एक शख्स की मौत से उसके चार बच्चे अनाथ हो गए, क्योंकि, कनुभाई की पत्नी की पहले ही मौत हो चुकी है। बोटाद पुलिस ने इन चारों बच्चों को गोद ले लिया।

राजू नाम के बुटलेगर ने अहमदाबाद की फैक्ट्री से 600 लीटर मेथिकल केमिकल चुराया था। इसके बाद यही केमिकल रोजिद, देवगणा और नभोई गांव के बुटलेगर्स को सप्लाई किया था। इसके बाद बुटलेगर्स ने मेथनॉल अथवा मिथाइल अल्कोहल नाम के इस केमिकल में पानी मिलाकर प्रति पाउच 20 रुपए में बेचा था, इसकी चपेट में 131 लोगों आए। असल में धंधेबाज सब चीज़ों को मिला कर पीने लायक इथाइल एल्कोहल बनाना चाहते हैं, लेकिन ऑक्सीटोसिन, मेथेनॉल और यूरिया जैसी चीजें इस इथाइल एल्कोहल को कब मिथाइल एल्कोहल में बदल देती है, बनानेवाले को भी पता नहीं चलता और इन्हें धोखे से पीनेवाले लोगों की जान जाने लगती है।

6 साल में देश में जहरीली शराब से 7000 मौत!

जहरीले शराब से होने वाली मौतें सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं हैं। बल्कि पिछले छह सालों में अलग-अलग राज्यों में 7 हज़ार से ज्यादा लोग जहरीली शराब के चलते अपनी जान गंवा चुके हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकडों के मुताबिक देश भर में 2016 से 2021 तक यानी छल सालों में कुल 6,954 लोगों की मौत हो चुकी है।

शराब से मौत पर सत्ता की बेशर्मी

15 दिसंबर 2022 को जहरीली शराब से मौतों पर मीडिया से बात करते हुये बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 80 मौतों पर निर्लज्ज़तापूर्वक कहा था कि जो ‘पीएगा वो मरेगा’। नीतीश ने कहा कि एमपी शराब से होने वाली मौतों में नंबर वन है। यूपी में मौतें हो रही हैं। वहां की चर्चा नहीं होती है। उन्होंने आगे कहा था कि पीएगा…गड़बड़ पीएगा वो मरेगा। नीतीश कुमार से जब जहरीली शराब से जान गंवाने वालों को मुआवजा देने की बात पूछी गई तो वे बिफर पड़े और दो टूक कहा कि दारू पीकर मरने वालों को मुआवजा देंगे ये सवाल ही पैदा नहीं होता है। नीतीश ने कहा, “मत पीओ मरोगे, इसका तो हम लोग प्रचार करवाएंगे, दारू पीकर मर जाएगा तो उसको हम लोग कम्पेनसेशन देंगे, सवाल ही पैदा नहीं होता है। ये कभी मत सोचिएगा। नीतीश कुमार ने कहा कि क्राइम को रोकने के लिए कई कितने ही कानून बने हुए हैं, लेकिन हत्याएं तो होती ही हैं।

(सुशील मानव जनचौक में विशेष संवाददाता हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles