दिल्ली के जामिया इलाके में विरोध प्रदर्शन हुआ। नागरिकता कानून में संशोधन का विरोध। दिल्ली पुलिस ने इसे ठीक वैसे ही पहचाना, जिस तरह से पहचानने का तरीका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखण्ड की चुनाव रैली में 12 दिसम्बर को बताया था। पहले धनबाद में, फिर 3 दिन बाद दुमका में प्रधामंत्री ने यही बात दोहरायी। उन्होंने कहा कि जो लोग नागरिकता के कानून में संशोधन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं उनको उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है।
दिल्ली में पुलिस ने एक बार जब प्रदर्शनकारियों को पहचान लिया, तो प्रतिक्रिया तो देनी ही थी। जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के कैम्पस में पुलिस जबरदस्ती घुस गयी। लाइब्रेरी, ब्वॉयज हॉस्टल, गर्ल्स हॉस्टल हर उस जगह पुलिस पहुंच गयी जो कैम्पस के भीतर अति सुरक्षित मानी जाती थी। सिर्फ पहुंच ही नहीं गयी, बल्कि गाली-गलौच, लाठी, आंसू गैस सबका इस्तेमाल हुआ। 200 से ज्यादा बच्चे-बच्चियां घायल हैं।
कॉलेज कैम्पस में ऐसी बर्बरता कपड़े पहचान कर ही की जा सकती है। कपड़े की पहचान हो जाने के बाद कैम्पस घुसने के लिए जरूरी यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर की अनुमति की आवश्यकता भी नहीं रह जाती है। पुलिस बगैर अनुमति के विश्वविद्यालय कैम्पस में घुसी। न सिर्फ छात्र-छात्राओं को पीटा, बल्कि शिक्षकों की भी पिटाई की। यहां तक कि कैम्पस में मौजूद इमाम को भी पुलिस ने नहीं बख्शा।
कैम्पस में कैसे घुसी पुलिस?
दिल्ली पुलिस और यूनिवर्सिटी की वीसी दोनों की ओर से बयान आए हैं। दिल्ली पुलिस ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया है कि बगैर अनुमति के वह कैम्पस में कैसे घुसी। जबकि, यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर नजमा अख्तर ने इस सवाल को उठाया है। नजमा अख्तर ने यूनिवर्सिटी में तोड़फोड़ पर एफआईआर दर्ज कराने की बात भी कही है। मगर, जिस मजबूती से यह सवाल पूछना चाहिए था कि दिल्ली पुलिस बगैर इजाजत के उनके कैम्पस में घुसी कैसे, यह देखने-सुनने को नहीं मिला।
नजमा अख्तर ने पुलिस की तोड़फोड़ से हुए नुकसान की भरपाई का सवाल तो उठाया और किसी की मौत की ख़बर से भी इनकार किया। मगर, उन्होंने घायल छात्र-छात्राओं के इलाज और उनके लिए मुआवजे की मांग नहीं की है। यह भी आश्चर्य की बात है।
दिल्ली पुलिस के समर्थन में दिखी बीजेपी
दिल्ली पुलिस के पक्ष में बीजेपी समर्थक ट्यूटर पर आई सपोर्ट डेल्ही पुलिस का हैशटैग ट्रेंड कराने में जुटी है। पहनावा पहचानने का यह ईनाम हो सकता है। मगर, इस वजह से दिल्ली पुलिस उस सवाल का जवाब देने के लिए कोई दबाव महसूस नहीं कर रही है कि वह बगैर इजाजत यूनिवर्सिटी के कैम्पस में कैसे घुसी?
मीडिया ने पूरी घटना की कवरेज दी। मगर, हर कोई अपने-अपने तरीके से माने-मतलब निकालता रहा। कोई प्रदर्शन को ही गैर जरूरी बताता है तो कोई इसे अल्पसंख्यकों को बरगलाने की कोशिश कह रहा है। किसी की नज़र में यह कांग्रेस की चाल है, तो कोई इसे दिल्ली चुनाव से जोड़ रहा है। किसी ने इसे एक विधायक का उकसावा करार दिया, तो किसी ने कहा कि छात्र बगैर सोचे-समझे किसी का हथियार बन रहे हैं।
बस में आग किसने लगायी?
प्रदर्शन के दौरान तीन बसों में आग लगायी गयी। इसमें जामिया के छात्र थे या नहीं, यह अलग बात है और बगैर जांच के पक्की बात नहीं बतायी जा सकती। मगर, एक वीडियो में जिस तरीके से पुलिस फोर्स के सामने पुलिस की वर्दी में व्यक्ति बस में पानी या पेट्रोल या किसी तरह जैसी चीज उड़ेलता दिखा है उससे साफ है कि कम से कम इस एक मामले में बस में आग उपद्रवियों ने नहीं लगायी होगी। इसी विजुअल में बगल में जलती बाइक को बुझाते हुए भी देखा गया।
मगर, दिल्ली पुलिस ने जिस तरीके से खुद को क्लीन चिट दे दी और कहा कि पुलिस आग बुझा रही थी, वह एकतरफा है। सवाल यह है कि जब बस में आग लगी ही नहीं थी, तो पुलिस उसे बुझा कैसे रही थी? तोड़फोड़ की गयी बस के भीतर ईंधन या पानी उड़ेलना आग बुझाना कैसे हो सकता है?
इस एक घटना से भी यह समझा जा सकता है कि कपड़े से प्रदर्शनकारियों को पहचानने की कोशिश की गयी, उन्हें बदनाम किया गया। खास तौर से जामिया के छात्रों को इसमें घसीट लिया गया।
एक और विजुअल भी चर्चा में रहा है जिसमें जामिया कैम्पस से इक्के-दुक्के लोग बाहर की ओर पत्थर फेंकते दिखे हैं। यह विजुअल सही होने के बावजूद दिल्ली पुलिस को बगैर इजाजत कैम्पस में घुस जाने का आधार नहीं हो सकता। दिल्ली पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स में बताया कि हुड़दंगियों का पीछा करते हुए कैम्पस में पुलिस घुसी। फिर भी इस सवाल का जवाब नहीं मिलता कि इसके लिए उसने यूनिवर्सिटी से अनुमति क्यों नहीं ली?
पुलिस ने क्यों चलायी गोली?
प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने गोली चलायी है इसका विजुअल भी वायरल हुआ है। एक युवक को गोली लगी थी, इसकी तस्वीरें भी सामने आयी हैं। दूसरा युवक गोली लगने के बाद घायल होकर गिर पड़ा था, उसका भी विजुअल सामने आ चुका है। कम से कम दो युवकों को गोली लगी। सवाल ये है कि क्या किसी मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद यह फायरिंग हुई?
आश्चर्य की बात यह है कि दिल्ली पुलिस की मनमानी को गलत ठहराने के बजाए सत्ता से जुड़े लोग उसे सही ठहरा रहे हैं। प्रदर्शन सिर्फ दिल्ली में नहीं, देश के शेष हिस्सों में भी हो रहे हैं। हर जगह अगर पुलिस को इसी तरह से कपड़े पहचान कर प्रदर्शनकारियों को पहचानने की इजाजत मिल गयी तो इसके भयावह नतीजे मिलेंगे।
(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल विभिन्न चैनलों के पैनल में उन्हें बहस करते देखा जा सकता है।)