केंद्र में नरेंद्र मोदी के बहुप्रतीक्षित मन्त्रिमण्डल के विस्तार और फेरबदल में कारपोरेट हितों का ध्यान, दलबदलुओं से किये गए वादों को निभाने और यूपी, गुजरात में जातीय सन्तुलन साध कर अगले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भाजपा की सफलता को दोहराने की संभावना सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है। लेकिन इसके और भी निहितार्थ हैं। मसलन गुजरात से पाटीदार मनसुख मंडाविया और पुरुषोत्तम रुपाला को प्रोन्नति देकर कैबिनेट मंत्री बनाये जाने से जहां गृहमंत्री अमित शाह के पर कतरने की कोशिश हुई है, वहीं कैबिनेट में प्रमुख कार्पोरेट्स के चहेतों, विशेषकर पूर्व नौकरशाहों को कैबिनेट मंत्री बनाकर ,को जगह दी गयी है ताकि अलग अलह क्षेत्रों में कार्पोरेट्स के हितों को सुरक्षित रखा जा सके। यही नहीं एक पूर्व नौकरशाह को रेल मंत्री बनाकर उड़ीसा में अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा का चेहरा बनाने की तैयारी भी की गई है।
सात साल में पहली बार जातीय सन्तुलन साधने से एक बात और स्पष्ट हो रही है कि उच्चतम न्यायालय में पिछले लोकसभा चुनाव में ईवीएम से निकले वोट और पड़े वोटों की संख्या में भारी अंतर का मामला विचाराधीन होने से बिहार,बंगाल और असम के चुनावों में ईवीएम और वीवीपेट के वोटों में जिस तरह शतप्रतिशत मिलान से फर्क आया है उससे भाजपा को इलहाम हो गया है कि शायद अगले चुनावों में ईवीएम का खेला न हो सके। इसलिए जातीय सन्तुलन साधने की कोशिश की गई है। गौरतलब है कि 347 लोकसभा सीटों पर मत पड़ने और ईवीएम से निकले मतों की संख्या में अंतर का है। इस पर दाखिल याचिकाओं में तारीख पर तारीख लग रही है।
दरअसल भाजपा के लिए अब राम मंदिर, 370 और ट्रिपल तलाक का मुद्दा खत्म हो गया है।बिहार बंगाल में ईवीएम का खेला हो नहीं पाया।आगे चुनावों में भी ईवीएम का खेला होने पर प्रश्न चिन्ह है क्योंकि मामला उच्चतम न्यायालय में लम्बित है। अब सवाल है कि भाजपा और नरेंद्र मोदी किस मुद्दे पर अगला चुनाव लड़ेंगे। मोदी का मकसद है कि आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव जातीय समीकरण और बेहतर काम पर लड़ें। 2022 के यूपी चुनाव में तो अर्थव्यवस्था में कुछ बेहतर स्थिति में होने की सम्भावना अत्यंत क्षीण है लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव तक मोदी की कोशिश विकास दर को पटरी पर लाने और रोजगार के अवसर को बढ़ाने के साथ सामाजिक समीकरण को साधने की रहेगी। गुजरात में भी वर्ष 2023 में चुनाव होना है। बीजेपी को करीब 55 फीसदी हिंदू वोट देते हैं लेकिन जितना वोट सवर्ण जाति और वैश्य वोट देते हैं, उतना पिछड़ी, दलित और आदिवासी के वोटर नहीं देते हैं।
सात जुलाई को हुए कैबिनेट विस्तार में मोदी ने अपनी कैबिनेट में सात पूर्व नौकरशाहों को जगह दी है।
अपनी नई कैबिनेट में उन्होंने सात मंत्रियों को 10 महत्वपूर्ण मंत्रालय दिए हैं। सबसे ज़्यादा चर्चित मामला अश्विनी वैष्णव का है, जो कुछ साल पहले राजनीति में आए और सीधे रेल और टेलिकॉम जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय उन्हें दे दिए गए हैं। अश्विनी वैष्णव पूर्व नौकरशाह हैं और उनका न केवल कार्पोरेट्स से अच्छा तालमेल रहा है बल्कि आईएएस से रिटायरमेंट लेकर उन्होंने खुद कई कम्पनियाँ खड़ी कीं जिनका गुजरात कनेक्शन भी रहा है, आज भी उनकी पत्नी कई कम्पनियों में हैं। यही नहीं उन्होंने अमेरिका से एमबीए किया है और लौटकर नौकरी से इस्तीफा दे दिया। यानी उनका भी अमेरिका कनेक्शन है। फिर रेलवे के निजीकरण के पहले चरण में प्रमुख रेलवे स्टेशन निजी हाथों में सौंपे जा रहे हैं, जिसमें सबसे बड़े खिलाड़ी गौतम अडानी हैं। फिर टेलिकॉम में एयरटेल, वोडाफोन-आईडिया के साथ मुकेश अम्बानी को जिओ अगली पायदान पर है जिसके हितों की रक्षा का दायित्व अश्विनी वैष्णव पर है।
इसके अलावा हरदीप सिंह पुरी और आरके सिंह को पदोन्नति देकर कैबिनेट मंत्री बना दिया। हरदीप पुरी को शहरी विकास मंत्रालय के साथ पेट्रोलियम जैसे बड़े मंत्रालय सौंपे गए हैं। पेट्रोलियम में मुकेश अम्बानी की आरआईएल सबसे बड़ी प्लेयर है। फिर जिस तरह मुकेश अम्बानी ने सऊदी अरब के तेल की प्रमुख कम्पनी आरामको के साथ समझौता किया है और रिलायंस इंडस्ट्री के बोर्ड में शामिल किया है उससे भारत को इस्लामिक दुनिया में पाकिस्तान पर बढ़त मिल गयी है। हरदीप पुरी विदेश सेवा के नौकरशाह हैं और उनके अन्तर्राष्ट्रीय जगत में सम्पर्क सम्बन्ध रहे हैं। पूर्व गृह सचिव आरके सिंह मालेगांव ब्लास्ट में हिन्दू आतंक की अवधारणा उजागर करने में अग्रणी रहे हैं इसके बावजूद उन्हें कैबिनेट में पावर और रिन्यूएबल एनर्जी मंत्रालय मिला है। इस क्षेत्र में भी अडानी और अम्बानी के हित जुड़े हुए हैं।
जेडीयू कोटे से कैबिनेट मंत्री बने आरसीपी सिंह भी पूर्व आईएएस अधिकारी हैं और अब वो स्टील मंत्रालय का पदभार संभालेंगे। स्टील में भी टाटा ,लक्ष्मी मित्तल जैसे कार्पोरेट्स के हित जुड़े हुए हैं।विदेश मंत्री एस जयशंकर पहले से कैबिनेट में है और वो भी नौकरशाह रह चुके हैं।राज्यमंत्री के पद पर सोम प्रकाश और अर्जुन मेघवाल भी पूर्व में ब्यूरोक्रेसी का हिस्सा रह चुके हैं।सोम प्रकाश कॉमर्स मंत्रालय में राज्य मंत्री हैं, तो अर्जुन मेघवाल संसदीय कार्य राज्य मंत्री हैं और साथ में संस्कृति मंत्रालय में राज्य मंत्री का प्रभार भी संभाल रहे हैं।
मंत्रिमंडल में 27 ओबीसी, 20 आदिवासी-दलित और 11 महिला को जगह मिली है। मोदी के कैबेनिट में 7 आईएएस, 3 एमबीए, 7 पीएचडी, 13 वकील, 6 डॉक्टर और 5 इंजीनियर हैं।मोदी ने मंत्रिमंडल में सामाजिक समीकरण और अच्छे शासन के लिए नये मंत्रियों की योग्यता और अनुभव पर जोर दिया है, लेकिन गेम प्लान सफल होगा या नहीं, ये अभी कहना बेहद मुश्किल है ।ओबीसी और दलितों को वरीयता देने के कारण सवर्ण विशेषकर ब्राह्मण मतदाताओं में बहुत क्षोभ है जिसका खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ सकता है।
यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर जातीय समीकरणों पर दांव चल दिया है। मोदी मंत्रिमंडल विस्तार में तीन ओबीसी, तीन अनुसूचित जाति और एक ब्राह्मण सांसद को शामिल किया गया है। इससे स्पष्ट है कि यूपी चुनाव 2022 में जातियों में संतुलन बैठाकर भाजपा एक बार फिर बहुमत हासिल करने की फिराक में है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए बदायूं के बीएल वर्मा लोध जाति से हैं। साथ ही वह काफी समय से भाजपा संगठनके साथ जुड़े रहे।एसपी सिंह बघेल भी आगरा सुरक्षित से सांसद हैं। वह कई बार सांसद रहे हैं और भाजपा के पिछड़ा वर्ग मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं। वह भी संगठन का हिस्सा रहे हैं।
मोदी मंत्रिमंडल विस्तार में तीन अनुसूचित जाति के सांसदों को शामिल किया है। अन्य पिछड़ा वर्ग के तीन सांसदों महाराजगंज से पंकज चौधरी, मिर्जापुर से अनुप्रिया पटेल और बीएल वर्मा को शामिल किया गया है। ब्राह्मण चेहरे के रूप में लखीमपुरखीरी से सांसद अजय कुमार को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है।
मंत्रिपरिषद में विस्तार के दौरान गुजरात को खास तवज्जो दी गई। पीएम मोदी की नई कैबिनेट में गुजरात के चार चेहरों को जगह मिली है। चार सांसदों को जगह मिलने के पीछे वर्ष 2022 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं। इसमें सूरत से सांसद दर्शन विक्रम जरदोश, खेड़ा से चौहान देवुसिंह और सुरेंद्रनगर से सांसद मुंजापारा महेंद्रभाई को पहली बार केंद्रीय मंत्रिरमंडल में शामिल किया गया है। वहीं राज्यसभा सांसद मनसुख मांडविया का प्रमोशन हुआ है। पहले वो राज्यमंत्री थे।
पीएम मोदी ने कैबिनेट विस्तार में गुजरात के क्षेत्रीय और जातीय दोनों ही समीकरण साधने का दांव चला है। सौराष्ट्र, दक्षिण गुजरात और मध्य गुजरात को प्रतिनिधित्व मिला है।खेड़ा के देवू सिंह चौहान, सुरेंद्रनगर के डॉ. महेंद्र मुंजपुरा और सूरत के दर्शन जरदोश को जगह मिली है। इस तरह राज्य के सौराष्ट्र, दक्षिण गुजरात और मध्य गुजरात क्षेत्रों को पीएम मोदी ने महत्व दिया है। देवू सिंह चौहान ओबीसी हैं जबकि दर्शना जरदोश दक्षिण गुजरात का प्रतिनिधित्व करती हैं। डॉ. महेंद्र मुंजपुरा कोली समुदाय से आते हैं।
गुजरात में पटेल समुदाय राजनीतिक रूप से काफी अहम माने जाता है। पटेल समुदाय में कड़वा और लेउवा पटेल होता हैं और मोदी ने अपनी कैबिनेट में दोनों ही पाटीदार समुदाय को तव्वजो दी है। पुरुषोत्तम रूपाला कड़वा पाटीदार और मनसुख मांडविया लेउवा पाटीदार हैं। इस तरह से पीएम मोदी दोनों को नेताओं को राज्य मंत्री से प्रमोशन कर कैबिनेट मंत्री बना दिया है। पुरुषोत्तम रूपाला और मनसुख मांडविया का कद बढ़ने को गृह मंत्री अमित शाह का पर कतरने की कोशिश मना जा रहा है क्योंकि गुजरात से अमित शाह के साथ ये दोनों भी कैबिनेट मंत्री बन गये हैं।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह का लेख।)