Thursday, March 23, 2023

लोकसभा और कुछ विधानसभाओं में कोई डिप्टी स्पीकर नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र-राज्यों से मांगा जवाब

जेपी सिंह
Follow us:

ज़रूर पढ़े

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार और पांच राज्यों को एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया था कि लोकसभा और पांच राज्यों की राज्य विधानसभाओं के डिप्टी स्पीकर के चुनाव अभी तक नहीं हुए हैं। लोकसभा का डिप्टी स्पीकर पद 23 जून, 2013 से खाली है। ये मामला चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था। कोर्ट ने इस मसले पर केंद्र और राज्यों से जवाब मांगा है।

पीठ ने इस मामले को ‘बहुत जरूरी’ बताते हुए जनहित याचिका से निपटने में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि से मशवरा मांगा है। लोकसभा के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड और राजस्थान की विधानसभाओं में भी डिप्टी स्पीकर नहीं हैं। लोकसभा के महासचिव और विधानसभा के प्रमुख सचिवों या सचिवों को मामले में पार्टी बनाया गया है।

सुनवाई के दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि लोकसभा और इन राज्यों की विधानसभाओं दोनों में, डिप्टी स्पीकर का पद नहीं भरा गया है। लोकसभा के लिए अनुच्छेद 93 में कहा गया है कि डिप्टी स्पीकर का चुनाव करना अनिवार्य है। अनुच्छेद 178 राज्य विधानसभाओं के लिए ऐसा करता है।

अनुच्छेद 93 में कहा गया है कि लोगों का सदन यानी लोकसभा दो सदस्यों को क्रमश: स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के रूप में चुनेगी। इसके अलावा, अनुच्छेद 178 में कहा गया है कि किसी राज्य की प्रत्येक विधान सभा के दो सदस्यों को क्रमश: स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के रूप में चुनेगी।

संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा, यथाशीघ्र, अपने दो सदस्यों को अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनेगी और जब-जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होता है, तब-तब लोकसभा किसी अन्य सदस्य को, यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष चुनेगी। उल्लेखनीय है कि संविधान निर्माताओं ने लोकसभा के गठन के बाद न केवल यथाशीघ्र अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पदों के चुनने के दायित्व को लोकसभा के ऊपर डाला है, बल्कि यह भी सांवैधानिक व्यवस्था की कि जब-जब उक्त पद खाली हों, उन्हें यथाशीघ्र भरा जाए।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट विभा दत्ता मखीजा ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 93 और अनुच्छेद 178 के अनुसार, राज्य विधानसभाओं के लिए डिप्टी स्पीकर के पद के लिए चुनाव कराना अनिवार्य है। उन्होंने ये भी कहा कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड और मणिपुर राज्यों में डिप्टी स्पीकर नहीं है। उन्होंने कहा कि याचिका में मणिपुर का उल्लेख नहीं किया गया है।

इस मसले पर लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि सरकार लोकसभा में सभी स्थापित प्रथाओं और परंपराओं को नष्ट कर रही है…यह विपक्ष का अधिकार है। परंपरागत रूप से डिप्टी स्पीकर का पद हमेशा विपक्षी दलों के पास रहा है। सरकार चाहे जिस पार्टी को दे दे, लेकिन परंपरा नहीं टूटनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि इस बारे में वह लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला को कई पत्र लिख डिप्टी स्पीकर नियुक्त करने की मांग कर चुके हैं। अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि उन्होंने ओम बिड़ला को बताया कि संवैधानिक जनादेश के अनुसार, नई लोकसभा के गठन के बाद, लोकसभा के डिप्टी स्पीकर के पद को या तो चुनाव या फिर आम सहमति से भरा जाना चाहिए।

कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने इसे लोकतंत्र का मजाक बताते हुए कहा कि यह दर्शाता है कि सरकार देश को लोकतांत्रिक रास्ते पर नहीं चलाना चाहती। इसलिए प्रत्येक लोकतांत्रिक संस्था को नष्ट कर दिया जाता है और रौंद दिया जाता है।

संसद के दोनों सदनों में समय-समय पर प्रशासनिक रिक्त पदों को भरने के लिए प्रश्न पूछे जाते हैं। सरकार का सदैव आश्वासन होता है कि वह रिक्तियां भरने के लिए प्रतिबद्ध है, जो एक सतत प्रतिक्रिया है। लोकसभा उपाध्यक्ष का पद एक सांविधानिक पद है।

सत्रहवीं लोकसभा की पहली बैठक 17 जून, 2019 को हुई और नियमानुसार सदस्यों को पद की शपथ दिलाने के बाद 19 जून को अध्यक्ष का चुनाव हुआ। परंतु उपाध्यक्ष का चुनाव पौने चार वर्ष बाद भी नहीं हुआ। यह विलंब अभूतपूर्व है। पहली से सोलहवीं लोकसभा के उपाध्यक्षों का चुनाव अध्यक्ष के चुनाव के बाद उसी सत्र या अगले सत्र में होता रहा है, बारहवीं लोकसभा के अपवाद को छोड़कर, जब उपाध्यक्ष का चुनाव तीसरे सत्र में हुआ।

उपाध्यक्ष के वही दायित्व हैं, जो अध्यक्ष के हैं, जब वह अध्यक्ष की अनुपस्थिति में पीठासीन होते हैं। 1956 में अध्यक्ष जी वी मावलंकर के अकस्मात निधन के बाद उपाध्यक्ष एमए अयंगर ने अध्यक्ष का पदभार सभांला। ऐसा ही 2002 में जीएमसी बालयोगी की मृत्यु पर उपाध्यक्ष पीएम सईद ने अध्यक्ष का पदभार संभाला।

उल्लेखनीय है कि आतंकवाद निरोधी विधेयक, 2002, जिसे संसद की संयुक्त बैठक ने 26 मार्च, 2002 को पारित किया था, तब बालयोगी के निधन के कारण सदन की अध्यक्षता उपाध्यक्ष सईद ने ही की थी। सईद विपक्ष से थे और सरकार भाजपा की थी।

लोकसभा प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन नियमों के अनुसार अध्यक्ष के निर्वाचन की तिथि राष्ट्रपति द्वारा तय की जाती है और उपाध्यक्ष के निर्वाचन की तिथि अध्यक्ष द्वारा। परंतु सुस्थापित संसदीय परंपरा के अनुसार उपाध्यक्ष के निर्वाचन प्रक्रिया की पहल संसदीय कार्यमंत्री द्वारा की जाती है। उपाध्यक्ष का पद संसदीय परंपरानुसार प्रतिपक्ष को जाता है। जब प्रतिपक्ष बिखरा हो, तो विपक्ष के किस धड़े को यह पद जाए, इसका पूर्व निर्णय सरकार के उच्च स्तर पर ही होता है। परंतु संविधान के आदेशानुसार पद भरा जाता रहा है।

यह भी परंपरा है कि सदन द्वारा नवनिर्वाचित उपाध्यक्ष को संसदीय कार्यमंत्री या खुद प्रधानमंत्री उन्हें उनके लिए चिह्नित सीट तक ले जाते हैं। वर्ष 1990 में प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने उपाध्यक्ष पद के लिए शिवराज पाटिल का नाम प्रस्तावित किया था। संसदीय कार्य मंत्री पी उपेंद्र ने उन्हें पदासीन किया था। 2004 में विपक्ष के चरनजीत सिंह अटवाल निर्विरोध उपाध्यक्ष चुने गए थे और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें उपाध्यक्ष की सीट पर बिठाया था।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

जनचौक से जुड़े

5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest News

कीड़ाजड़ी: एक दुस्साहसी की शब्द-यात्रा

                                                        एक (WE CAN NOT GO BACK TO SAINT. THERE IS FOR MORE TO BE LEARNED FROM THE SINNER)                                     OSCAR WILDE  ( हम...

सम्बंधित ख़बरें