Wednesday, April 17, 2024

चुनाव दर चुनाव ईवीएम पर उठते सवाल

किसी भी कीमत पर चुनाव जीतने और चुनाव जीतवाने की हवस ने भारतीय चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा तार-तार कर दी है, पर चुनाव आयोग के कर्ताधर्ताओं के आँख मूंदने से उनकी प्रतिबद्धता पर उठते सवालों से भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। असम में दूसरे चरण के मतदान के बाद एक वीडियो सामने आया है जिसमें भाजपा उम्मीदवार की कार में कथित रूप से ईवीएम देखी जा रही है। प्रियंका गांधी समेत कांग्रेस के नेताओं ने बीजेपी पर गंभीर आरोप लगाकर वीडियो की जांच कराने की मांग की है। कांग्रेस ने कहा है कि वोटिंग मशीन ही शक के दायरे में तो बचा क्या?

प्रश्न यही है कि आखिर ईवीएम में कोई बटन दबाएं तो भाजपा को ही वोट जाता क्यों दिखता है, किसी और दल या निर्दलीय को क्यों नहीं? आखिर ईवीएम भाजपा नेताओं या उम्मीदवारों के पास से ही क्यों पकड़ी जाती है? बाम्बे हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में जिन 20 लाख ईवीएम के गायब होने का मामला उठाया गया है आखिर वह कहाँ हैं? क्या उन मशीनों से लगातार चुनाव प्रभावित नहीं किये जा रहे?

असम में दूसरे चरण के मतदान के खत्म होते ही एक वीडियो सोशल मीडिया पर छा गया जिसमें पथरकंडी से बीजेपी उम्मीदवार की कार में कथित रूप से ईवीएम मशीनें देखी जा रही हैं। यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है और प्रियंका गांधी समेत कांग्रेस के नेताओं ने बीजेपी पर गंभीर आरोप लगाकर वीडियो की जांच कराने की मांग की है। यह वीडियो असम के स्थानीय पत्रकार अतानु भूयन ने अपने ट्विटर हैंडल से पोस्ट किया। जिसके कैप्शन में उन्होंने लिखा पथरकंडी से बीजेपी उम्मीदवार कृष्णेंदु पॉल की कार से ईवीएम मिलने के बाद स्थिति तनावपूर्ण है। देखते ही देखते कई कांग्रेस नेताओं ने इसे शेयर करके बीजेपी पर निशाना साधा। हालांकि अभी बीजेपी या चुनाव आयोग की तरफ से कोई बयान नहीं आया है।

वीडियो में दिख रहा है कि सफेद रंग की जीप (जिसका नंबर AS 10B 0022 है) के अंदर ईवीएम देखी जा रही है। वीडियो में लोग यह कहते सुने जा रहे हैं कि जीप कृष्णेंदु पॉल की है। इसके बाद कांग्रेस सांसद प्रद्युत बोरोदलई से लेकर गौरव गोगोई ने इस पर ट्वीट किया और बीजेपी ने ईवीएम लूटने का आरोप लगाया।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट किया, ‘हर बार ऐसे वीडियो सामने आते हैं जिनमें प्राइवेट गाड़ियों में ईवीएम ले जाते हुए पकड़े जाते हैं। अप्रत्याशित रूप से उनमें कुछ चीजें कॉमन होती है- गाड़ियां भाजपा उम्मीदवार या उनके साथियों से जुड़ी होती हैं। वीडियो एक घटना के रूप में सामने आते हैं और फिर झूठ बताकर खारिज कर दिया जाता है। ‘प्रियंका ने आगे लिखा, ‘भाजपा अपनी मीडिया मशीनरी का इस्तेमाल करके उन्हें ही आरोपी ठहरा देती है जिन्होंने वीडियो एक्सपोज किए। फैक्ट यह है कि ऐसे कई सारी घटनाएं रिपोर्ट की जा रही हैं लेकिन इन पर कुछ नहीं किया जा रहा है। चुनाव आयोग को इन शिकायतों पर निर्णायक रूप से कार्रवाई शुरू करने की आवश्यकता है और सभी राष्ट्रीय दलों को ईवीएम के इस्तेमाल की जरूरतों पर एक गंभीर पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए।’

शशि थरूर ने ट्वीट किया, ‘यह काफी चौंकाने वाला है। भारत की लोकतांत्रिक संस्कृति में आलोचकों का भी मानना है कि कम से कम चुनाव मुक्त और निष्पक्ष हों लेकिन हम चुनावी निरंकुश बन चुके हैं। अगर ईवीएम ही संदिग्ध हो जाए तो बचा क्या? चुनाव आयोग को इस पर तुरंत सार्वजनिक जांच करानी चाहिए।’

कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने ट्वीट किया, ‘सिर्फ इसी रास्ते से बीजेपी असम जीत सकती है- ईवीएम लूटकर। ईवीएम कैप्चरिंग, जैसे बूथ कैप्चरिंग हुआ करती थी। यह सब चुनाव आयोग की नाक के नीचे हो रहा है। लोकतंत्र के लिए दुखद दिन।’

असम से कांग्रेस सांसद प्रद्युत बोरदलोई ने ट्वीट किया, ‘बीजेपी अनुशासित रूप से यह स्वीकार क्यों नहीं कर पा रही है कि वे असम चुनाव हार रहे हैं। ईवीएम चोरी करना और रिजल्ट में हेराफेरी आपके लिए अच्छा नहीं है। अगर चुनाव आयोग ने आपको माफ कर भी दिया तो भी असम कभी इसके लिए क्षमा नहीं करेगा।’

नई खबर प्लांट

असम में बीजेपी उम्मीदवार की कार में ईवीएम मिलने के मामले में एक नई खबर प्लांट की गयी है। समाचार एजेंसी एएनआई के सूत्रों के मुताबिक, चुनाव आयोग की गाड़ी में खराबी की वजह से भाजपा उम्मीदवार की कार से ईवीएम को सही सलामत पहुंचाने में मदद ली गई थी। इस मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हुई है, जिन्होंने ईवीएम ले जाने वाली कार को रोका था।

यहाँ फिर सवाल है कि भाजपा उम्मीदवार की गाड़ी क्यों? दूसरे दलों के उम्मीदवार की गाड़ी भी तो ली जा सकती थी?

पिछली रात असम में पथरकंडी विधानसभा में एक कार में ईवीएम मशीन मिली जिसे रोककर लोगों ने कहा कि यह कार चुनाव आयोग की नहीं है। सूत्रों के मुताबिक, चुनाव आयोग की गाड़ी में खराबी आ गई थी और अधिकारियों ने वहां से गुजरने वाली एक कार में इसे रख दिया जो बाद में बीजेपी उम्मीदवार की निकली। एएनआई सूत्रों के अनुसार, ईवीएम ले जाने वाली कार को रोकने वाले अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है। आगे की जांच जारी है। भीड़ के हमले के दौरान ईवीएम को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। ईवीएम प्रशासन के कब्जे में है।

इस पर असम कांग्रेस ने एक बार फिर पलटवार किया है। असम से कांग्रेस के सांसद गौरव गोगोई ने ट्वीट किया, ‘हर चुनाव में यही स्क्रिप्ट दोहराई जाती है- इलेक्शन कमीशन की कार खराब हो गई, ईवीएम मशीन को बीजेपी से जुड़ी कार में ट्रांसफर कर दिया गया, बाद में जब जनता नाराजगी जाहिर करती है तब अधिकारियों को इसका पता लगता है। इससे पहले कि जनता का भरोसा पूरी तरह खत्म हो जाए, चुनाव आयोग को खुद को सुरक्षित करना चाहिए।’

दस फीसद ईवीएम हैक से परिणाम प्रभावित

गिरीश मालवीय के फेसबुक पोस्ट के अनुसार लोगो को एक बहुत बड़ी गलतफहमी है कि चुनाव जीतने के निर्वाचन क्षेत्र की लिए सारी ईवीएम में छेड़छाड़ करनी होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि एक निर्वाचन क्षेत्र में 5-10% ईवीएम को हैक कर के मनचाहे परिणाम हासिल किये जा सकते हैं, बशर्ते आपको यह मालूम हो कि आपको किन बूथों पर ऐसा करने की आवश्यकता है। कुछ ही बूथों पर बदले गए वोट पूरे क्षेत्र के राजनीतिक परिदृश्य को बदलने की ताकत रखते हैं।

त्रिपुरा का ही उदाहरण लेते हैं यह आसानी से पता लग जाता है कौन से बूथ में त्रिपुरा की सत्तारूढ पार्टी सीपीएम के खिलाफ वोट गिरते आए हैं। त्रिपुरा में एक्सपर्ट ने सर्वे डेटा, जाति और अर्थ-सामाजिक तथ्यांकों को मिलाया। भाजपा के पूर्व रणनीतिकार रहे शिवम शंकर सिंह बताते हैं कि हमने फोकस समूह चर्चाएं की और जानना चाहा कि कौन से जातीय और आदिवासी समुदाय किन पार्टियों को वोट देते हैं। उसके बाद हमने एक-एक बूथ पर मेहनत की।

जाहिर था कि उन्हें किन बूथों पर अधिक ध्यान देना है यह उन्हें पहले से मालूम होता है। असली खेल चुनाव आयोग से शुरू होता है। पहले यह प्लान किया जाता है कि किस इलाके में किस बड़े नेता की सभा/ रैली/ रोड शो होगा फिर चुनाव आयोग उसी के आधार पर प्रदेश के चुनाव में विभिन्न चरणों की घोषणा करते हैं, अब बंगाल जैसे क्षेत्र में आठ चरण में चुनाव कराने की कोई वास्तविक जरूरत नहीं है लेकिन कराए जा रहे हैं। इसी बीच प्रधानमंत्री बांग्लादेश दौरा कर एक विशेष बंगाली समुदाय को प्रभावित करने में लगे हैं।

चुनाव के हर चरण में बीजेपी बढ़ चढ़कर दावे करती है बंगाल में पहले चरण के बाद अमित शाह ने दावा किया कि बीजेपी 30 में से 26 सीटे जीतेगी। कायदे से इस तरह के बयान दिए नहीं जाने चाहिए। चुनाव आयोग ने असम के आठ अखबारों को नोटिस जारी किया है, जिसमें भाजपा के एक विज्ञापन के शीर्षक के रूप में यह दावा किया गया है कि पार्टी सभी 47 सीटों पर जीत हासिल करेगी, विज्ञापनों को समाचार पत्रों के मुख पृष्ठ पर “मतदाताओं के मन को पूर्वाग्रह से ग्रसित करने के लिए एक तरीके से प्रस्तुत किया गया है और विज्ञापनों का यह जानबूझकर, दुर्भावनापूर्ण इस्तेमाल हुआ है’ ये बात की गई।

यानी हर तरह से मतदाता के माइंड को हैक करने का प्रयास किया जाता है। यह सब जानते बुझते किया जाता है और ईवीएम को अंतिम हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। ईवीएम की बात उठाने वालों को हर तरह से हतोत्साहित किया जाता है। आप को जानकर आश्चर्य होगा कि अभी बंगाल में सिर्फ पहले चरण की वोटिंग हुई है ओर वहाँ हुए अधिक मतदान के बीच ही ईवीएम की गड़बड़ी की शिकायत तृणमूल कर रही है। वे कह रही है कि वोटिंग मशीनों को कुछ स्थानों पर ‘फिक्स्ड’ किया गया है। लेकिन कोई इस पर संज्ञान नही ले रहा?

त्रिपुरा में 2018 के चुनाव में  वाम मोर्चा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने ईवीएम में गड़बड़ी के आरोप लगाए थे। उन्होंने जिस सीट धनपुर से चुनाव लड़ा वहाँ गड़बड़ी के भी सुबूत मिले थे। उस वक्त निर्वाचन आयोग ने भी यह स्वीकार किया था कि चार विधानसभा सीटों के चार मतदान केंद्रों में मतदाताओं की कुल संख्या और वहां हुए मतदान की संख्या अलग-अलग रही। उस वक्त वाम मोर्चा ने चुनाव आयोग को भेजे गए एक ज्ञापन में आरोप लगाए थे कि ईसीएल अभियंताओं ने राजनीतिक दल के प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति में चुनाव से एक दिन पहले रात में ही ईवीएम खोल दी।

पानीसागर विधानसभा क्षेत्र में सभी ईवीएम के अलावा धर्मनगर के 12 और जुब्राजनगर के तीन ईवीएम खोली गयीं। उन्होंने कहा कि इससे संदेह उत्पन्न होता है क्योंकि निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय में उम्मीदवारों के अनुरूप पूरी तरह से तैयार ईवीएम को खोलने का अधिकार किसी को नहीं है। यह भी रहस्य बना हुआ है कि अभियंताओं ने मशीन के साथ क्या किया होगा?

न केवल खेल EVM के जरिए किया जाता है बल्कि काउंटिंग के वक्त भी बहुत कुछ पलटाया जाता है। आज जैसे नंदीग्राम में ममता लड़ रही है वैसे ही 2018 में माणिक सरकार धनपुर में लड़ रहे थे। काउंटिंग के वक्त एक समय ये स्थिति आ गयी थी कि टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज चलने लगी कि माणिक सरकार 2000 वोटों से पीछे चल रहे हैं। उस वक्त लगा था मानिक सरकार भी हारेंगे। जैसे ही काउंटिंग शुरु हुई माणिक सरकार भाजपा उम्मीदवार से पीछे ही चल रहे थे। यह हैरान करने वाली बात थी बताया जा रहा था कि 4 राउंड की काउंटिंग तक सरकार पीछे रहे वहीं उसके बाद भाजपा ने शिकायत की, कि ईवीएम मशीन पर पोलिंग एजेंट के हस्ताक्षर नहीं हैं। यानी अपने उम्मीदवार के आगे होने के बावजूद भाजपा यह शिकायत करने लगी कि एक विशिष्ट जगह की ईवीएम में पोलिंग एजेंट के हस्ताक्षर नहीं हैं। तुंरन्त चुनाव आयोग ने उसके बाद काउंटिंग बंद करवा दी।

इसके बाद माणिक सरकार ने खुद सामने आकर बयान दिया कि बीजेपी माहौल खराब कर मतगणना को प्रभावित कर रही है। सीपीएम द्वारा आयोग में इसकी शिकायत करने पर देर शाम रीकाउंटिंग हुई, जिसमें माणिक सरकार 5142 वोटों से जीत गये। वो भी पूरे परिणाम आने के बाद। यह तो हॉट सीट का मामला था तो प्रकाश में आ गया लेकिन कितनी ही सीटों पर तो कलेक्टर अपनी मनमानी कर लेते हैं और मनचाहे फैसले लेकर विशिष्ट पार्टी को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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