Sunday, April 28, 2024

क्या किसी योजना के तहत रोकी गयी थी जस्टिस विक्रमनाथ के आंध्रा हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनने की फाइल?

उच्चतम न्यायालय में मौजूदा रिक्तियों को भरने के लिए के लिए दो नामों की चर्चा विधिक (लीगल) क्षेत्रों में चल रही है। इसमें कर्नाटक उच्च न्यायालय की वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस बीवी नागरत्न और गुजरात हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस विक्रमनाथ का नाम शामिल है।जहाँ जस्टिस बीवी नागरत्न उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ईएस वेंकटरमैया की पुत्री हैं वहीं जस्टिस विक्रमनाथ कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के खास हैं। इसका अंदाज़ा केवल एक तथ्य से लगाया जा सकता है कि मोदी सरकार ने जस्टिस विक्रमनाथ को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त करने से इंकार कर दिया था, जिसके बाद उनको कॉलेजियम की दूसरी सिफारिश पर गुजरात हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस पद पर नियुक्त कर दिया गया था। प्रधानमन्त्री और गृहमंत्री के लिए गुजरात कितना महत्वपूर्ण है यह किसी से छिपा नहीं है। 

यदि कॉलेजियम जस्टिस बीवी नागरत्न के नाम की सिफारिश करती है और उनका प्रमोशन कर दिया जाता है तो वह भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने की कतार में शामिल हो जाएंगी। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कॉलेजियम के पास इस समय लैंगिक भेदभाव ख़त्म करने का मौका है। जस्टिस नागरत्न को 2 फरवरी 2008 को कर्नाटक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। अगर उच्च न्यायालय की न्यायाधीश नागरत्न का नाम आगे बढ़ाया जाता है तो वह न्यायमूर्ति सूर्यकांत के बाद फरवरी 2027 से 29 अक्टूबर 2027 तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर रह सकती हैं। जस्टिस नागरत्न के पिता, न्यायमूर्ति ईएस वेंकटरमैया 1989 में कुछ महीनों के लिए सीजेआई थे।

अब कोलेजियम के अंदरखाने क्या होता है यह तो कभी बाहर नहीं आता पर देखने से ऐसा लगता है कि चाहे सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम हो या हाईकोर्ट का उसमें कई नाम ऐसे होते हैं जिनसे लगता है कि कहीं न कहीं इसमें सरकार के किसी हैवीवेट या न्यायपालिका के किसी रसूखदार का इशारा है। अब सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ को पदोन्नत करके आंध्र प्रदेश का मुख्य न्यायाधीश बनाना चाहता था और केंद्र सरकार उन्हें गुजरात उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाना चाहती थी। अंततः ऐसा ही हुआ।

08 अप्रैल, 2019 को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले कोलेजियम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ को पदोन्नत करके आंध्र प्रदेश का मुख्य न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की थी। मोदी सरकार ने जस्टिस विक्रम नाथ की फाइल लौटा दी थी, लेकिन इसके पीछे कोई कारण नहीं बताया था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से उस फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा था।

इसके बाद उच्चतम न्यायालय की कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति विक्रम नाथ के नाम की सिफारिश 22 अगस्त को इस पद के लिए की थी। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ को गुजरात उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। कानून मंत्रालय के न्याय विभाग ने न्यायमूर्ति नाथ को गुजरात उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की अधिसूचना जारी कर दी। गुजरात हाईकाेर्ट में नवंबर 18 से नियमित चीफ जस्टिस नहीं थे। जस्टिस अनंत सुरेंद्र राय दवे 14 नवंबर 2018 से कार्यवाहक चीफ जस्टिस के रूप में  काम कर रहे थे।

जस्टिस विक्रम नाथ को यदि जस्टिस नागरत्न के पहले नियुक्ति दी जाती है  तो  वह 2027 में सीजेआई का पदभार संभालेंगे। यदि न्यायमूर्ति नागरत्न को पहले पदोन्नति दी जाती है तो 2027 में वह पहली महिला सीजेआई बन सकती हैं।

कर्नाटक का पहले से ही उच्चतम न्यायालय में पर्याप्त प्रतिनिधित्व है और अन्य अदालतों को भी प्रतिनिधित्व दिए जाने की आवश्यकता है। लेकिन, वह एक अच्छी जज हैं और इस पर अंतिम निर्णय कॉलेजियम द्वारा लिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान में दो रिक्तियां हैं, जबकि दो और अगले कुछ महीनों में न्यायमूर्ति आर. भानुमति (19 जुलाई) और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा (2 सितंबर) की सेवानिवृत्ति से होने वाले हैं। इस बात की भी संभावना है कि अगर जस्टिस नागरत्न के नाम को अभी मंजूरी नहीं मिलती है, तो इस साल के अंत में दो और रिक्तियां जब निकलेंगी, यह तब हो सकती है।

जस्टिस नागरत्न की भविष्य में सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नति की संभावनाओं के पक्ष में काम न करने वाले मुख्य कारण कर्नाटक उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की अनुमोदित संख्या 62 है। इसमें पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में तीन नामांकित व्यक्ति हैं।जस्टिस एमएम शांतनगौदर, एस अब्दुल नज़ीर और एएस बोपन्ना। इनमें से कोई भी जनवरी 2023 से पहले सेवानिवृत्त होने वाला नहीं है। जस्टिस नागरत्न को 29 अक्टूबर 2024 को सेवानिवृत्त होना है। यदि वह उच्चतम न्यायालय में पदोन्नत हो जाती हैं तो उन्हें  तीन साल का विस्तार मिल जायेगा। जस्टिस नागरत्न उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता में क्रम संख्या 46 पर हैं। मूल रूप से कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायाधीशों में उनके साथ वरिष्ठ दो न्यायाधीश हैं, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एलएन स्वामी और उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रवि विजयकुमार मलीमथ।

दरअसल जब उच्चतम न्यायालय में आगे बढ़ने की बात आती है, तो वरिष्ठता और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व प्रमुख मापदंड होते हैं। लेकिन अतीत में ऐसे मामले सामने आए हैं जब उच्चतम न्यायालय में पदोन्नति करते हुए वरिष्ठता की अनदेखी की गई है।इसका कोई लिखित नियम नहीं हैं और अंतिम विकल्प कॉलेजियम के भीतर आम सहमति पर निर्भर करता है। अखिल भारतीय वरिष्ठता के संदर्भ में केवल दो न्यायाधीश हैं, जो न्यायमूर्ति नागरत्न के बाद सेवानिवृत्त होने वाले हैं।वे हैं मेघालय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विश्वनाथ सोमदादर, जो 14 दिसंबर 2025 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं और बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता, जो 8 फरवरी 2027 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं।

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रवि शंकर झा (जिनकी पैरेंट हाई कोर्ट मध्य प्रदेश है), इलाहाबाद हाई कोर्ट के सीजे गोविंद माथुर (राजस्थान), कलकत्ता एचसी सीजे, टीबी राधाकृष्णन (केरल), मद्रास एचसी सीजे, एपी साही (इलाहाबाद), गुजरात एचसी सीजे, विक्रम नाथ (इलाहाबाद), त्रिपुरा एचसी सीजे अकिल ए कुरैशी (गुजरात एचसी), दिल्ली एचसी सीजे डीएन पटेल (गुजरात) और जम्मू-कश्मीर एचसी सीजे गीता मित्तल ( दिल्ली) के नाम भी विचाराधीन हैं।

इन नामों में से जस्टिस झा का प्रमोशन लगभग निश्चित है, क्योंकि 2 सितंबर को जस्टिस अरुण मिश्रा के सेवानिवृत्त होने के बाद मप्र हाईकोर्ट का कोई प्रतिनिधित्व नहीं होगा। पटना हाईकोर्ट के सीजे संजय करोल, जिनका पैरेंट हाईकोर्ट हिमाचल प्रदेश है, के नाम पर भी चर्चा की जा रही है, क्योंकि उस राज्य का अब जस्टिस दीपक गुप्ता की सेवानिवृत्ति के बाद प्रतिनिधित्व नहीं है। जस्टिस करोल अखिल भारतीय वरिष्ठता में जस्टिस नागरत्न से भी वरिष्ठ हैं।

वर्तमान में, सीजेआई बोबडे सहित सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीश हैं, जिनका मूल उच्च न्यायालय बॉम्बे हाई कोर्ट है, जबकि दिल्ली और इलाहाबाद (देश का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय) के सुप्रीम कोर्ट में तीन न्यायाधीश हैं और मद्रास और कलकत्ता के दो-दो न्यायाधीश हैं। गुजरात हाईकोर्ट के सिर्फ एक प्रतिनिधि हैं, जो दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पटेल की संभावनाओं को बढ़ाता है। सुप्रीम कोर्ट में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के एक-एक प्रतिनिधि हैं, जबकि उड़ीसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का कोई प्रतिनिधि नहीं है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह कानूनी मामलों के भी जानकार हैं।)

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