नई दिल्ली। केरल उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय खंडपीठ ने यह निर्णय दिया है कि माओवादी होना कोई अपने आप में अपराध नहीं है और माओवादी होने के आधार पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार का हनन नहीं किया जा सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि अच्छे उद्देश्यों के लिए गलत उपायों का इस्तेमाल करने की पुलिस और सरकार को इजाजत नहीं दी जा सकती है। इस दो सदस्यीय खंडपीठ की अध्यक्षता केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ऋषिकेश राय कर रहे थे। इस खंडपीठ के दूसरे सदस्य एके जयशंकरन नांबियार थे।
टाइम्स आफ इंडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक माननीय न्यायाधीशों ने यह निर्णय केरल सरकार की उस अपील के संदर्भ में दिया। जिसमें सरकार ने उसी हाईकोर्ट के एकल पीठ के फैसले को चुनौती दी थी। एकल पीठ ने भी यही फैसला सुनाया था। उसने कहा था कि माओवादी होना अपराध नहीं है। दरअसल माओवादी होने के आधार पर पुलिस ने बिना अदालत के वारंट को न केवल एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था बल्कि उसके घर की तलाशी ली थी और उससे पूछताझ किया था। इस मामले में एक सदस्यीय पीठ ने राज्य सरकार और पुलिस को कथित माओवादी को 1 लाख रूपए का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया था।
केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली इस दो सदस्यीय खंडपीठ ने इस बात पर जोर दिया कि माओवादी होने के आधार पर किसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है और उपरोक्त मामले में देश के एक नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है। इस तरह का मत भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी कई अवसरों पर व्यक्त किया है।
केरल उच्च न्यायालय का उपरोक्त निर्णय इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि पिछले तीन-चार दिनों के बीच देश के कई हिस्सों में बिना किसी अदालती वारंट के कुछ लोगों के माओवादी होने के नाम पर पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों द्वारा उठाया गया, उनके घरों की तलाशी ली गई, उनसे कई दिनों तक पूछताछ की गई। उनमें से कुछ लोगों को दो-तीन दिनों बाद छोड़ दिया गया।
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