बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं। प्रचार ने रफ्तार पकड़ ली है और बीजेपी ने चमकते इश्तिहारों से सोशल मीडिया को भरना शुरू कर दिया है। इन पोस्टरों में बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। बिहार में स्कूली शिक्षा को लेकर बीजेपी ने एक पोस्टर ट्विट किया है, जिसमें लालू प्रसाद यादव के शासनकाल और एनडीए के शासनकाल की तुलना की गई है। पोस्टर में लिखा है कि “लालू राज में बच्चे चरवाहा विद्यालय में पढ़ते थे और एनडीए के शासनकाल में स्मार्ट क्लास में होती है पढ़ाई, और बच्चों के लिए 1.10 करोड़ सेट किताबों की छपाई हुई है। पढ़ रहा बिहार, बढ़ रहा बिहार।”
पोस्टर में बीजेपी स्मार्ट क्लास का दावा करती है, लेकिन यह नहीं बताती कि बिहार के कितने सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम हैं, स्कूलों में कंप्यूटर, प्रोजेक्टर और इंटरनेट की उपलब्धता की कोई जानकारी नहीं देती। किताबों की छपाई की बात करती है, लेकिन यह नहीं बताती कि कितने सरकारी स्कूलों में लाइब्रेरी है? बीजेपी जिन स्कूलों में स्मार्ट क्लास की बात कर रही है, क्या उन स्कूलों में पर्याप्त शौचालय हैं? प्रचार सच्चा है या झूठा, आखिर क्या है बिहार के सरकारी स्कूलों की स्थिति? आइए, पड़ताल करते हैं और विस्तार से समझते हैं।
बिहार के स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की सच्चाई
शिक्षा मंत्रालय, स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के अनुसार, बिहार में कुल 78,120 सरकारी स्कूल हैं, जिनमें से 6,403 गर्ल्स या सह-शिक्षा वाले सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए कार्यशील शौचालय नहीं हैं। 7,808 सरकारी स्कूलों में लड़कों के लिए कार्यशील शौचालय नहीं हैं। बिहार के कुल 78,120 सरकारी स्कूलों में से मात्र 10,773, यानी केवल 13% स्कूलों में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए शौचालय हैं, और 45% स्कूलों में रैंप की सुविधा भी नहीं है।
बिहार के 16,529, यानी 21% सरकारी स्कूलों में बिजली नहीं है। 52,488 स्कूलों में बच्चों के लिए खेल का मैदान नहीं है। बिहार के 5,500 स्कूलों में पीने के पानी की कार्यशील सुविधा नहीं है। हर घर नल से जल पहुंचाने का दावा करने वाली डबल इंजन की सरकार बिहार के 78,120 सरकारी स्कूलों में से 58,881, यानी 75% स्कूलों में नल से जल नहीं पहुंचा पाई है। बिहार के 75,994, यानी 97% सरकारी स्कूलों में सह-पाठ्यक्रम गतिविधि कक्ष या आर्ट एंड क्राफ्ट रूम नहीं है। बिहार के 82% सेकेंडरी स्कूलों में साइंस लैब नहीं है। बिहार के 15,439 स्कूलों में हाथ धोने की सुविधा नहीं है।
ये बात हुई बिहार के स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की। अब देखते हैं कि स्मार्ट क्लास के मामले में बिहार के स्कूलों की स्थिति क्या है?
बिहार के स्कूलों में स्मार्ट क्लास की सच्चाई
पोस्टर में बीजेपी ने दावा किया है कि अब बिहार में स्मार्ट क्लास वाले स्कूलों में पढ़ाई हो रही है। जबकि स्मार्ट क्लास वाले स्कूलों की सच्चाई यह है कि बिहार के 69,031, यानी 88% सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर की सुविधा नहीं है। बिहार के कुल 78,120 सरकारी स्कूलों में मात्र 5,057 सरकारी स्कूलों में ही कार्यशील डेस्कटॉप कंप्यूटर हैं, यानी 93.5% सरकारी स्कूलों में कार्यशील कंप्यूटर नहीं हैं। 78,120 सरकारी स्कूलों में से मात्र 516 सरकारी स्कूलों में कार्यशील लैपटॉप हैं, यानी 99% स्कूलों में लैपटॉप नहीं हैं।
बिहार के मात्र 1.1%, यानी सिर्फ 270 स्कूलों में टैबलेट हैं। बिहार के मात्र 1%, यानी 767 सरकारी स्कूलों में ही कंप्यूटर इंटीग्रेटेड टीचिंग-लर्निंग डिवाइस से कनेक्टेड हैं। बिहार के मात्र 3%, यानी 2,362 सरकारी स्कूलों में कार्यशील प्रोजेक्टर हैं। बिहार के 91% स्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम नहीं हैं। यहां तक कि बिहार के 99% सरकारी स्कूलों के पास कार्यशील मोबाइल फोन तक नहीं हैं, जिसका उपयोग शैक्षिक उद्देश्य के लिए किया जा सके। बिहार के 68,873, यानी 88% स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा नहीं है।
इसे कहते हैं नाम बड़े और दर्शन छोटे। प्रचार ऐसा किया जा रहा है जैसे बीजेपी ने बिहार की स्कूली शिक्षा और स्कूलों की काया ही पलट दी हो, जबकि सच्चाई यह है कि बिहार के स्कूलों में पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं। ऐसा लगता है जैसे बीजेपी अपने प्रचार की चकाचौंध से स्कूलों की बदरंग तस्वीर को ढक देना चाहती है।
1.10 करोड़ सेट किताबों और स्मार्ट क्लास की सच्चाई
बीजेपी के पोस्टर में किताबों के बारे में खास तौर पर एक दावा किया गया है कि 1.10 करोड़ सेट किताबों की छपाई हुई है। तो एक बार यह भी देख लेते हैं कि बिहार के सरकारी स्कूलों में लाइब्रेरी की क्या स्थिति है, कितने पुस्तकालयों में वास्तव में किताबें हैं और कितने पुस्तकालय ऐसे हैं जिनमें पुस्तकें ही नहीं हैं, बस कमरे के बाहर पुस्तकालय लिख दिया गया है।
शिक्षा मंत्रालय, स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के अनुसार, बिहार में 78,120 सरकारी स्कूल हैं, जिनमें से 41.21%, यानी 32,119 सरकारी स्कूलों में पुस्तकालय नहीं हैं। जिन स्कूलों में पुस्तकालय हैं, यानी किसी कमरे के बाहर या अलमारी के ऊपर लिखा है “पुस्तकालय”, तो यह मत समझिए कि उस अलमारी में किताबें भी होंगी। विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 56.9%, यानी आधे से ज्यादा स्कूल ऐसे हैं जिनमें किताबों वाली लाइब्रेरी नहीं है।
ड्रॉपआउट के मामले में बिहार देश में नंबर वन
बीजेपी स्मार्ट क्लास की बात कर रही है, लेकिन यह नहीं बता रही कि बिहार ड्रॉपआउट के मामले में देश में नंबर एक पर है। बिहार में पहली से पांचवीं कक्षा तक ड्रॉपआउट रेट 8.9% है, जो न केवल राष्ट्रीय औसत 1.9% से ज्यादा है, बल्कि देश में सबसे ज्यादा भी है। छठी से आठवीं कक्षा तक बिहार का ड्रॉपआउट रेट 25.9% है, जो न केवल राष्ट्रीय औसत 5.2% से ज्यादा है, बल्कि देश में सबसे ज्यादा है। आठवीं से दसवीं कक्षा तक बिहार का ड्रॉपआउट रेट 25.6% है, जो देश में सबसे ज्यादा है।
तमाम आंकड़े भारत सरकार, स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, UDISE+ रिपोर्ट 2023-2024 से लिए गए हैं।
(राज कुमार स्वतंत्र पत्रकार और फैक्ट चेकर हैं।)
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