दाभोलकर पानसरे हत्याकांड: बांबे हाईकोर्ट ने सीबीआई और एसआईटी से पूछा कब पूरी होगी जांच

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तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर और कॉमरेड गोविंद पानसरे की हत्या के मामले में चल रही जांच को लेकर एक बार फिर बॉम्बे हाईकोर्ट ने जाँच एजेंसियों को फटकार लगाई है। फरवरी, 2020 में भी हाईकोर्ट ने ऐसे ही शब्दों में फटकारा था। लेकिन एक साल में अदालत को जांच प्रक्रिया में कोई सुधार नहीं दिखा और उसने फिर से कड़े शब्दों में जाँच अधिकारियों को डांटा है।

जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस पी. मनीष की खंडपीठ का आक्रोश उस समय ज्यादा चढ़ गया जब उन्हें बताया गया कि कर्नाटक में कन्नड़ लेखक एमएम कलबुर्गी और पत्रकार गौरी लंकेश से जुड़े मामलों का ट्रायल भी शुरू हो चुका है। खंडपीठ ने तीखे तेवर दिखाते हुए कहा कि दाभोलकर की हत्या, 2013 में हुई। हम 2021 में भी मामले की जांच पूरी होने का इंतजार कर रहे हैं। कर्नाटक की वारदातें इसके बाद हुईं और वहां ट्रायल शुरू भी हो चुका है। खंडपीठ ने सवाल किया कि सारे मामले एक तरह के हैं तो महाराष्ट्र में अभी तक दाभोलकर मामले की सुनवाई शुरू क्यों नहीं हो पा रही है।

खंडपीठ ने कहा कि संवेदनशील मामलों में देश के नागरिकों को जानने का हक है कि जांच एजेंसी कब इन मामलों की जांच पूरी करेगी और कब मामले की सुनवाई शुरू होगी। खंडपीठ का कहना था कि अगली सुनवाई में उन्हें पुख्ता रिपोर्ट चाहिए। एजेंसियां बताएं कि उनका इन मामलों में क्या कहना है। खंडपीठ ने चेतावनी देते हुए कहा कि ऐसा नहीं हुआ तो किसी को बख्शा नहीं जाएगा। जस्टिस शिंदे ने तीखे तेवर दिखाते हुए कहा कि आप लोग यह कह सकते हैं कि कोर्ट बहुत ज्यादा सख्ती दिखा रहा है।

खंडपीठ ने कहा कि हम जाँच एजेंसियों पर शक नहीं कर रहे, लेकिन जांच सही दिशा में चल रही है, यह दिखाई भी देना चाहिए। यदि कोई अधिकारी इस जांच में देरी की कोशिश कर रहा होगा तो हम उसे छोड़ेंगे नहीं। अदालत ने कहा कि नरेंद्र दाभोलकर की हत्या हुए आठ साल हो गए जबकि गोविंद पानसरे की हत्या को छह साल। खंडपीठ ने सीबीआई और एसआईटी  को आड़े हाथ लेते हुए यह स्पष्ट करने को कहा कि वे कब तक अपनी जांच पूरी कर लेंगी। खंडपीठ ने कहा कि कर्नाटक में तो गोविंद पानसरे के मामले में मुक़दमा भी शुरू हो चुका है लेकिन हमारे यहाँ तो अभी तक जाँच ही चल रही है और यह कब तक चलेगी यही पता नहीं चल रहा है। खंडपीठ ने कहा कि इस प्रकार की देरी से न्याय व्यवस्था पर लोगों के भरोसे को धक्का पहुंचता है। ऐसे गंभीर मामलों में जांच त्वरित होनी चाहिए ताकि इस प्रकार की वारदातों पर अंकुश लगे तथा लोगों में भी विश्वास बढ़े कि कार्रवाई होती है। अदालत ने कहा कि इस प्रकार की घटनाएं भविष्य में न हों इस दिशा में भी प्रयास किये जाने चाहिए।

दाभोलकर और पानसरे के परिवार ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करके अपील की थी कि अदालत अपनी निगरानी में जांच कराए। दाभोलकर मामले में आखिरी बार सुनवाई फरवरी 2020 में हुई थी। उस दौरान केस एक नई बेंच के समक्ष रखा गया था। बेंच का गठन इसी मामले की सुनवाई के लिए किया गया था। दाभोलकर परिवार के वकील अभय नेगी ने कोर्ट को बताया था कि महाराष्ट्र एटीएस ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि चारों मामलों के तार आपस में जुड़े हैं। नेगी ने कोर्ट को बताया कि सीबीआई ने चार आरोपियों के खिलाफ तीन चार्जशीट दाखिल की हैं, वहीं एसआईटी की जांच अधर में है।

सीबीआई की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसीटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि उन्हें जो काम दिया गया था, उसे पूरा कर लिया गया है। मर्डर वेपन की तलाश के लिए थाने की खाड़ी में तलाशी अभियान चलाया गया, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी है। उन्होंने स्टेटस रिपोर्ट फाइल करने के लिए कोर्ट से कुछ समय मांगा। SIT की पैरवी कर रहे वकील मनकंवर देशमुख ने कोर्ट को बताया कि स्टेटस रिपोर्ट जल्दी दाखिल कर दी जाएगी।

बांबे हाईकोर्ट दाभोलकर और सीपीआई नेता गोविंद पानसरे की हत्या से जुड़ी जांच की निगरानी कर रहा है। दाभोलकर की 20 अगस्त 2013 को पुणे में हत्या कर दी गई थी। जबकि पानसरे को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 16 फरवरी 2015 को गोली मार दी गई थी। वारदात के चार दिन बाद उनकी इलाज के दौरान मौत हो गई थी। कन्नड़ लेखक कलबुर्गी को 30 अगस्त 2015 को गोली मारी गई थी। जांच एजेंसियों ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इन तीनों मामलों के साथ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के तार दक्षिण पंथी चरमपंथियों से जुड़े हुए हैं। लंकेश की हत्या 2017 में हुई थी।

फरवरी 2020 में भी बॉम्बे हाईकोर्ट ने अंधश्रद्धा निर्मूलन संस्था के संस्थापक डॉ. नरेंद्र दाभोलकर और कामरेड गोविंद पानसरे की हत्या की जांच के मामले में गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) की जांच को लेकर नाराजगी जताई थी। अदालत ने तब कहा था कि इन दोनों प्रकरण को क्रमशः सात और पांच साल हो गए हैं लेकिन इन पर मुकदमे की शुरुआत नहीं हुई? कब तक ऐसा ही चलता रहेगा? आखिर कब इस मामले की शुरुआत होगी? अदालत ने सीबीआई और एसआईटी दोनों की जांच पर असंतोष जताते हुए कहा था कि वे 24 मार्च 2020 तक यह स्पष्ट करें कि इस प्रकरण में मुकदमा कब शुरू होगा। न्यायमूर्ति सत्यरंजन धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति रियाज छागला ने कहा था कि आप लोग इन हत्याकांडों में प्रयुक्त हुए हथियार ही अब तक ढूंढ रहे हैं। कम से कम यह तो बता दें कि यह मामला आगे कैसे बढ़ेगा?

अदालत ने इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस को फटकार लगाते हुए कहा था कि राजनीतिक दलों और उनके प्रमुखों को परिपक्वता दिखानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे की हत्याओं की जांच में कोई बाधा पैदा नहीं हो।

अंधश्रद्धा के ख़िलाफ़ अलख जगाने वाले महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक नरेन्द्र दाभोलकर की पुणे में 20 अगस्त 2013 को उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी जब वे सुबह की सैर के लिए निकले थे। वहीं, सीपीआई नेता और तर्कवादी पानसरे की 16 फरवरी 2015 को पश्चिमी महाराष्ट्र में कोल्हापुर स्थित उनके आवास के पास गोली मार कर हत्या की गयी थी। 30 अगस्त, 2015 को एमएम कलबुर्गी की हत्या कर्नाटक के धारवाड़ में और 5 सितंबर 2017 को मशहूर पत्रकार और लेखिका गौरी लंकेश की हत्या बेंगलुरु स्थित उनके आवास पर की गयी थी। महाराष्ट्र में डॉक्टर दाभोलकर की हत्या की जांच हाईकोर्ट की निगरानी में चल रही है।

राज्य पुलिस और सीआईडी द्वारा जाँच में लेटलतीफी पाए जाने पर उच्च न्यायालय ने मई 2014 में जाँच सीबीआई को सौंप दी। लेकिन अभी भी कुछ ठोस निकलकर नहीं आने से अदालत ने कड़ा रुख अख्तियार किया है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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