कांग्रेस में जाने की भनक लगते ही भाजपा ने कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत को कैबिनेट और पार्टी से निष्कासित कर दिया है। गौरतलब है कि हाल ही में उत्तर प्रदेश में तीन कैबिनेट मंत्री और दर्जन भर भाजपा विधायकों के समाजवादी पार्टी में चले जाने से भाजपा उत्तर प्रदेश में बैकफुट पर है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कल अपनी सरकार के कद्दावर कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत को मंत्रीमंडल से बर्खास्त कर दिया। इसके साथ ही पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के कारण बीजेपी ने भी हरक सिंह रावत 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया है।
भाजपा छोड़ने और निष्कासित होने की ख़बरों के बीच हरक सिंह रावत ने कहा है – “अब मैं निःस्वार्थ होकर कांग्रेस को जिताने का काम करूंगा। हम पिछले पांच साल के नौजवान को रोज़गार नहीं दे पाए, उत्तराखंड क्या नेताओं को रोज़गार देने के लिए बनाया है। मैं अमित शाह से मिलना चाहता था। वो कह रहे हैं मैं दो टिकट मांग रहा हूं, पहले क्या इस तरह से टिकट नहीं दिए गए। मुझे मंत्री पद का कोई लालच नहीं है। आज मेरे माध्यम से उत्तराखंड का भला होने जा रहे है। अपनी गलती को छुपाने के लिए ये किया गया है। मैं इन सब को जानता हूं।
गौरतलब है कि 2016 में कांग्रेस को छोड़ ही उन्होंने बीजेपी का दामन थामा था। लेकिन बीजेपी में शामिल होने के बाद भी कई मौकों पर उनकी नेतृत्व से तकरार देखने को मिली।
हरक सिंह रावत ने कहा कि – “केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने मुझे दिल्ली में मिलने के लिए बुलाया, ट्रैफिक के चलते थोड़ी देर हो गई। मैं उनसे और गृह मंत्री अमित शाह से मिलना चाहता था, लेकिन जैसे ही मैं दिल्ली पहुंचा, मैंने सोशल मीडिया पर देखा कि उन्होंने (भाजपा ने) मुझे निष्कासित कर दिया”।
हरक सिंह रावत ने आगे कहा कि – “इतना बड़ा फैसला लेने से पहले उन्होंने (भाजपा) मुझसे एक बार भी बात नहीं की। अगर मैं कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल नहीं होता तो 4 साल पहले बीजेपी से इस्तीफा दे देता। मुझे मंत्री बनने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है, मैं सिर्फ़ काम करना चाहता था”।
पत्रकार और समाजिक कार्यकर्ता मुनीष कुमार उत्तराखंड की राजनीति पर टिप्पणी करते हुये कहते हैं-” सरकार किसी भी पार्टी की बने, चेहरे वही रहते हैं। चेहरे नहीं बदलते। पिछली बार कांग्रेस छोड़कर दर्जनों नेता भाजपा में आये थे। अब पिछले कई महीनों से नेता बारी-बारी से भाजपा छोड़कर कांग्रेस में जा रहे हैं। एक ही चेहरे उत्तराखंड की राजनीति में दो दशक से काबिज हैं। चुनाव दर चुनाव सत्ता में पार्टियां बदलती हैं चेहरे वही रहते हैं। यही कारण है कि उत्तराखंड में कोई बदलाव नहीं होता”।
(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)
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