किसान आंदोलन को समर्थन देना हुआ गुनाह, मोदी सरकार ने रद्द की दो डाक यूनियनों की मान्यता

Estimated read time 1 min read

नई दिल्ली। मोदी सरकार ने अखिल भारतीय डाक कर्मचारी संघ (एआईपीईयू AIPEU) और डाक कर्मचारियों के राष्ट्रीय महासंघ (एनएफपीई NFPE) को किसान आंदोलन में शामिल होने, सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू CITU) में योगदान देने और दिल्ली में सीपीआई (एम) कार्यालय से किताबें खरीदने के ‘आरोप’ में मान्यता रद्द कर दी है।

सूचना के मुताबिक अखिल भारतीय डाक कर्मचारी संघ और डाक कर्मचारियों के राष्ट्रीय महासंघ की मान्यता समाप्त करने का आदेश आरएसएस के भारतीय मजदूर संघ से संबद्ध भारतीय डाक कर्मचारी संघ की शिकायतों के आधार पर लिया गया है।

1920 में कोलकाता में गठित एआईपीईयू (AIPEU) भारत की सबसे पुरानी यूनियनों में से एक है। और एनएफपीई (NFPE) आठ डाक कर्मचारी यूनियनों के साथ डाक क्षेत्र का सबसे बड़ा कर्मचारी संघ है, एआईपीईयू (AIPEU) भी इससे संबद्ध है। केंद्रीय संचार मंत्रालय ने आरएसएस से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ (BMS) से जुड़े भारतीय डाक कर्मचारी संघ (BPEA) की शिकायतों पर विचार करने और केंद्रीय सिविल सेवा (सेवा एसोसिएशन की मान्यता) नियम, 1993 की शर्तों का उल्लंघन करने के आधार पर दोनों संगठनों की मान्यता रद्द कर दिया है।

एनएफपीई के सहायक महासचिव पी.के. मुरलीधरन ने कहा कि इस फैसले को संगठन की तरफ चुनौती दी जाएगी। उन्होंने कहा कि 2014 में हुए एक जनमत संग्रह में एनएफपीई को कर्मचारियों से 75 प्रतिशत वोट मिले थे। “हमारे संगठन को हर वैचारिक धारा के कर्मचारियों का समर्थन प्राप्त है। इस संगठन का ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन करने का इतिहास रहा है। अब, मान्यता रद्द करने का यह प्रयास इस क्षेत्र में सभी ट्रेड यूनियन गतिविधियों को समाप्त करना है।”

मुरलीधरन ने कहा कि 2014 में, बीएमएस समर्थित यूनियन को 5 प्रतिशत से कम कर्मचारियों का समर्थन प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा, “अब 2024 में एक जनमत संग्रह होना है। हमारे पास डाक विभाग के 4.5 लाख कर्मचारियों में से लगभग तीन लाख कर्मचारियों का समर्थन है।” हाल ही में एनएफपीई ने डाक सेवाओं के निजीकरण के खिलाफ और पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की मांग को लेकर एक दिवसीय हड़ताल का आयोजन किया था।

मान्यता रद्द करने के आदेश पर डाक विभाग के सहायक महानिदेशक नाहर सिंह मीणा के हस्ताक्षर हैं, आदेश में कहा गया है कि NFPE और AIPEA ने किसान आंदोलन का समर्थन और “एक राजनीतिक दल को फंडिंग” किया था। आदेश में यह भी कहा गया है कि एनएफपीई के 24.08.2022 के पत्र में कर्मचारियों ने इसे स्पष्ट रूप से स्वीकार किया था कि “केंद्र सरकार के परिसंघ के माध्यम से किसानों के आंदोलन को धन दिया गया था।”

इसमें कहा गया है कि एआईपीईयू खाते से ऑनलाइन हस्तांतरण और चेक भुगतान के माध्यम से सीपीआई (एम), सीटू और किसान आंदोलन को भुगतान किया गया था। किसानों के आंदोलन में मदद के लिए 30,000 रुपये, सीपीएम को 4,935 रुपये और सीटू को 50,000 रुपये दिए गए। आदेश में कहा गया, “राजनीतिक चंदा देने का कृत्य सीसीएस (आरएसए) नियम, 1993 के नियम 5(बी), नियम 5(एच) और नियम 6(सी) का उल्लंघन है।”

एनएफपीई ने अपने जवाब में कहा कि किसानों के आंदोलन को सहायता करने के लिए कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लॉइज एंड वर्कर्स को दान दिया गया था और एनएफपीई प्रत्येक वर्ष फंड में योगदान देता है। सीपीआई (एम) को दान देने पर, उत्तर था कि यह सीपीआई (एम) मुख्यालय से खरीदी गई कुछ पुस्तकों की कीमत थी, जिसकी एक किताबों की दुकान है। हालांकि, आदेश में कहा गया है: “एसोसिएशन ने इस संबंध में कोई सबूत नहीं दिया है…एसोसिएशन के खाते से व्यक्तिगत लेनदेन कैसे किया जा सकता है।”

इस फैसले का स्वागत करते हुए भारतीय डाक कर्मचारी संघ (बीपीईए) ने महानिदेशक, डाक सेवा को लिखे पत्र में कहा है कि एनएफपीई और एआईपीईयू दोनों को दी जाने वाली प्रत्येक सुविधा को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। बीपीईए ने कहा कि प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि “ये दो यूनियन/एसोसिएशन सदस्यता सत्यापन की प्रक्रिया में भाग नहीं लेते हैं।” प्रशासन को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि इन निकायों की ओर से आधिकारिक तौर पर कोई औपचारिक सदस्यता नहीं दी जायेगी और इन निकायों के साथ या उनकी ओर से “कोई औपचारिक / अनौपचारिक बैठक की पेशकश नहीं किया जाता है”, बीपीईए नेता अनंत कुमार पाल ने डाक विभाग को लिखे पत्र में जोड़ा और पूछा एनएफपीई और एआईपीईयू दोनों की सभी गतिविधियों को रोका जाए।

बीपीईए ने पत्र में लिखा, हम पहले ही कई मौकों पर सूचित कर चुके हैं कि ये दो निकाय और कुछ अन्य संघ “अपनी काली छाया के नीचे” वर्षों से कई लाभ या विशेषाधिकार प्राप्त कर रहे हैं। बीपीईए के पत्र में कहा गया है कि लेकिन इन काली सूची में डाले गए निकायों को मिलने वाले अनुचित लाभ को अब रोका जाना चाहिए और डाक सदस्यों को आजादी की ताजी हवा में सांस लेने की अनुमति दी जानी चाहिए।

+ There are no comments

Add yours

प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

You May Also Like

More From Author