सिख कैदियों की रिहाई को लेकर बीते एक माह से लगे मोर्चे से वाबस्ता आंदोलनकारियों से चंडीगढ़-पंजाब सीमा पर चंडीगढ़ पुलिस से हुई हिंसक झड़प एक गंभीर मामला है। पहले तो अपने आप में यह पूरा मामला ही बेहद संवेदनशील है और दूसरे इसमें हिंसा की दस्तक; केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और पंजाब की भगवंत मान सरकार से गहन विमर्श की दरकार रखती है।
सिख आंदोलनकारियों की हिंसक झड़प चंडीगढ़ पुलिस के साथ हुई। चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश है और राज्यपाल मुख्य प्रशासक हैं। प्रदर्शनकारी दरअसल पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की कोठी का घेराव करना चाहते थे।
मोहाली सीमा के अंतिम छोर पर पंजाब पुलिस तैनात थी और चंडीगढ़ शुरू होते ही यूटी पुलिस। कौमी इंसाफ मोर्चा के आंदोलनकारियों ने जैसे ही मोहाली पार करके चंडीगढ़ में प्रवेश करना चाहा तो पुलिस ने उन्हें रोक लिया। चंडीगढ़ पुलिस के एसपी और डीएसपी आंदोलनकारियों से बातचीत कर रहे थे कि अचानक ‘बाहर’ से पुलिस पर हमला हो गया।
मुकाबले के लिए चंडीगढ़ पुलिस ने जैसे ही पोजीशन ली वैसे ही वहां कुछ घुड़सवार नमूदार हो गए और पुलिसकर्मियों पर घोड़े चढ़ाने लगे। इनके साथ डेढ़ सौ के करीब अन्य हमलावर भी थे जो तलवारों, गंडासों और लाठियों से लैस थे। पुलिसकर्मी वहां से न हटते तो घुड़सवारों की मंशा उन्हें रौंदने की थी।
वहां मौजूद एक पुलिसकर्मी ने बताया कि अचानक हुए पथराव और घुड़सवारों के तलवारों-गंडासों से हुए हमले से घबराई फोर्स मौके से भागने लगी लेकिन उन्हें पकड़-पकड़ कर पीटा तथा लहूलुहान किया गया। उग्र हिंसक आंदोलनकारियों के आकस्मिक हमले में डीएसपी चरणजीत सहित 60 से ज्यादा पुलिसकर्मी गंभीर रूप से जख्मी हुए हैं।
यह फसाद इसके बावजूद हुआ कि मौके पर आरएएफ के 70 और चंडीगढ़ पुलिस के 150 जवान तैनात थे। आंदोलनकारियों ने पुलिस की गाड़ियां तोड़ दीं। आरएएफ की बसों को भी नुकसान पहुंचाया गया। लब्बोलुआब यह कि हाल के सालों में पहली बार उग्र प्रदर्शनकारियों ने यूटी पुलिस को इस मानिंद मारपीट करके खदेड़ा।

वहां मौजूद एक पुलिसकर्मी ने बताया कि अचानक हुए पथराव और घुड़सवारों के तलवारों-गंडासों से हुए हमले से घबराई फोर्स मौके से भागने लगी लेकिन उन्हें पकड़-पकड़ कर पीटा तथा लहूलुहान किया गया। उग्र हिंसक आंदोलनकारियों के आकस्मिक हमले में डीएसपी चरणजीत सहित 60 से ज्यादा पुलिसकर्मी गंभीर रूप से जख्मी हुए हैं।
विभिन्न सिख संगठनों का कहना है कि चंडीगढ़-मोहाली सीमा पर जो कुछ हुआ उसके लिए पुलिस जिम्मेदार है। संगत सड़क पर बैठकर शांति से पाठ कर रही थी कि पुलिस की तरफ से पथराव किया गया। एडवोकेट अमर सिंह चहल का कहना है, “हम एक महीने से शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे हैं। पहली बार हिंसा हुई है और इसमें कोई बड़ी साजिश है।”
लोक अधिकार लहर के बलविंदर सिंह कहते हैं कि “बंदी सिखों की रिहाई के मसले और अन्य मामलों को लेकर कौमी इंसाफ मोर्चा संघर्ष कर रहा है। न यह राज्य सरकार को मंजूर है और न केंद्र सरकार को। दोनों सरकारें इसे बदनाम करने की साजिश में संलिप्त हैं।”
बुधवार को हुई हिंसा के बाद केंद्र के अधीन आती चंडीगढ़ पुलिस और पंजाब पुलिस के बीच तनातनी शुरू हो गई है। घटना के बाद मौके पर पहुंचे यूटी पुलिस के महानिदेशक प्रवीर रंजन ने कहा कि पंजाब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को नहीं रोका, इसलिए वे यहां तक पहुंच पाए। पुलिस पर हमले की खुफिया जानकारी को पंजाब पुलिस से शेयर किया गया था।
उन्होंने कहा कि हमलावरों ने जब चंडीगढ़ पुलिसकर्मियों पर कातिलाना हमला किया तो उस वक्त यूटी पुलिस के अधिकारी, आंदोलनकारियों के मुखिया से बात कर रहे थे। शहर में धारा 144 लगी हुई है और इस बाबत प्रदर्शनकारियों को बताया जा रहा था कि वे आगे नहीं जा सकते।
जबकि पंजाब पुलिस के डीआईजी गुरप्रीत भुल्लर का कहना है कि आंदोलनकारियों को पंजाब पुलिस ने मोहाली में रोका था। चंडीगढ़ की ओर बढ़ने समेत मोर्चे की हर गतिविधि की बाबत चंडीगढ़ पुलिस को समय-समय पर जानकारी दी जाती रही। इसमें कोई सुरक्षा चूक हमारी ओर से नहीं की गई।

भुल्लर कहते हैं, “ऐसे मोर्चों में भीड़ कभी-कभार हो जाती है। मौके पर पंजाब पुलिस के भी 200 मुलाजिम तैनात थे, 11 जख्मी हुए हैं।” चंडीगढ़ पुलिस के अधिकारी का कहना है कि पहले माहौल एकदम शांतिपूर्वक था। पुलिस पर हमला एकाएक किया गया। हमलावर पेशेवर लग रहे थे। वे फोर्स के आंसूगैस गन, एक मुलाजिम की पिस्टल, कुछ की जैकेट और कुछ के झंडे छीन ले गए।
चंडीगढ़ पुलिस ने आईपीसी की धारा 307 (हत्या की कोशिश), 394 (डकैती डालना), 397 (लूटपाट करते वक्त किसी की जान की परवाह न करना) और 147, 148 व 149 के तहत अज्ञात हमलावरों पर केस दर्ज किया है। गुरुवार को इसकी कॉपी पंजाब पुलिस को सौंपी गई कि वह हमलावरों की शिनाख्त करके पकड़वाने में सहयोग करे। ताजा हालात के मद्देनजर यह संभव तो नहीं लगता।
गौरतलब है कि कौमी इंसाफ मोर्चा बंदी सिखों की रिहाई के साथ-साथ, बहिबल कलां गोलीकांड और श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी करने वालों की गिरफ्तारी की मांग भी कर रहा है। इसके लिए ‘पक्का मोर्चा’ मोहाली में लगाया गया है।
मोर्चे से जुड़े एक वरिष्ठ नेता ने नाम न देने की शर्त पर बताया कि समझ से परे है कि हमलावर घुड़सवार आंदोलनकारियों के साथ पहले नहीं थे, बाद में आए और फिर न जाने कहां चले गए। पक्का मोर्चा स्थल पर कोई नहीं देखा गया।
दरअसल, पंजाब की बाबत केंद्र और राज्य सरकारों की नीति यह रही है कि पहले हालात को जटिल होने दिया जाए, जब जटिल हो जाएं तब उनके ‘समाधान’ की बात की जाए लेकिन समाधान किया न जाए। पंजाब में यही कुछ हो रहा है।

बंदी सिखों की रिहाई केंद्र और पंजाब सरकार का साझा मसला है यानी दोनों को मिलकर इसे हल करना है लेकिन अति संवेदनशील बन चुके और अब अतिवाद की ओर बढ़ रहे इस मसले पर दोनों सरकारें खामोश हैं।
‘बयानवीर’ मुख्यमंत्री भगवंत मान और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह एक शब्द भी इस पर नहीं बोलते। जबकि इसे लेकर पंजाब के हालात किस कदर बिगड़ सकते हैं, इसकी एक बानगी चंडीगढ़-मोहाली सीमा पर हुई झड़प है।
पंजाब में अमृतपाल सिंह खालसा दूसरा भिंडरांवला बनकर अपने हथियारबंद साथियों के साथ दनदनाता फिर रहा है। उसकी ‘हेट स्पीच’ पर कोई कानून आयाद नहीं होता!
यह ‘रहस्य’ ही है कि वह किसके बूते पर (न्यूनतम ही सही) समानांतर सत्ता चला रहा है? नरेंद्र मोदी सरकार के प्रतिनिधि राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित जब विभिन्न जिलों का दौरा करते हैं तो कहा जाता है कि ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है कि पंजाब एक सरहदी सूबा है और गवर्नर को राजभवन में ‘निष्क्रिय’ नहीं बैठना चाहिए। खुद जाकर जमीनी हकीकत से वाकिफ होना चाहिए।
राज्यपाल से अदावत रखने वाले आम आदमी पार्टी सरकार के मुखिया भगवंत मान कहते हैं कि पंजाब के रेशे-रेशे की जानकारी वह प्रतिदिन लेते हैं। फिर उन्हें क्यों दिखाई नहीं देता कि पंजाब में किस कदर हिंसक रुख वाला कट्टरपंथ फल-फूल रहा है? सूबे की कानून व्यवस्था का जनाजा तब उन-उन जिलों में जरूर निकलता है जहां मुख्यमंत्री या राज्यपाल आधिकारिक दौरा करते हैं।

कुछ दिन के ठहराव अथवा स्थगन के बाद पंजाब की अफसरशाही फिर बेलगाम हो गई है और पुलिस तो खैर पहले से ही किसी के काबू में नहीं है। अपराधियों के साथ पुलिस अधिकारियों का गठजोड़ पर्दे के पीछे यथावत कायम है। नशातंत्र पर काबू पाने के झूठे दावे चंडीगढ़ में किए जाते हैं और गांवों तक नशे का जहर सरेआम बिकता है। एक दिन भी ऐसा नहीं जाता; जब नशे की ओवरडोज के चलते कोई न कोई घर न उजाड़ता हो।
सरकार चाहती और कहती है कि तस्कर और गैंगस्टर मुख्यधारा में शामिल हो जाएं और कट्टरपंथी सरेआम कह रहे हैं कि वे अपने ‘काले धंधे’ छोड़कर उनके साथ आ मिलें। किसलिए? अमन और सद्भाव बिगाड़ने के लिए! समकालीन पंजाब का यह भी एक सच है, सरकारों के अलावा यह सब को दिख रहा है।
(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक की रिपोर्ट)
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