भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान भगवान से भी ऊपर माना जाता है। परंपरागत रूप से सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग भी शिक्षकों को सम्मान देते थे। हालांकि, दिल्ली और लखनऊ में भाजपा-आरएसएस की सरकार बनने के बाद यह स्थिति बदलती दिख रही है। संघ-भाजपा सरकार बड़े जोर-शोर से नई शिक्षा नीति का प्रचार तो करती है। लेकिन मोदी- योगी सरकार के तहत लगातार शिक्षकों और प्राध्यापकों के साथ अपमानजनक व्यवहार के आरोप सामने आते रहे हैं। हाल ही में, उत्तर प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों और संबद्ध महाविद्यालयों के शिक्षकों ने ग्रेच्युटी संबंधी अनियमितताओं के समाधान के लिए लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान कथित तौर पर शिक्षकों के साथ अभद्र व्यवहार हुआ।
शिक्षकों का प्रतिनिधिमंडल और मुलाकात
गौरतलब है कि दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय रिटायर्ड टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रोफेसर एस.एन. चतुर्वेदी के नेतृत्व में शिक्षकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर अपनी समस्य़ाओं से उन्हें अवगत कराने के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय को छह प्राध्यापकों का नाम भेजा था: प्रो. एस.एन. चतुर्वेदी, प्रो. अनिरुद्ध प्रसाद, प्रो. अशोक श्रीवास्तव, प्रो. एस.एस. दास, प्रो. धीरेंद्र कुमार सिंह और प्रो. चित्तरंजन मिश्र। कार्यालय ने सभी नामों को स्वीकृति दी थी और मुलाकात का समय निर्धारित किया था। लेकिन निर्धारित समय पर प्रो. धीरेंद्र कुमार सिंह को मुख्यमंत्री से मिलने से रोक दिया गया। और शेष पांच शिक्षकों के साथ मुख्यमंत्री ने कथित तौर पर अभद्र और अपमानजनक व्यवहार किया।
शिक्षक प्रतिनिधिमंडल से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि “आप लोग जीवन भर पढ़ाने-लिखाने के बजाय नेतागिरी करते रहे और अब ग्रेच्युटी लेने चले आए। उन्होंने कहा कि अदालत का फैसला मानना जरूरी नहीं।”
प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य, प्रो. चित्तरंजन मिश्र ने कहा “मुख्यमंत्री जी की बातचीत न केवल निराशाजनक थी बल्कि उनके पद की गरिमा के भी प्रतिकूल थी। उनकी भाषा आक्रामक और आपत्तिजनक थी।” शिक्षकों ने बताया कि मुख्यमंत्री ने कुछ ऐसी बातें कहीं जो उनके पद की मर्यादा के अनुरूप नहीं थीं। उदाहरण के लिए:
- “कुछ सिरफिरे और पागल न्यायाधीशों के फैसलों को मानना जरूरी नहीं।”
- “कानूनी लड़ाई में पचास साल लग जाएंगे, तब तक आप लोग जीवित भी नहीं रहेंगे।”
- “आप लोग जीवन भर पढ़ाने-लिखाने के बजाय नेतागिरी करते रहे और अब ग्रेच्युटी लेने चले आए।”
प्रतिनिधिमंडल ने सम्मान और मर्यादा बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन उनकी बातों का कोई प्रभाव नहीं हुआ। अंत में, मुख्यमंत्री ने कहा, “ज्ञापन रख दीजिए, देखेंगे।” प्रो. एस.एन. चतुर्वेदी ने आभार व्यक्त कर विदा ली, लेकिन शिक्षकों को निराशा और तकलीफ हुई।
शिक्षकों की समस्याओं के समाधान के बजाए पेंशन की छानबीन के लिए जारी किया आदेश
मुख्यमंत्री ने एक आदेश जारी किया है, जिसमें तीन माह तक अपने बैंक खाते से पेंशन न निकालने वाले पेंशनधारियों की सूची उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है। शिक्षकों का मानना है कि यह आदेश उन पर दबाव बनाने का प्रयास है।

शिक्षक प्रतिनिधिमंडल ने निम्नलिखित मांगें रखीं:
- ग्रेच्युटी का भुगतान:
- उत्तर प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों और संबद्ध महाविद्यालयों के शिक्षक लंबे समय से 62 वर्ष की आयु पर ग्रेच्युटी की मांग कर रहे हैं।
- 2014 में कुछ शिक्षकों ने न्यायालय का रुख किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने सिविल रिट संख्या 23788/2014 में 30 अप्रैल 2024 को आदेश दिया कि सभी वादियों को 6% वार्षिक ब्याज के साथ ग्रेच्युटी का भुगतान किया जाए। सरकार की पुनर्विचार याचिका को 8 अप्रैल 2025 को खारिज कर दिया गया।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1 अक्टूबर 2024 को रिट संख्या 5724/24 में सभी शिक्षकों को ग्रेच्युटी देने और सरकार की आपत्तियों को खारिज करने का आदेश दिया।
- शिक्षकों ने सरकार से इन आदेशों का पालन कर सभी पात्र शिक्षकों को ग्रेच्युटी देने की मांग की है।
- पेंशन में काल्पनिक वेतनवृद्धि:
- माध्यमिक शिक्षा के शिक्षकों, जो 30 जून या 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त होते हैं और जिन्हें एक वर्ष पहले वेतनवृद्धि मिली थी, उनकी पेंशन में काल्पनिक वेतनवृद्धि जोड़ी जाती है। शिक्षकों ने उच्च शिक्षा में भी यह व्यवस्था लागू करने की मांग की है।
- पेंशन कम्यूटेशन का सामान्य आदेश:
- वर्तमान में, पेंशन का 20% हिस्सा कम्यूट किया जाता है, जिसे 15 वर्ष बाद पुनः जोड़ा जाता है। उच्च न्यायालय के आदेश के बाद यह अवधि 10 वर्ष 8 माह कर दी गई है। लेकिन शिक्षकों को इसके लिए व्यक्तिगत रूप से न्यायालय से आदेश लेना पड़ता है, जिससे धन और समय की बर्बादी होती है।
- शिक्षकों ने एक सामान्य शासनादेश जारी करने की मांग की है ताकि यह प्रक्रिया सरल हो और अनावश्यक खर्च बचे।
शिक्षकों का सम्मान और वैश्विक परिदृश्य
शिक्षकों का सम्मान किसी देश की शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक मूल्यों का महत्वपूर्ण संकेतक है। एक रिपोर्ट के अनुसार, लक्जमबर्ग में शिक्षकों को सबसे अधिक वेतन मिलता है, जबकि इटली, फ्रांस, जर्मनी और चीन में शिक्षकों को विशेष सम्मान दिया जाता है। लेकिन उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री द्वारा कथित तौर पर शिक्षकों को अपमानित करने वाले बयान, जैसे “आप लोग जिंदगी भर कुछ पढ़ाए-लिखाए नहीं, अब वेतन बढ़वाने आए,” शिक्षकों के मनोबल को प्रभावित कर सकते हैं।
शिक्षकों ने अपनी मांगों को न्यायालय के आदेशों के आधार पर रखा है, जो उनकी वैधानिकता को दर्शाता है। सरकार से अपेक्षा है कि वह इन मांगों का यथाशीघ्र समाधान करे और शिक्षकों के साथ सम्मानजनक व्यवहार सुनिश्चित करे। यह न केवल शिक्षकों के हित में होगा, बल्कि उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को भी मजबूत करेगा।
(प्रदीप सिंह की रिपोर्ट)