बेंगलुरु में 26 विपक्षी दलों की बैठक में सामूहिक रूप से कुछ संकल्प लिए गये हैं, जिसमें भविष्य की राह क्या होगी के सूत्र मिलते हैं। अपने पहले वाक्य में ही INDIA गठबंधन ने संविधान की मूल भावना के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए, मौजूदा एनडीए शासन की नीतियों से अपना स्पष्ट किनारा कर लिया है।
आइडिया ऑफ इंडिया की रक्षा का संकल्प
संविधान में निहित आइडिया ऑफ़ इंडिया की रक्षा के लिए गठबंधन अपने दृढ संकल्प को दुहराता है। स्पष्ट है कि जिस बात को कांग्रेस के नेता राहुल गांधी आइडिया ऑफ़ इंडिया बनाम भाजपा, आरएसएस और मोदी के विचार की लड़ाई कहते हैं, उसे सबसे प्रमुखता से संकल्प पत्र में उधृत किया गया है। इसमें कहा गया है कि भारतीय गणतंत्र के मूल चरित्र पर भाजपा द्वारा सुनियोजित तरीके से हमले जारी हैं। इसे राष्ट्र के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में ये दल देख रहे हैं।
संविधान की मूल भावना को बचाने का संकल्प
इसके साथ ही संकल्प पत्र में स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है कि संविधान के मूल स्तंभों, जैसे कि धर्मनिरपेक्ष स्वरुप, लोकतंत्र, आर्थिक संप्रभुता, सामाजिक न्याय एवं संघवाद को बेहद सुनियोजित और खतरनाक रूप से कमजोर किया जा रहा है। यदि सभी राजनीतिक दल सामूहिक रूप से इस तथ्य को अंगीकार करते हैं, तो यह अपनेआप में अत्यंत महत्वपूर्ण प्रस्थान-बिंदु है।
मणिपुर के लोगों को हिंसा से बचाने का संकल्प
मणिपुर राज्य में 75 दिनों से जारी हिंसा और मानवीय त्रासदी पर INDIA के संकल्प पत्र में गंभीर चिंता व्यक्त की गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी को बेहद चौंकानेवाली घटना के रूप में चिंहित करते हुए इसे अभूतपूर्व बताया गया है। यह वास्तव में समूचे देश के लिए घोर आश्चर्य का विषय है कि अपने 9 वर्ष के कार्यकाल में उत्तर-पूर्व के राज्य पीएम मोदी के लिए पसंदीदा गन्तव्य-स्थल रहे हैं, लेकिन देश ही नहीं दुनियाभर में मणिपुर को लेकर सवाल उठाये जाने के बावजूद पीएम मोदी ने अभी तक एक शब्द नहीं बोला है।
संघीय ढांचे की रक्षा का संकल्प
पत्र में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई राज्य सरकारों को हासिल संवैधानिक अधिकारों पर जिस प्रकार से निरंतर हमले हो रहे हैं, पर गठबंधन इसका मुकाबला करने और सामना करने के प्रति अपनी दृढ-संकल्पता को दोहराता है। इंडिया का मानना है कि देश के संघीय ढांचे को सोच-समझकर कमजोर किया जा रहा है। गैर-भाजपा राज्यों में राज्यपालों एवं उप-राज्यपालों का अपनी संवैधानिक दायरे से बाहर जाकर कदम उठाने को रेखांकित किया गया है। पत्र में कहा गया है कि केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा विभिन्न जांच एजेंसियों के माध्यम से अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों के खिलाफ खुल्लम-खुल्ला दुरूपयोग किया जा रहा है। गठबंधन इसे लोकतंत्र को कमजोर करने के तौर पर देखता है। साथ में यह भी आरोप है कि विपक्षी राज्य सरकारों की वैध जरूरतों और अधिकारों को मोदी सरकार द्वारा स्पष्ट रूप से नकारा जा रहा है।
आम लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाने का संकल्प
आम लोगों के जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में जबर्दस्त बढ़ोत्तरी और रिकॉर्ड बेरोजगारी की समस्या को गंभीर आर्थिक संकट के तौर पर चिंहित करते हुए INDIA गठबंधन, इससे निपटने के लिए अपने कृत-संकल्प को दोहराता है। गठबंधन ने विमुद्रीकरण (नोटबंदी) को एमएसएमई (मध्यम, लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों) के लिए जिस प्रकार कि अकथनीय बर्बादी का सबब बताने के साथ इसे भारत में बड़े पैमाने पर बेरोजागारी का कारण बताया है।
सार्वजनिक-प्राकृतिक संसाधनों को कॉर्पोरेट के कब्जे से बचाने का संकल्प
गठबंधन ने अपने संकल्प पत्र में आरोप लगाया है कि वर्तमान सरकार ने अपने पसंदीदा कॉर्पोरेट मित्रों के लिए देश की संपत्ति (सार्वजनिक क्षेत्र एवं निगमों) की बिक्री की जा रही है, जिसका गठबंधन विरोध करता है। वैकल्पिक मॉडल के तौर पर पत्र में एक मजबूत एवं रणनीतिक सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ एक प्रतिस्पर्धी एवं फलता-फूलता निजी क्षेत्र के रूप में निष्पक्ष अर्थव्यस्था के निर्माण की संकल्पना की गई है। इसके साथ ही उद्यमिता की भावना को बढ़ाने और विस्तार करने के हर अवसर को मुहैया कराने की बात कही गई है। किसानों एवं खेत मजदूरों के बारे में पत्र में कहा गया है कि इनके कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
राज्य के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बचाने का संकल्प
अल्पसंख्यकों के खिलाफ पैदा की जा रही नफरत और हिंसा को रेखांकित करते हुए INDIA गठबंधन ने दावा किया है कि इस नफरत और हिंसा को परास्त करने के लिए हम सब एकजुट हुए हैं। 26 विपक्षी पार्टियों का एक स्वर में पारित यह प्रस्ताव एक महत्वपूर्ण विभाजन-रेखा खींचता है, जो स्पष्ट रूप से भाजपा-आरएसएस के हिन्दुत्ववादी विचारधारा के खिलाफ एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
महिलाओं, दलितों, आदिवासियों के साथ खड़े होने का संकल्प
पत्र में महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और कश्मीरी पंडितों के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए इस पर तत्काल रोक लगाये जाने की मांग की गई है।
जाति जनगणना के पक्ष में संकल्प
सभी सामाजिक, शैक्षिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों के लिए निष्पक्ष सुनवाई की मांग पर जोर देते हुए इस ओर पहले कदम के रूप में जाति जनगणना को लागू करने की मांग को पहली बार एक स्वर में 26 दलों ने सामूहिक रूप से आगे किया है। इंडिया गठबंधन के मांग कई राजनीतिक विश्लेषक एक महत्वपूर्ण राजनैतिक कदम बता रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि जैसे-जैसे यह मांग जोर पकड़ती जायेगी, सामाजिक न्याय की दुहाई देने वाले राजनैतिक दलों और समर्थक आधार के लिए भाजपा गठबंधन के पक्ष में खड़ा होना मुश्किल होता जायेगा। ऐसा नहीं हो सकता कि इसके बावजूद भाजपा सवर्ण और अति पिछड़ों एवं दलित मतदाताओं, दोनों की सवारी गाँठ सके। जैसा कि सर्वविदित है कि पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह द्वारा मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू किये जाने के बाद ही उसके विरोध में कमंडल की राजनीति के साथ भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा शुरू की थी। लेकिन दो दशक बाद आज मंडल और कमंडल दोनों ही भाजपा-आरएसएस की शरण में आ चुके हैं। जातिगत जनगणना की मांग अन्य पिछड़ा वर्ग को एकजुट करता है। यह आंदोलन तेज हुआ तो विपक्षी दलों के बजाय विभाजन इस बार भाजपा-आरएसएस को झेलना पड़ सकता है।
बहुलतावादी सौहार्द की संस्कृति को बचाने का संकल्प
एक बार फिर से पत्र में भाजपा के द्वारा सहयात्री आम भारतीयों को सुनियोजित तरीके से निशाने पर लेने, प्रताड़ित करने और कुचलने की साजिश से लड़ने का संकल्प लिया गया है। संकल्प पत्र में कहा गया है कि घृणा पर आधारित जहरीले अभियान का ही यह प्रतिफल है कि सत्तारूढ़ दल का विरोध करने वाले सभी लोगों के खिलाफ द्वेषपूर्ण हिंसा जन्म ले रही है। ये हमले न सिर्फ संवैधानिक अधिकारों एवं आजादी का उल्लंघन कर रहे हैं, बल्कि समानता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व पर आधारित राजनीतिक, आर्थिक और सामजिक न्याय के बुनियादी मूल्यों को भी नष्ट कर रहे हैं, जिनके आधार पर भारतीय गणराज्य की स्थापना की गई थी।
इतिहास की विकृत प्रस्तुति के खिलाफ संकल्प
संकल्प पत्र में भारतीय इतिहास के नए सिरे से निर्माण एवं पुनर्लेखन के प्रयास को भाजपा द्वारा सामाजिक विमर्श को दूषित करने की मंशा बताते हुए इसकी कड़ी भर्त्सना की गई है, और इसे सामाजिक सौहार्द को विद्रूप करने के रूप में रेखांकित किया गया है।
इंडिया गठबंधन ने संकल्प पत्र के समापन में अपने संकल्प को दुहराते हुए लिखा है, “हम राष्ट्र के समक्ष एक वैकल्पिक, राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक एजेंडा पेश करने का संकल्प लेते हैं। हम शासन के सार-तत्व एवं शैली दोनों में आमूलचूल परिवर्तन का वादा करते हैं, जिसमें ज्यादा सलाह-मशविरे, लोकतांत्रिक स्वरुप एवं सहभागिता को स्थान दिया जायेगा।
संक्षेप में प्रस्तुत संकल्प पत्र विपक्षी गठबंधन के सामाजिक आधार को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसमें देश के विभिन्न राज्यों में स्थापित राज्य सरकारों के केंद्र-राज्य संबंधों में बेहतर संतुलन एवं स्वायत्त तौर पर काम करने की स्वतंत्रता को स्थान दिया गया है। अल्पसंख्यकों, दलितों एवं आदिवासियों के हितों एवं संवैधानिक अधिकारों पर निरंतर हमलों पर चिंता और संविधान की आत्मा को जिंदा रखने के संकल्प को प्रमुखता से रखने पर भारतीय लोकतंत्र में आस्था रखने वाले बौद्धिक वर्ग सहित उत्तर-पूर्व, कश्मीर और लद्दाख जैसे सुदूरवर्ती क्षेत्रों के लोगों की आकांक्षाओं को स्थान देने की कोशिश की गई है। इसके साथ-साथ जातिगत जनगणना की मांग पर 26 पार्टियों का एक साथ आना, महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
हालांकि आर्थिक मोर्चे पर उदारवादी अर्थनीति का वैकल्पिक मॉडल विपक्षी दलों के पास क्या है, इस बारे में कोई ठोस नीति अभी भी इस संकल्प पत्र से उभर कर सामने नहीं आती है। देश के सामने ठोस जनपक्षीय आर्थिक नीति की जरूरत है, इसके बिना भले ही विपक्षी दल चंद कॉर्पोरेट घरानों की भाजपा के साथ नजदीकियों को निशाना बनाये, मगर नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन के बिना इंडिया गठबंधन भी यदि सत्ता में आने में सफल होता है तो उसके पास भी इन्हीं क्रोनी-कॉर्पोरेट की चाकरी के सिवाय कोई खास विकल्प नहीं रहने वाला है।
( रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)
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