पटना। भाकपा-माले विधायक सत्यदेव राम, एमएलसी शशि यादव, अरवल विधायक महानंद सिंह और फुलवारी विधायक गोपाल रविदास को लेकर गठित एक राज्यस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने आज बिहार के राज्यपाल महोदय से मुलाकात की।
राज्य के ज्वलंत सवालों को लेकर उन्हें एक ज्ञापन सौंपा और उसपर उचित कार्रवाई का अनुरोध किया। महामहिम राज्यपाल महोदय ने ज्ञापन के सभी दस बिन्दुओं पर गंभीरतापूर्वक विचार करने का आश्वासन दिया।
माले विधायक दल के उपनेता सत्यदेव राम ने बताया कि मुलाकात मूलतः बिहार में विगत एक महीने से जीविका दीदियों की जारी हड़ताल, राज्य में दलितों-गरीबों-महिलाओं पर बढ़ती हिंसा को रोक पाने में राज्य सरकार की असफलता, स्मार्ट मीटर की तबाही, कोसी के तटबंध कटाव के कारण बाढ़ की तबाही, गरीब-भूमिहीनों के लिए वास व पक्का मकान सहित बिहार को विशेष राज्य का दर्जा आदि मुद्दों को लेकर की गई।
माले विधायक दल ने महामहिम राज्यपाल महोदय को विस्तार से इन मसलों के बारे में बताया और कार्रवाई का अनुरोध किया।
भाकपा-माले विधायक दल का ज्ञापन
1. ‘एनआरएलएम नेशनल रूरल लिवलीहुड मिशन’ के तहत जीविका दीदियों ने बिहार में उल्लेखनीय काम करते हुए 10 लाख से ज्यादा ग्रुपों में डेढ़ करोड़ से ज्यादा महिलाओं को संगठित किया है, जो विगत एक महीने से बिहार सरकार के एक अव्यवहारिक फैसले से आक्रोशित और आंदोलनरत है।
प्रसंग यह है कि जीविका कार्यकर्ताओं को सरकार अपनी तरफ से 1500 रुपये मासिक मानदेय दिया करती थी। इसके अलावा उन्हें एक स्वयं सहयाता समूह से 150 रुपये प्राप्त होता था। एक जीविका कार्यकर्ता कम से कम 15 ग्रुपों का संचालन करती थीं।
लेकिन हाल ही में सरकार ने फैसला किया है कि जीविका कार्यकर्ताओं को सरकार से मिलने वाला मानदेय अब नहीं मिलेगा। उन्हें अब सारे संसाधन उनके द्वारा चलाए जा रहे ग्रुप से ही हासिल करना होगा। इसको लेकर जीविका कार्यकर्ताओं में भारी आक्रोश है।
हमारी मांग है कि जीविका कार्यकर्ताओं को जीविका मिशन का बेसिक कैडर घोषित किया जाय। मानदेय के कंट्रीब्यूटरी सिस्टम को समाप्त कर इन्हें 25000 रुपए मासिक मानदेय दिया जाए। जीविका मिशन के राज्य ढांचा का संचालन पारदर्शी तरीके से हो। 5 साल पुराने सभी ग्रुपों का लोन माफ किया जाय।
2. सरकार दावा करती है कि महिला सशक्तीकरण के लिए 1 करोड़ महिलाएं स्वयं सहायता समूहों में संगठित की गई हैं, लेकिन आज इन समूहों की महिलाएं खुद को छला हुआ महसूस कर रही हैं। इसलिए मांग है कि –
(क) स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा जमा की जाने वाली राशि से जीविका को मानदेय देना बंद हो (ख) स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के कोविड के दौर 2022 तक के सभी कर्ज माफ किये जाएं। (ग) समूह की सभी महिलाओं के स्थायी स्वरोजगार का प्रबंध किया जाए। (घ) माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के कर्ज के उत्पीड़क चंगुल से निकालने के लिए स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को दो लाख रुपए तक का सूद रहित कर्ज उपलब्ध करवाया जाए।
3. बिहार सरकार और आशा संयुक्त संघर्ष मोर्चा के बीच दिनांक 12.08.2023 हुए समझौते के अनुसार आशा एवं आशा फैसिलिटेटरों के लिए मानदेय बढ़ाकर 2500 रुपये प्रतिमाह करने पर सहमति बनी थी।
साथ ही पारितोषिक को बदल कर मानदेय करने का आश्वासन दिया गया था लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं करना बेहद चिंताजनक है। इस समझौते को तत्काल लागू किया जाए।
4. 10 लाख से ज्यादा स्कीम वर्कर्स-आशा, आंगनबाड़ी, विद्यालय रसोइया, जीविका दीदी, ग्रामीण नर्सेज, मनरेगा मजदूरों, सफाई मजदूरों आदि सहित सरकारी व प्राइवेट संस्थानों में कार्यरत सभी कर्मियों के लिए केंद्र सरकार द्वारा घोषित नई मजदूरी दर के मुताबिक बिहार सरकार नई मजदूरी दर घोषित करे।
1650 रुपये में विद्यालय रसोइयों से महीना भर काम लेने की गुलामी प्रथा समाप्त करते हुए इनके मानदेय को न्यूनतम मजदूरी आधारित तय किया जाए। अन्य राज्यों में आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका को मिलने वाली मानदेय का अध्ययन कर इनके मानदेय में गुणात्मक वृद्धि की जाए।
5. एक अध्ययन के अनुसार देश में दलितों पर आगजनी के 35 प्रतिशत मामले अकेले बिहार के हैं। नवादा की घटना इसका ताजा उदाहरण है जहां दलित गरीबों के 32 घरों को जला दिया गया।
बकरौर, बोधगया में महादलित बस्ती पर हमला किया गया। बहू-बेटियों पर बुरी नजर रखने वालों का विरोध करने पर इमामगंज, गया में राज कुमार मांझी की हत्या कर दी गई। अपनी मिट्टी की दीवार गिराए जाने का विरोध करने पर टिकारी, गया के संजय मांझी का सामंती अपराधियों ने तलवार से हाथ काट लिया।
खिजरसराय, गया में अपनी बकाया मजदूरी 100 रुपये मांगने पर ट्रैक्टर ड्राइवर सज्जन मांझी की हत्या कर दी गई। शेरघाटी में मांझी परिवार की नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार कर हत्या कर दी गई।
इमामगंज में मांझी परिवार और बोधगया में यादव जाति के अत्यंत गरीब परिवार की नाबालिग बेटियों के साथ बलात्कार किया गया। फतेहपुर, गया में भाजपा के अनुसूचित जाति राज्य प्रकोष्ठ के एक नेता का नाम बलात्कार में आया है।
गरीबों की लड़ाई लड़ने वाले माले नेता सुनील चंद्रवंशी की अरवल में हत्या कर दी गई। सिवान में भरत मांझी की मूंछ रखने पर हत्या कर दी गई, तो गया में एक बार फिर एक विधवा महादलित महिला की हत्या का मामला सामने आया है।
पिछले महज कुछ महीने के अंदर की इन घटनाओं की सूची लंबी है। अल्पसंख्यकों पर हमले बदस्तूर जारी हैं। कमजोर वर्ग पर हिंसा की लगातार बढ़ती घटनाएं बेहद चिंताजनक हैं।
ऐसा लगता है कि सामंती-अपराधी पूरी तरह बेलगाम हो चुके हैं और उन्हें कानून-व्यवस्था का कोई भय नहीं रह गया है। यदि तत्काल हस्तक्षेप नहीं किया गया तो और भी बेगुनाहों की जान जाएगी। अतः सामंती हिंसा-अपराध-बलात्कार के मामलों में तत्काल मजबूत कदम उठाने की जरूरत है।
6. सरकारी वादा के अनुसार तमाम गरीबों को 2 लाख रुपये, 5 डिसमिल आवास भूमि और पक्का मकान की गारंटी की जाए।
7. जबतक गरीबों के वास-आवास-जोत की भूमि और बटाईदारों के हक की गारंटी नहीं होती और सभी लोगों की जमीन के कागजात दुरुस्त नहीं हो जाते तब तक भूमि सर्वे पर रोक लगाई जाए।
8. स्मार्ट मीटर लगवाने की अनिवार्यता खत्म की जाए, बिजली की दर आधी की जाए और कृषि कार्य व गरीबा के लिए 200 यूनिट मुफ्त बिजली दी जाए।
9. बाढ़ पीड़ितों के लिए तत्काल राहत की व्यवस्था की जाए, किसानों को 50 हजार रुपये प्रति एकड़ फसल क्षति मुआवजा मिले, तमाम पीड़ितों को पर्याप्त बाढ़ क्षति मुआवजा दिया जाए, बाढ़ का स्थाई निदान किया जाए।
10. बिहार में आरक्षण वृद्धि को संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल किया जाए, पूरे देश में जातीय गणना कराने के साथ बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाए।
(प्रेस विज्ञप्ति)
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