हरियाणा में मिलता रहा है अपराध को राजनीतिक संरक्षण

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हरियाणा के सिरसा से विधायक गोपाल कांडा को अदालत ने गीतिका शर्मा और उनकी मां अनुराधा शर्मा की खुदकुशी के मामले में बरी कर दिया है। कानूनन अब उनका दामन पाक-साफ है। गोपाल कांडा ही नहीं बल्कि हरियाणा में सियासी रसूख वाले लोगों की कमी नहीं; जिनके दामन पहले दागदार हुए और फिर उजले।

उत्तर प्रदेश और बिहार में ‘बाहुबल’ शब्द का इस्तेमाल कब शुरू हुआ, मालूम नहीं लेकिन हरियाणा में दबंगई और गुंडई की सियासत का अपना पुराना इतिहास रहा है। सौ में से दस की औसत के साथ असरदार लोगों को सजा मिली। नाम न जाहिर करते हुए कुछ अहम मामलों का जिक्र करते हैं कि किस तरह से हरियाणा अपराध के मामले में दूसरे प्रदेशों से कम नहीं रहा।

यह प्रदेश 1966 में वजूद में आया। इससे पहले पंजाब का हिस्सा था। पंजाब के एक मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों की हत्या सरेराह कर दी गई थी। प्रताप सिंह कैरों की हत्या एक गहरी साजिश का हिस्सा थी। हत्यारे तो पुलिस के हाथ आ गए लेकिन यह राज दफन का दफन ही रहा कि साजिशकर्ता कौन थे?

तब एक ऐसे नेता का नाम सामने आया था जो पंजाब से अलग हुए प्रदेश हरियाणा का बेहद कद्दावर सियासतदान बना। छोटे से गांव से लेकर दिल्ली तक उसने राजनीति में बड़ी भूमिका निभाई। उसका कुनबा आज भी हरियाणा की राजनीति में सक्रिय है और कभी-कभार राजस्थान की राजनीति में भी दखल देता रहता है। पंजाब के एक बेहद रसूखदार सियासी घराने से उसके बेहद गहरे तालुकात हैं।

जिस नेता का नाम प्रताप सिंह कैरों हत्याकांड षड्यंत्र में सामने आया था; उसके बेटे और पोतों ने बाद में खूब गुल खिलाए। गोया कानून से खिलवाड़ उनकी फितरत थी। उक्त नेता का बेटा दिल्ली एयरपोर्ट पर घड़ियों की स्मगलिंग के मामले में पकड़ा गया था तो नेता ने दो-टूक कहा था कि वह उसका बेटा ही नहीं है! बाद में लोग इस बात को भूल गए और जिन कद्दावर नेता का जिक्र किया जा रहा है, उसी के इस बेटे और पोते ने एक उपचुनाव में हिंसा का नंगा तांडव करवाया था।

दोस्ती निभाने के लिए मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने पूरे प्रकरण में उनका बचाव किया था। यह शायद चंद्रशेखर की बहुत बड़ी भूलों में से एक मानी जाएगी। क्योंकि तब लोग बखूबी जानते थे खून से किसके हाथ सने हैं। लेकिन चंद्रशेखर ने निजी सेना की तर्ज पर संगठन बनाने वाले लोगों का लोकसभा में बचाव किया। हिंसा किस कदर हुई होगी, इसी से साफ है कि राजीव गांधी ने खुद मौके का दौरा किया था। प्रकरण को और ज्यादा राजनीतिक तूल न मिले, इसलिए मामला शांत होने के बाद किसी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अलबत्ता लोगों के दिलों में वह मंजर आज भी है।

हरियाणा के उन्हीं कद्दावर नेता का, जिनका विश्वनाथ प्रताप सिंह से लेकर चंद्रशेखर तक सब सम्मान करते थे, के एक पोते ने कथित तौर पर अपनी पत्नी को गोली मार दी थी। उन दिनों मीडिया शब्द इस्तेमाल नहीं होता था, ‘प्रेस’ कहा जाता था। सुरेंद्र प्रताप सिंह उर्फ एसपी सिंह उन दिनों ‘नवभारत टाइम्स’ के कार्यकारी संपादक थे। उन्होंने सिलसिलेवार इस घटनाक्रम पर कई रिपोर्ट प्रकाशित कीं। कद्दावर नेता की चुप्पी नहीं टूटी बल्कि जिस फार्म हाउस में यह कांड हुआ था, वहां पत्रकारों का आना प्रतिबंधित कर दिया गया।

‘इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया’ के तत्कालीन पत्रकार दिबांग से वहां बदतमीजी की गई। नौबत हाथापाई तक आई। यह मामला सदा के लिए बंद करने के लिए कथित तौर पर सीबीआई को सौंप दिया गया। सीबीआई ने पड़ताल की और कुछ नहीं मिला। क्लीन चिट देनी पड़ी। आज उस कांड का जिक्र खुलेआम कोई नहीं करता लेकिन उस बाबत जानने वाले अभी भी मिल जाएंगे।

इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया ने दिबांग की रिपोर्ट को आवरण कथा बनाया था और मुखपृष्ठ पर था ‘मर्डर, सुसाइड एक्सीडेंट?’ रिपोर्ट का सार हत्या की ओर इशारा करता था। मुख्यधारा की तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने उस बहुचर्चित प्रकरण को प्रमुखता से कवर किया था। उस कद्दावर नेता की प्रेस से खुली अदावत हो गई। सिरसा में पत्रकारों की गिरफ्तारियां तक हुईं। नवभारत टाइम्स के तत्कालीन संवाददाता वैद्य महावीर प्रसाद शर्मा को पुलिस ने थर्ड डिग्री टॉर्चर तक किया।

सिरसा जिले में ही एक गांव है। वहां आपसी दुश्मनी के चलते रिकॉर्ड पच्चीस से ज्यादा हत्या हो चुकी हैं। खून करने अथवा बहाने का सिलसिला अब भी खतरे के साए की मानिंद मंडराता रहता है। एक व्यक्ति, जिसे आप अब भी बाहुबली कह सकते हैं, कई साल तड़ीपार रहा और कांग्रेस के एक मुख्यमंत्री की विशेष कृपा से वापिस लौटा। बताते हैं कि (अब दिवंगत) मुख्यमंत्री ने सारा खेल सेट करने के लिए मोटी रकम ली। न केवल वह मुकदमों से बरी हुआ बल्कि धड़ल्ले से चुनाव भी लड़ा और जीता। वह भी राजनीति में सक्रिय है। बाहुबल को बढ़ावा देना उसका शगल है। अतीत में भी था और आज भी है।

हरियाणा के एक पूर्व मुख्यमंत्री जिस गांव के मूल बाशिंदे थे, वहां के एक बाहुबली ने भी खूब रंग दिखाए। 1975 के बर्बर आपातकाल के दौरान उसने पुलिस चौकी में एक व्यक्ति को सरेआम कत्ल कर दिया था और उसके खिलाफ पर्चा तक नहीं दर्ज हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री से उसकी अदावत थी। इमरजेंसी के बाद जब कद्दावर नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली तो उस व्यक्ति ने नेपाल में शरण ले ली और तभी वापस आया जब उसके गांव के कद्दावर नेता सत्ता में नहीं रहे।

तब का आलम सिरसा के बढ़े-बुजुर्ग सुनाते हैं और पार्टी की ओर से निजी सेना का गठन उसी के कहने पर हुआ था। वह निजी सेना हर लिहाज से बदनाम थी। जब पिता के हाथ से सत्ता चली गई तो खुद को दबंग मानने वाला कद्दावर नेता का बेटा, उस बाहुबली की हवेली के आगे से भी नहीं गुजरता था जिसने पुलिस चौकी में सरेआम एक शख्स की हत्या कर दी थी।

खौफ तब खात्मे को हासिल हुआ जब कद्दावर नेता का बेटा खुद मुख्यमंत्री बन गया। उसके दुश्मनों ने जिला और प्रांत तो क्या, देश ही छोड़ दिया। कद्दावर नेता के बेटे और पोते को भ्रष्टाचार के एक मामले में दस साल की सजा हुई और तिहाड़ से जब भी वे लोग पैरोल अथवा फरलो पर आते थे तो जनता के बीच यह जरूर कहते थे कि साजिशन उन पर भ्रष्टाचार का मामला बना कर जेल भेजा गया। जबकि वे तो यह सब लोकसेवा के लिए कर रहे थे।

अपराध दरअसल हरियाणा के लोकाचार का हिस्सा रहा है। कड़वी सच्चाई है लेकिन है। कांग्रेस के एक तकरीबन साठ साल के नेता ने लड़की खरीदी और उससे विवाह कर लिया। उक्त नेता पढ़े-लिखे हैं। मीडिया से चर्चा में उन्होंने कहा कि यह कोई अपराध नहीं। वह लड़की तो उनके घर में काम करती है, शादी का कोई सुबूत हो तो लाइए। प्रतिद्वंद्वियों ने सुबूत भी मुहैया करवा दिया लेकिन न कुछ होना था और न हुआ। नेताजी की जिंदगी सामान्य है बल्कि वह कई लोगों की नजीर बन गए।

बहुतेरे लोगों ने उसके बाद नेपाल, बिहार और झारखंड से लड़कियां खरीद कर उनसे शादी रचाई। हरियाणा में अपराधशास्त्र ने कई रूप अख्तियार कर लिए हैं। बताया जाता है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के गुडगांव और फरीदाबाद से जुड़े इलाकों में मुंबई तक का माफिया सक्रिय है। अगर सामने वाला थोड़ा भी कमजोर हुआ तो उसकी बेशकीमती जमीन बहुत कम पैसे देकर हथिया ली जाती है। पुलिस के पास इसलिए कोई नहीं जाता कि वहां माफिया सरगनाओं की पकड़ है।

मुंबई के माफिया और हरियाणा के कॉलोनाइजरों के बीच गठबंधन की खबरें भी हैं लेकिन कोई उन्हें कवर नहीं करता। वजह जो भी हो। यह नापाक गठबंधन रोहतक, पानीपत, सोनीपत और हिसार तक फैल गया है। बहुत बार विधानसभा तक में इशारा किया जा चुका है कि इस गठबंधन को किन लोगों की शह है। राज्य का मुख्यमंत्री एक ऐसा व्यक्ति है जिसके बारे में पहले माना जाता था कि उसे सत्ता की भूख नहीं है लेकिन अब कहा जाता है कि वह किसी भी सूरत में सत्ता छोड़ना ही नहीं चाहता। अपराधी तत्व जब चाहे हरियाणा को बर्बाद कर दें।

खाप पंचायतों की भूमिका भी कभी-कभी आपराधिक कारगुजारी के दायरे में आती है। यह मसला सुलझाव की तरफ कभी नहीं गया। खाप पंचायतों में जाइए तो वहां होने वाले भाषणों-फैसलों से आपको लगेगा कि आप पाषाणकाल में विचर रहे हैं। कई इलाकों में प्रेम आज भी ऐसा गुनाह है जिसकी सजा मौत से कम नहीं! खाप पंचायतों को बढ़ावा राजनीतिक तौर पर उस मुख्यमंत्री ने दिया था, जो अपनी साफ-सुथरी छवि के लिए जाना जाता था। लेकिन तानाशाही के लिए भी। उसके कार्यकाल में एक ऐसा कांड हुआ था जिसकी दूसरी मिसाल दुनिया में कहीं नहीं मिलती। पुलिस लॉकअप में एक मां और उसके नौजवान बेटे को नंगा करके आमने-सामने बैठाया गया था। सभ्य समाज के मत्थे पर लगा यह कलंक शायद रहती दुनिया तक कायम रहे!

तो सैकड़ों में से ये कुछ मिसाले हैं जो बताती हैं कि अपराध को हरियाणा में गौरवान्वित भी किया जाता है और अदालत से संदेह के लाभ पर छूट गए लोग कैसे महानायक बन जाते हैं और राजनीति में उनका कद कैसे बढ़ता ही जाता है। जिस बाप ने अपने जिस बेटे को अपनी औलाद तक मानने से इनकार कर दिया, उसी को मुख्यमंत्री बनाया और तब हरियाणा में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंचा। उससे पहले भी एक मुख्यमंत्री थे; जिनके बेटे ने कभी धर्म परिवर्तन करवा लिया था, भ्रष्टाचार को अपराध नहीं मानते थे। हरियाणा में कुख्यात ‘आया राम गया राम’ की कुसंस्कृति उन्हीं दिवंगत मुख्यमंत्री की देन है।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)

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