जिस दिन दिल्ली के राजेंद्र नगर में स्थित आईएएस बनने की कोचिंग कराने वाले राऊ कोचिंग संस्थान के बेसमेंट में स्थित कथित लाइब्रेरी में फंसकर तीन छात्रों के मरने की खबर आ रही थी, उसी दिन पेरिस में शुरू हुए ओलम्पिक में मनु भाकर द्वारा कांस्य पदक जीत लेने की खबर आ रही थी। देश के प्रधानमंत्री मोदी पदक जीत कर ओलम्पिक में भारत की ओर से अच्छी शुरूआत के लिए मनु को बधाई दे रहे थे। जबकि दिल्ली में केजरीवाल सरकार के मंत्री, आप पार्टी के नेता और केंद्र की नुमाईंदगी करने वाले गवर्नर और भाजपा के नेता बेसमेंट में मारे गये छात्रों की जिम्मेवारी एक दूसरे पर डाल रहे थे।
मारे गये छात्रों के मां और पिता के आंसुओं में छलकता उनका दुख दिल्ली में रोजगार और अच्छी शिक्षा की तलाश में कोचिंग में तैयारी कर रहे युवाओं की हताशा में घुल गया था। हजारों छात्र सड़क पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे थे। वे चीख रहे थे और न्याय की मांग कर रहे थे। वे दोषियों की सजा की मांग कर रहे थे। इन युवाओं को कोई सुनने वाला नहीं था। उन्हें ढंग का आश्वासन तक नहीं मिला। कुछ बयान और कुछ गिरफ्तारियां और बुलडोजर न्याय का वादा के सिवा इन युवाओं के हिस्से कुछ नहीं आया। कल शाम को अंततः युवा और छात्र दिल्ली के इंडिया गेट पर शांतिपूर्ण कैंडल मार्च करते राजनीति और शहर के शोर में गुम हो गये।
दिल्ली में दो दिन पहले ही पानी भरने से गेट में बिजली उतर आई और कोचिंग के रोजगार के लिए तैयारी करने वाले एक छात्र की मौत हो गई। और पीछे जाने पर दिल्ली में ही कोचिंग सेंटर में आग लगने की घटना हुई। उसमें कई छात्र घायल हुए थे। उस समय भी इन कोचिंग सेंटर में छात्र-युवाओं की जीवन सुरक्षा और कोचिंग के लिए तय किये मानकों को लेकर बहुत से सवाल उठे। ऐसे मसले सिर्फ दिल्ली से जुड़े हुए नहीं हैं। 2019 में सूरत में ऐसे ही कोचिंग सेंटर में लगी आग में 20 युवाओं की मौत हो गई थी। हम दुर्घटनाओं से हुई मौतों को किनारे कर ‘सुसाईड’ से हुई मौतों को देखें तब कोटा, राजस्थान में सिर्फ इस साल के जनवरी से अप्रैल तक 20 मौतों की खबर आई है।
अच्छी शिक्षण संस्थानों में भर्ती से लेकर नौकरियों के लिए तैयारी कराने वाली कोचिंग संस्थानों का विज्ञापन पिछले 20 सालों में अखबार के अंदर के पन्नों से बाहर निकलकर मुख्य पेज का हिस्सा बन गया। इंडियन एक्सप्रेस से लेकर द हिंदू तक जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के प्रथम पृष्ठ अमूमन इन्हीं कोचिंग के विज्ञापनों के साथ आते हैं। इन कोचिंग संस्थानों को चलाने वाले और इसमें पढ़ाने वाले कई शिक्षक समाज के प्रतिष्ठित और लोकप्रिय व्यक्तित्वों में बदल गये हैं। इन छात्रों को लगातार मोटिवेट करने, उन्हें प्रतियोगी बने रहने और हार नहीं मानने के लिए प्रेरित करने वाले ‘नये शिक्षकों’ की भी लोकप्रियता और प्रतिष्ठा किसी भी फिल्मकार से कम नहीं है।
मसलन, खान सर की लोकप्रियता में उसके पढ़ाने के अंदाज, युवाओं से संवाद, विषय को सरल बनाने और अभिभावक की तरह व्यवहार करने में निहित तो है ही, उसने खुद को गरीब छात्रों के बीच ‘मसीहा’ की तरह स्थापित भी किया। वह जो नहीं बन सका, या जो बन सकता था, उसे छोड़कर मेहनती और जरूरतमंद छात्रों का भविष्य संवारने के लिए ‘शिक्षक’ बन गया। इस तरह वह अभिभावक के विकल्प की तरह सामने आता है और अभिभावक से अधिक निर्णायक भूमिका में बदल जाता है। यह कहानी सिर्फ खान सर की नहीं है। यह कोचिंग केंद्रों के ब्रांड एंबेसडर बन गये सभी ‘गुरूओं’ की है। जो खुद मालिक और विज्ञापनकर्ता दोनों ही हैं। युवाओं और छात्रों के मनोविज्ञान से खेलते हुए उन्हें ‘प्रतियोगिता’ में बनाये रखने वाले ‘बाबा’ अब खुद ही एक बड़ा केंद्र बनकर इस व्यवसाय में उतर गये हैं। ये एक तरह के नये बाबाओं जैसे ही ‘गुरू’ है जो दार्शनिक अंदाज में बोलते हैं। और, इन सबके नीचे छात्रों और युवाओं के परिवारों द्वारा भेजा गया पैसा होता है, जिनके ऊपर ये व्यवस्थाएं काम कर रही हैं।
इसी साल के जून में ईपीडब्ल्यू पत्रिका में सर्वे के आधार पर छपे लेख ‘रेग्युलेटिंग द कोचिंग इंडस्ट्री इन इंडिया’ में कोचिंग के बाजार का मूल्य 58,000 करोड़ रूपये बताया गया है। और, अनुमान के अनुसार 2028 तक यह 1.3 लाख करोड़ रूपये का हो जाने का अनुमान है। यह मूल्य और अनुमान 2022 में लगाया गया था। इसी लेख में केवल बेहतर शिक्षण संस्थानों में जाने के लिए 2023 में जेईई मेन्स, नीट और सीएलएटी में अनुमानतः क्रमशः 11 लाख, 20 लाख और 60,000 उम्मीदवारों ने हिस्सेदारी किया था। 2024 में नीट उम्मीदवारों की संख्या 24 लाख पार कर गई थी। गोरखपुर, उत्तर-प्रदेश जैसे छोटे से नगर में नीट जैसे परीक्षा की तैयारी के लिए युवाओं से 50 हजार से लेकर 1.50 लाख तक प्रति उम्मीदवार वसूला जाता है। ये संस्थान बकायदा अपनी कोचिंग के नाम-चिन्ह वाले ड्रेस तक उपलब्ध कराते हैं, जिससे उनकी एक अलग पहचान बने। दिल्ली में आईएएस के लिए फाउंडेशन कोर्स से लेकर मुख्य परीक्षा की तैयारी, यहां तक की साक्षात्कार की तैयारी के 50 हजार से लेकर 2.5 लाख रूपये प्रति उम्मीदवार वसूला जाता है। निश्चित ही, कोचिंग के मामले में कोटा, राजस्थान सबसे ऊपर है। यह प्रतिवर्ष छात्र-युवाओं की मौत की दर भी काफी ऊंची है।
कोचिंग संस्थान और उससे जुड़ी अन्य गतिविधियां मसलन, रिहाईश, भोजन, अध्ययन सामग्री आदि एक विशाल अर्थव्यवस्था और शिक्षण की दमघोंटू व्यवस्था का निर्माण करती है। ‘प्रतियोगिता’ छात्र-युवाओं को जितना अकेला बनाती है, उनके अपने परिवारों की आर्थिक स्थिति उन्हें और भी मानसिक दबाव में ले जाती है। कोचिंग सेंटर में भयावह स्थिति होने के बावजूद ये छात्र-युवा इन हालातों से लड़ने की बजाय उन्हें इसे नजरअंदाज करने की ओर ले जाते हैं। वहीं दूसरी ओर, कोचिंग सेंटर कमाई को अधिकतम बनाने के लिए उम्मीदवारों की अधिकतम भर्ती लेते हैं और सुरक्षा और सुविधा पर होने वाले खर्च को कम से कमतर करने की कोशिश में रहते हैं। ये कोचिंग सेंटर एक ऐसी ‘फैक्टरी’ में बदल जाते हैं जिससे वे अधिकतम वसूली से अपना मुनाफा बढ़ा सकें।
शिक्षा और रोजगार किसी भी देश के लिए कोई व्यक्तिगत मसला नहीं है। ये दोनों ही मूलभूत अधिकारों का हिस्सा हैं। भारत का संविधान इस संदर्भ में कई प्रावधान बनाता और प्रस्तावित करता है। अपने तीसरे प्रधानमंत्रित्व के दौर में मोदी की योजनाओं में रोजगार अब भी ‘पकौड़े छानने’ से आगे जाने का भविष्य नहीं दिख रहा है। इसी महीने पेश किये बजट भाषण में रोजगार के नाम पर अप्रैंटिस और इपीएफओ खाते में अनुदान जैसी व्यवस्थाओं की खूब बात है, लेकिन कहीं पर भी नियमित रोजगार और इस संदर्भ में वेतन भुगतान का जिक्र नहीं आता है। नियमित रोजगार की कमी और खेती की बदहाली गांव और शहर के युवाओं को एक ऐसी असुरक्षित जिंदगी की ओर ठेल देने की अर्थव्यवस्था खड़ी हो गई, जिसमें फिलहाल कोई भविष्य नहीं दिख रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी के लिए विकसित भारत की संकल्पना चाहे जितना प्रेरित करती हो, इस देश के छात्र और युवाओं के हिस्से में तो कोचिंगों के बेसमेंट में चलने वाली वे कथित लाईब्रेरियां ही हैं, वे परीक्षाएं हैं, जिनमें सफलता का प्रतिशत तय की गई सीटों पर निर्भर है, और अभिभावकों का वो पैसा है जिसे वह हर रोज खर्च करता है। ये कोचिंग सेंटर इस देश की जीडीपी का हिस्सा बन गये हैं लेकिन ये छात्र, युवा भारत की जीडीपी से लगातार बाहर की ओर ठेले जा रहे हैं। इस भयावह सच्चाई से रूबरू हुए बिना कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में मारे गये छात्र-युवाओं के साथ न्याय संभव नहीं है।
(अंजनी कुमार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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