महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में वन्यजीव बोर्ड द्वारा एक अभूतपूर्व और विवादास्पद निर्णय लिया गया है। इस निर्णय के तहत 1 लाख से अधिक पेड़ों को काटने और 1,070 हेक्टेयर जंगल को खनन परियोजनाओं में बदलने की अनुमति दी गई है। यह प्रस्ताव 8 अक्टूबर को प्रस्तुत किया गया था और केवल 9 अक्टूबर को इसे मंजूरी दे दी गई। इतनी शीघ्रता से और बिना पर्याप्त विचार-विमर्श के इस प्रकार के निर्णय का लिया जाना न केवल चौंकाने वाला है बल्कि यह पर्यावरणीय और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत चिंताजनक भी है।
गढ़चिरौली: जैव विविधता का खजाना
गढ़चिरौली जिला अपनी समृद्ध जैव विविधता और घने जंगलों के लिए जाना जाता है। यह क्षेत्र केवल वन्यजीवों का निवास स्थान नहीं है, बल्कि यहां रहने वाले हजारों आदिवासी समुदायों की आजीविका और सांस्कृतिक पहचान का आधार भी है। इन जंगलों में पाए जाने वाले विभिन्न पेड़-पौधे और वनस्पतियां स्थानीय लोगों की आर्थिक और सामाजिक संरचना का हिस्सा हैं। इसके अलावा, यह जंगल महाराष्ट्र के पर्यावरणीय संतुलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
खनन परियोजनाओं के लिए जंगलों की कटाई का यह निर्णय गढ़चिरौली के पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव डालेगा। जंगल केवल पेड़ों का समूह नहीं हैं; वे पारिस्थितिकी तंत्र के अभिन्न अंग हैं। पेड़ों की कटाई से जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण में वृद्धि होगी, जिससे इस क्षेत्र के साथ-साथ पूरे राज्य की जलवायु प्रभावित होगी। यह निर्णय न केवल पेड़ों और वन्यजीवों के लिए हानिकारक है, बल्कि इससे क्षेत्र में मिट्टी का क्षरण, जल स्रोतों की कमी और कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
आदिवासी अधिकारों की उपेक्षा
गढ़चिरौली के जंगल आदिवासी समुदायों के लिए जीवनरेखा हैं। यहां रहने वाले आदिवासी इन जंगलों पर अपने भोजन, औषधि, और जीवन-यापन के अन्य संसाधनों के लिए निर्भर हैं। खनन परियोजनाओं के लिए जंगलों की कटाई का मतलब इन समुदायों को उनके मूल अधिकारों से वंचित करना है। यह निर्णय उनके जीवन और आजीविका को खतरे में डाल देगा। संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों के बावजूद, इस निर्णय में उनकी सहमति और जरूरतों को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है।
यह भी गौर करने वाली बात है कि इस प्रस्ताव को केवल एक दिन में स्वीकृत कर दिया गया। इतने बड़े और संवेदनशील मुद्दे पर बिना पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment) और आदिवासी समुदायों के विचारों को सुने ऐसा निर्णय लेना, शासन व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर करता है।
इस तरह के निर्णय केवल पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते, बल्कि वे समाज के सबसे कमजोर वर्गों को भी प्रभावित करते हैं। जंगलों की कटाई से प्राकृतिक आपदाओं की संभावना बढ़ जाएगी, जिससे आदिवासी समुदाय सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। साथ ही, यह क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकता है, जिसे सुधारने में दशकों लग सकते हैं।
क्या किया जाना चाहिए?
- पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन: खनन परियोजनाओं को मंजूरी देने से पहले, उनके पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव का गहन अध्ययन किया जाना चाहिए।
- आदिवासी अधिकारों की रक्षा: आदिवासी समुदायों के अधिकारों और उनकी सहमति को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्हें पुनर्वास और आजीविका के वैकल्पिक साधन प्रदान किए बिना ऐसी परियोजनाओं को शुरू करना अन्यायपूर्ण है।
- स्थानीय लोगों की भागीदारी: सरकार को स्थानीय समुदायों और पर्यावरण विशेषज्ञों को इन निर्णयों में शामिल करना चाहिए।
- जंगल संरक्षण: खनन जैसी गतिविधियों के लिए जंगलों को काटने की बजाय वैकल्पिक और पर्यावरण-अनुकूल उपायों पर विचार किया जाना चाहिए।
गढ़चिरौली में 1 लाख पेड़ों की कटाई और खनन परियोजनाओं को मंजूरी देना पर्यावरणीय और सामाजिक दृष्टि से एक बड़ा संकट है। यह निर्णय न केवल गढ़चिरौली के जंगलों और वन्यजीवों को खतरे में डालता है, बल्कि आदिवासी समुदायों के भविष्य को भी अनिश्चित बना देता है। ऐसी परिस्थितियों में, हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाएं और सरकार से इस निर्णय को पुनर्विचार करने की मांग करें। यह समय है कि हम विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने के लिए ठोस कदम उठाएं, ताकि हमारे जंगल और उनकी समृद्ध जैव विविधता आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित रह सकें।
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