लद्दाख के चर्चित पर्यावरण कार्यकर्त्ता सोनम वांगचुक के प्रति समर्थन और एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए 24 मार्च को रांची के मोरहाबादी स्थित बापू वाटिका के पास राज्य के आम नागरिकों सहित क्षेत्र के कई समाजकर्मियों ने एक दिवसीय उपवास व धरना दिया।
बताते चलें कि वांगचुक बीते छह मार्च यानी पिछले 22 दिनों से अनशन पर हैं। उनकी प्रमुख मांग लद्दाख को राज्य का दर्जा देना और छठी अनुसूची में शामिल करना है। मगर अभी तक सरकार ने उनके इस शंतिपूर्ण सत्याग्रह पर कोई ध्यान नहीं दिया है। ऐसे में देश के संवेदनशील नागरिकों के बीच सोनम वांगचुक की सेहत को लेकर चिंता बढ़ रही है। उक्त कार्यक्रम अपनी इसी चिंता और एकजुटता को प्रकट करना और विस्तार देने को लेकर था। कार्यक्रम में यह उम्मीद जताई गई कि सरकार तत्काल वांगचुक का अनशन तुड़वाने को लेकर कोई सार्थक पहल करे, इसका आसान तरीका यही है कि सरकार उनकी मांग, जो उनकी नहीं, लद्दाख की जनता की मांग है, स्वीकार कर ले।

यह कार्यक्रम ‘फ्रेंड्स ऑफ़ लद्दाख’ के झारखंड चैप्टर की ओर से नेहा सिन्हा की पहल पर हुआ। नेहा रांची के एक समाजकर्मी कुमार वरुण की बेटी हैं और वे अभी फर्ग्यूसन कॉलेज, पुणे से बीएससी पास कर एमएससी कर रही हैं।
इस अवसर पर नेहा सिन्हा ने बताया कि लद्दाख के लोगों के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए एक दिवसीय धरना-उपवास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सोनम वांगचुक, एक प्रसिद्ध शिक्षक और पर्यावरण कार्यकर्ता हैं, जो लद्दाख को राज्य का दर्जा दिलाने और छठी अनुसूची के कार्यान्वयन की प्रमुख मांग को लेकर 6 मार्च 2024 से भूख हड़ताल पर हैं।
नेहा ने बताया कि जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 से जम्मू- कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करता है। तब से लद्दाख का शासन केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त प्रशासक द्वारा किया जा रहा है।
2019 में सरकार ने वादा किया था कि यूटी को 6वीं अनुसूची दी जाएगी, एक संवैधानिक प्रावधान जो आदिवासी आबादी की रक्षा करता है और उन्हें स्वायत्त संगठन स्थापित करने की अनुमति देता है, जो उस जगह के लिए कानून बनाते हैं। लेकिन 3 साल बाद भी जब उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो लोगों ने विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया है। इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व “फ्रेंड्स ऑफ लद्दाख” संगठन द्वारा किया जा रहा है।
इस मौके पर यशस्वी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी की शहादत को भी याद किया गया और उनको आदरांजलि दी गयी। उल्लेखनीय है कि 23 मार्च 1931 को भगत सिंह और उनके साथियों को हुई फांसी के विरोध में 25 मार्च को हुए प्रदर्शन के दौरान कानपुर में दंगे भड़क गये थे। उसी दंगे की आग बुझाने के क्रम में विद्यार्थी की मौत हो गयी थी।
कार्यक्रम में कहा गया कि सांप्रदायिक दंगों को रोकने और मासूम नागरिकों की जान बचाने में जान देने की ऐसी मिसाल कम ही मिलती है।
बता दें कि सुबह दस बजे से अपराह्न दो बजे तक चले उक्त कार्यक्रम में डॉ करुणा झा, समाजवादी जन परिषद के चंद्रभूषण चौधरी, झारखंड आंदोलनकारी संघर्ष मोर्चा के पुष्कर महतो, माले नेता भुवनेश्वर केवट, अनंत कुमार गुप्ता, सुश्री उमा, सुदामा खलको, मेवा लकड़ा, विनोद लाहिड़ी, गीता तिर्की, रणजीत उरांव, जगन्नाथ उरांव आदि शामिल थे।
(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)
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