डॉ. राममनोहर लोहिया की 54 वीं पुण्यतिथि पर उनकी लिखी पुस्तक एक्शन इन गोवा का हिन्दी के साथ ही कोंकणी और मराठी में हुए अनुवाद का गोवा और हैदराबाद में लोकार्पण किया गया। यह पुस्तक हिन्दी अनुवाद के लिए जब मेरे पास आई तो ऐतिहासिक महत्व के काम में सहभागी बनने के विचार से तत्काल स्वीकार कर लिया। हालांकि स्थानीय व्यक्तियों और स्थानों के नामों को लेकर कठिनाई हुई, जिसका समाधान अभिषेक रंजन सिंह की सहायता से हो सका। कुछ प्राचीन परंपराओं का उल्लेख पुस्तक में है जिन्हें समझने के लिए इंटरनेट की भी सहायता लेनी पड़ी।

गोवा मुक्ति संघर्ष की विरासत को अक्षुण्ण रखती यह पुस्तक डॉ. राम मनोहर लोहिया के व्यक्तित्व के कई पहलुओं को सामने लाती है। गोवा तब पुर्तगाल का उपनिवेश था और वहां के निवासियों पर कई तरह के प्रतिबंध थे। इसकी कल्पना शेष भारत के लोग नहीं कर सकते थे। इसके बावजूद कि भारत भी ब्रिटिश उपनिवेश का हिस्सा था। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान डॉ. लोहिया गिरफ्तार होकर लाहौर जेल में कैद किए गए। कठोर कारावास से मुक्ति मिलने पर आराम करने के लिहाज से वे अपने पुराने मित्र जुलियांव मिनेजिस के पास गोवा पहुंचे तो वहां अलग ही नजारा था।

गोवा के लोगों के बोलने, लिखने और छपने पर प्रतिबंध था। एक जगह एकत्र भी नहीं हो सकते थे वे। शादी का निमंत्रण-पत्र छपवाने के लिए भी अनुमति लेनी होती थी और निजी समारोहों का आयोजन भी पुलिस की अनुमति के बिना संभव न था। नागरिक स्वतंत्रता की यह क्रूरतम स्थिति क्रांतिदर्शी डॉ.लोहिया के लिए असहनीय थी। उस कानून का उल्लंघन करने के लिए वे बेचैन हो गए। लोगों में विदेशी शासकों के प्रति व्याप्त नाराजगी को उन्होंने भांप लिया था और इसके निराकरण की दिशा में लग गए। मडगांव में सभा रखी गई, उसमें बोलने के लिए डॉ. लोहिया ने लिखित भाषण तैयार किया। सभा में मूसलाधार बारिश के बीच लगभग पांच हजार लोग उपस्थित थे। लोहिया जी पहुंचे तो उन्हें भाषण देने के पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया। गोवा का मुक्ति संग्राम इस तरह आरंभ हुआ जो 1961 में सफल हो सका।

डॉ. लोहिया का एक सूत्र वाक्य अक्सर प्रयुक्त होता है कि संघर्ष से संगठन खड़ा होता है, संगठन से संघर्ष नहीं। शायद इस सूत्र का पहला प्रयोग गोवा में ही हुआ। शून्य में संगठन खड़ा करने के डॉ. लोहिया के कौशल के विवरण इस पुस्तक-‘एक्शन इन गोवा’के हर पन्ने में मिलते हैं। रचना के साथ आंदोलन करने के अनोखा प्रयोग का दर्शन भी होता है। गांधीजी जो काम पूरे देश में कर रहे थे, डॉ.लोहिया उसे गोवा में आगे बढ़ा रहे थे। न केवल संघर्ष के रूप में बल्कि रचनात्मक रूप में भी। पुस्तक में गांधीजी के समय-समय पर लिखे संदेश व पत्र भी शामिल किए गए हैं।
बोलने, लिखने और छपने पर प्रतिबंध के खिलाफ आरंभ हुए इस आंदोलन से किसानों व मछुआरों को जोड़ने का प्रयास कोई दूरदर्शी क्रांतिकारी ही कर सकता है जिससे यह आंदोलन मुक्ति संघर्ष में बदल सका। आंदोलन के कार्यक्रमों की रूपरेखा निर्धारित करते समय वे गोवा की प्राचीन परंपरा की याद दिलाते हैं। सत्याग्रह के साथ-साथ गांवों में पंचायतों के गठन की अपील करते हैं। गोवा मुक्ति संघर्ष की ऐसी कई छोटी-छोटी चीजें प्रभावित करती हैं। लोहिया जी नशाबंदी के लिए अभियान तो चलाते हैं, पर ताड़ी उतारने वालों से यह काम छोड़ देने के लिए नहीं कहते, बल्कि ताड़ी से गुड़ बनाने के लिए कहते हैं।

यह पुस्तक आकार में बहुत छोटी है, पर इसका महत्व ऐतिहासिक है। इसे खोजकर निकालने और एक साथ कई भाषाओं में प्रकाशित करना काफी महत्वपूर्ण है। लोहिया जी ने ऐसी कई छोटी-छोटी पुस्तिकाएं लिखी हैं जो उनके रचना-समग्र में भी समाहित नहीं हो सकी हैं। ऐसे में इन पुस्तिकाओं की खोज और उनका प्रकाशन विरल कार्यभार है। एक्शन इन गोवा का प्रकाशन इसी दिशा में की गई एक ठोस पहल है।
(अमरनाथ वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल पटना में रहते हैं।)
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