वाराणसी। कल मानवाधिकार जननिगरानी समिति (PVCHR) समेत कई संगठनों की ओर से “संवैधानिक अधिकार, स्वास्थ्य व पोषण” विषय पर वाराणसी में एक आयोजन किया गया।
भेलूपुर स्थित होटल डायमंड में आयोजित इस कार्यक्रम में 'कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स' के सलाहकार...
कॉलेज में एमए के आखिरी वर्ष में पढ़ने वाली उस छात्रा के आंसू थम ही नहीं पा रहे थे। उसकी समस्या यह थी कि उसके एक वरिष्ठ शिक्षक उसकी बात ही नहीं सुन रहे थे। उसे एक अध्याय का...
सैंतालिस साल पहले भारत में लागू हुआ था आपातकाल। तब उसे लागू करने वाली सरकार ने 19 महीनों में ही हाथ खड़े कर दिए थे। कुछ लोग मानते हैं कि तब सरकार निश्चिंत हो गई थी कि देश की...
देश के हिन्दी के जाने-माने आलोचकों में से एक विजय बहादुर सिंह को आमतौर पर उनकी देशज प्रतिमानों की सुगंध वाली आलोचना दृष्टि, भवानीप्रसाद मिश्र व दुष्यंत कुमार जैसे कवियों और आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी की रचनावलियों के श्रमसाध्य...
हवाओं में अब एक नए सवाल की आमद हो गई है। सवाल यह है कि क्या एक बार फिर देश के किसान कोई बड़ा आंदोलन करेंगे? किसान नेता राकेश टिकैत की मानें तो अब से तेरह महीने बाद ऐसा...
दुनिया में नर्क और दर्द का दायरा बहुत बड़ा है। अपेक्षाकृत विकसित समझे जाने वाले ऐसे यूरोपीय देश, जहां एक समय समाजवाद की जमीन तैयार की जा रही थी, वे भी इससे अछूते नहीं हैं। अलग-अलग जातीय-समूहों और देशों...
अंग्रेजी के एक बहुत बड़े लेखक थे स्टीवेंसन। वे एक बार बस में सफर कर रहे थे और कोई पुस्तक पढ़ने में तल्लीन थे। जब उनका स्टाप आया तो वे फट से उतर गए मगर अपनी पुस्तक वहीं छोड़...
हिंदी के युवा कवियों में शुमार होने वाले अंशु मालवीय ने एक कविता लिखी थीः आजकल क्या कर रहे हैं मनमोहन सिंह/ क्या करता है जहर/ खून में घुलने के बाद। यह कविता उस समय में लिखी गई थी...
‘लोग इन कहानियों को बर्दाश्त नहीं करेंगे। सच कहूं तो ये मुझसे भी बर्दाश्त नहीं हो रही हैं। ये वे कहानियां हैं जिन्हें प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए था।’ शहादत की कहानियों को लेकर उक्त टिप्पणी दिल्ली यूनिवर्सिटी के...
19वीं सदी के सुधारकों में, सर सैयद अहमद खान (1817-1898) कई कारणों से असाधारण हैं। फिर भी, अब तक, अंग्रेजी में उनका कोई व्यापक मूल्यांकन या जीवनी संबंधी लेख उपलब्ध नहीं है। शायद, इस तथ्य के कारण कि सर...