(बीएचयू स्थित सर सुंदर लाल अस्पताल की विभिन्न समस्याओं को लेकर अनशन पर बैठे हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. ओम शंकर ने क्षेत्र के सांसद यानी पीएम मोदी को एक खुला पत्र लिखा है। पेश है उनका पूरा पत्र-संपादक)
महाशय,
आपको सविनय अवगत कराना चाहता हूं कि आपका संसदीय क्षेत्र काशी एक ऐतिहासिक धरोहर है। यह एशिया की सबसे प्राचीन नगरी है जहां हजारों सालों से लोग गंगा मइया के आंचल में लगातार रहते आए हैं। धर्म, संस्कृति, चिकित्सा, और शिक्षा के केंद्र के रूप में इसकी पहचान दुनिया भर में कायम है। यहीं पर भगवान धन्वंतरि द्वारा पूरी दुनिया में पहली बार चिकित्सा जगत की उत्पत्ति की गई थी, जिसे महर्षि देवदास, चरक और सुश्रुत जैसे महान ऋषियों ने मिलकर अपने शोधों द्वारा अग्रणी चिकित्सा पद्धति के रूप में विकसित करने में अपना अमर योगदान दिया।
शल्य चिकित्सा का विश्व का पहला विश्वविद्यालय ईसा से सैकड़ों वर्ष पहले यहीं पर स्थापित किया गया था। इन्हीं सब वजहों से प्रयागराज में जन्में महामना ने भी एशिया के सबसे विशाल विश्व विद्यालय की आधारशिला रखने के लिए काशी को ही चुना था। अपने स्थापना के काल से ही इसकी गरिमा पूरी दुनिया में स्थापित हुई। परतंत्र भारत में भी इनकी ख्याति और प्रतिष्ठा का अनुमान आप इससे लगा सकते हैं कि आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक भी यहां कार्य करना चाहते थे। इस विश्व विद्यालय ने अब तक न जाने कितने ही वैज्ञानिक, शिक्षाविद, राजनेता और राष्ट्रपति तक इस देश को दिए।
एक सांसद के तौर पर विगत दस सालों में आपने भी काशी के विकास को प्राथमिकता देने की कोशिश की। स्वास्थ्य और शिक्षा के मौलिक अधिकारों की हमारी लड़ाई को आपने गंभीरता से लिया जिसके लिए आप धन्यवाद के पात्र हैं। आपके सकारात्मक सहयोग से एक ओर जहां आईएमएस को एम्स जैसा दर्जा मिला, वहीं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को “इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस” के तौर पर विकसित करने के लिए बजट/धनराशि भी।
लेकिन दुःख की बात यह है कि आपके द्वारा संस्थान के विकास के लिए दिए गए धन का सदुपयोग मरीजों की सुविधाओं को बढ़ाने की बजाय उसका दुरुपयोग यहां के अधिकारियों द्वारा अपनी समृद्धि हासिल में किया जा रहा है। विश्व विद्यालय में भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अराजकता आज चरम पर है। कुलपति जी की अक्षमता का आलम यह है कि वो अपने 2 सालों से ज्यादा के कार्यकाल में अब तक विश्व विद्यालय को चलाने के लिए अति आवश्यक “एक्जीक्यूटिव काउंसिल” तक का गठन नहीं कर पाए, लेकिन नियमों की धज्जियां उड़ाकर चुनाव आचार संहिता के दौरान भी नियुक्तियां कर रहे हैं जो कि एक प्रशासनिक अपराध है।
कुलपति जी न सिर्फ खुद इंस्टीट्यूट ऑफ इमिनेंस के नाम पर मिले धन का दुरुपयोग कर रहे हैं बल्कि विश्व विद्यालय के वो अधिकारी जो भ्रष्टाचार में शामिल हैं, उनको खुलेआम संरक्षण भी दे रहे हैं। वो महामना काल के कई पेड़ों को काटकर रोज बेच रहे हैं। मतलब विश्व विद्यालय को मजबूत करने की बजाय कुलपति जी ने अपने दो सालों से ज्यादा के कार्यकाल के दौरान विश्व विद्यालय नींव को दीमक की तरह कमजोर करने की कोशिश की है।
आज इस विश्व विद्यालय में कुलपति जी के सबसे अजीज और करीबी अधिकारी हैं आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे और सत्यापित अपराधी, सर सुंदर लाल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक प्रो के के गुप्ता जी, जिनके कुकृत्यों का किस्सा पढ़कर आपकी रूह कांप जाएगी। महोदय सबसे पहले अपने गैर-शैक्षणिक अनुभवों को शैक्षणिक बताकर मेडिसिन के प्रोफेसर बन गए। बिना किसी सक्षम अधिकारी की संस्तुति के खुद को ब्लड बैंक का जबरन इंचार्ज घोषित कर उस पर अपना अवैध कब्जा कर लिया।
बीएचयू जैसे सम्मानित संस्थान में स्वघोषित ब्लड बैंक इंचार्ज बनकर बिना आधिकारिक मान्यता के ब्लड बैंक को सालों तक संचालित करते रहे। ब्लड बैंक की मान्यता प्राप्त करने के लिए उन्होंने पैथोलॉजी विभाग के प्रोफेसर के नामों का दुरुपयोग, वो भी बिना उनकी अनुमति के किया। ज्ञात हो कि ये मेडिसिन के प्रोफेसर हैं जबकि ब्लड बैंक का इंचार्ज सिर्फ पैथोलॉजी विभाग के प्रोफेसर ही बन सकते हैं। आज भी इन्होंने SSH स्थित जांच घर के ऊपर अपना अवैध कब्जा जमा रखा है।

इनके ऊपर आईआईटी के बच्चों द्वारा दान दिए गए ब्लड को चुराकर बेचने का 2016- 17 में जब आरोप लगा तो तत्कालीन कुलपति द्वारा इनको पहले चिकित्सा अधीक्षक के पद से हटा दिया गया और फिर ब्लड बैंक इंचार्ज रहते हुए इनके द्वारा की गई सभी अनियमितताओं की जांच के लिए एक कमेटी गठित कर दी। जांच समिति ने जांच में इनको गुनहगार पाया और इनके विरुद्ध कार्रवाई की अनुशंसा की जिसके तहत इनको ब्लड बैंक इंचार्ज के पद से भी हटा दिया गया।
इसके बाद इनको नौकरी से बर्खास्त कर जेल भेजा जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
कुछ दिनों बाद ये फिर से इमरजेंसी के इंचार्ज बना दिए गए। वहां उन्होंने एक नर्सिंग स्टाफ के साथ धक्का-मुक्की कर दी, जिसके बाद इनके विरूद्ध कार्रवाई की मांग उठने लगी। तभी कोरोना महामारी आ गई। नर्सिंग स्टाफ के साथ दुर्व्यवहार मामले में इनके विरुद्ध जो कार्रवाई होनी चाहिए थी, वो तो हुई नहीं, उल्टे इस अक्षम और भ्रष्ट व्यक्ति को पदोन्नति देकर कोविड का “नोडल अधिकारी” नियुक्त कर दिया गया।
कोविड के नोडल अधिकारी के तौर पर इन्होंने एक बार फिर से अपनी अक्षमता को उजागर किया और मरीजों को समुचित इलाज मुहैया कराने में विफल रहे, जिससे चारों तरफ अफरातफरी मच गई।
कोविड के नोडल अधिकारी रहते हुए इन्होंने करोड़ों के सामानों की खरीदारी की, जिसमें भी अनियमितता करने के इनके ऊपर आरोप लगे।
इनकी प्रशासनिक अक्षमता, अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार के लिए जब इनके विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई कर इनको नौकरी से निकाला जाना चाहिए था, तब मिला इनको चिकित्सा अधीक्षक के पद पर पदोन्नति। है न अनोखा!
बीएचयू अधिकारियों द्वारा एक सत्यापित भ्रष्टाचारी व्यक्ति का बार-बार बचाव, उसका संरक्षण और उसको सजा के बदले पदोन्नति देना, बीएचयू में फैले भ्रष्टाचार और अराजकता का एक छोटा सा उदाहरण है।
अपने विगत के काले करतूतों पर पर्दा डालकर एक बार फिर से चिकित्सा अधीक्षक बनने के बाद तो इन्होंने सारी हदें पार कर दी। उन्होंने कायाकल्प योजना के तहत संस्थान को मिली धन राशि का खुलकर लूट शुरू कर दिया। मरीजों की सुविधाएं बढ़ाने की बजाए इन्होंने सरकारी धन का दुरुपयोग पत्थर के ऊपर ग्रेनाइट लगाकर निजी लाभ के लिए किया।
उसके बाद ये कुलपति जी संग मिलकर फायदे में चल रहे सीसीआई जांच केंद्र को एक पीओसीटी नामक एक ऐसी कंपनी के हाथों में बेच दिया जो कई राज्यों में पहले से ब्लैक लिस्टेड थी। यह जांच केंद्र मरीजों को रोज गलत जांच रिपोर्टें देती है, जिससे इस सम्मानित संस्थान की गरिमा और विश्वसनीयता रोज कम हो रही है। विटामिन डी और किडनी की रिपोर्ट तो अक्सर गलत पाई जाती है। इसके अलावा ज्यादातर जांच की दरों को बढ़ाकर निजी जांच केंद्रों में होने वाले जांच दरों के लगभग बराबर कर दिया, जिससे यहां मरीजों की सुविधाएं बढ़ने के बदले पहले से भी कम हो गई हैं।
उनके प्रशासनिक गुंडागर्दी का ये आलम है कि वो अब चिकित्सा विज्ञान संस्थान के डीन और डायरेक्टर महोदय के लिखित आदेशों को भी नहीं मानते हैं। ताजा उदाहरण हृदय रोग विभाग का है जिसके आवंटित बेड के ऊपर पिछले दो सालों से पहले तो इन्होंने डिजिटल ताला लगाकर रखा, जिससे 35 हजार से ज्यादा हृदय रोगियों को बेड खाली रहते हुए बेड नहीं मिल पाया। इलाज के अभाव में उनमें से हजारों रोगियों की जानें चली गईं, जिसे उचित इलाज द्वारा बचाई जा सकती थी।
मेरे द्वारा बार – बार इस मुद्दे को उठाने के बाद भी उन्होंने जानबूझकर कोई सकारात्मक कार्यवाही नहीं की और मरीजों को बेड खाली रहते हुए बिना इलाज के मरने को विवश किया।
अगस्त 2023 में भूतपूर्व निदेशक महोदय के आदेश पर इस संबंध में वर्तमान के डीन साहब की अध्यक्षता में एक जांच समित गठित की गई, जिसमें चिकित्सा अधीक्षक के प्रतिनिधि भी शामिल थे। दो महीने तक जांच करने के बाद इस समिति ने चिकित्सा अधीक्षक के प्रतिनिधि द्वारा दी गई थोथी और बेतुकी दलीलों को खारिज करते हुए बहुमत से सीएसएसबी भवन के संपूर्ण चौथे तल्ले और आधा पांचवें तल्ले को हृदय विभाग को आवंटित करने की अक्टूबर 2023 में अनुसंशा कर दी, जिसे इस अपराधी चिकित्सा अधीक्षक ने मानने से ही साफ इंकार कर दिया।
फिर से पांच महीने बीत जाने के बाद भी जब कोई कार्रवाई नहीं की गई तो विवश होकर 8 मार्च 2024 से मैंने आमरण अनशन करने की नोटिस माननीय कुलपति और निदेशक को दी। उसके बाद मेरी निदेशक और डीन महोदय से कई चरणों में वार्ता हुई और अंत में यह फैसला लिया गया कि समिति द्वारा सुझायी गयी सभी संस्तुतियों को अक्षरशः तत्काल प्रभाव(9 मार्च 2024) से लागू किया जाएगा। इस सहमति के लिखित आदेश की एक कॉपी (संलग्न) मुझे दी गई और दूसरी चिकित्सा अधीक्षक को कार्रवाई के लिए भेजा दिया गया।
निदेशक और डीन महोदय द्वारा लिखित आदेश मिलने के बाद मैंने 8 मार्च से प्रस्तावित अपने आमरण अनशन को खत्म करने की बजाय स्थगित कर दिया था, क्योंकि मैं इस अपराधी चिकित्सा अधीक्षक के काले इतिहासों और कुकृत्यों से अच्छी तरह वाकिफ था। मेरा शक बाद में सही साबित हुआ और चिकित्सा अधीक्षक ने निदेशक और डीन महोदय के लिखित आदेशों को भी मानने से साफ इंकार कर दिया।
चिकित्सा अधीक्षक यही नहीं रुके बल्कि निदेशक और डीन महोदय के लिखित आदेश पाने के बाद भी उन्होंने वो बेड हृदय विभाग को देने की बजाय उसे “ऑनको सर्जरी विभाग” को आवंटित कर दिया, जो न सिर्फ निदेशक और डीन महोदय के आदेशों की अवमानना थी, बल्कि उनका अपमान भी था और बीएचयू के नियम, कायदे-कानूनों का खुलेआम धज्जियां उड़ाना था, जिसके बाद इनको कुलपति जी द्वारा न सिर्फ तुरंत चिकित्सा अधीक्षक के पद से हटाया जाना चाहिए था, बल्कि इनको नौकरी से भी बर्खास्त किया जाना चाहिए था और इनके चिकित्सा अधीक्षक रहते हुए इनके द्वारा की गई अनियमितताओं की भी जांच एसआईटी गठित करके करवाई जानी चाहिए थी, लेकिन कुलपति जी ने ऐसा नहीं किया। इनकी नियुक्ति तात्कालिक चिकित्सा अधीक्षक के तौर पर 6 मई 2021 को की गई थी, जो अधिकारियों की अधिकतम नियुक्ति अवधि 3 वर्षों को भी पार कर चुकी है, लेकिन फिर यह अपराधी चिकित्सा अधीक्षक आज भी अपने पद पर गैर कानूनी ढंग से काबिज है।
इस संबंध में मैंने कई पत्र बीएचयू के कुलपति जी को लिखे लेकिन उन्होंने अब तक चिकित्सा अधीक्षक के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे BHU में कानून के बदले भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अराजकता का राज कायम हो गया।
अब आखिरी उम्मीद आपसे है कि आप इस संबंध में कुलपति जी को तुरंत कार्रवाई करने का आदेश दें जिससे चुनावी समय में आपको राजनैतिक नुकसान न झेलना पड़े।
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