आंखों का पानी सूख जाना यानी नदियों का मर जाना है: राजेन्द्र सिंह

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रांची। झारखंड की राजधानी रांची में गैर सरकारी संस्था डब्ल्यूएचएच और फिया फाउंडेशन के तत्वावधान में “समुदाय केंद्रित नदियों के पुनर्जीवन” विषय पर आयोजित दो दिवसीय सेमीनार के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए जल पुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि-प्रकृति के प्रकोप को आज ग्लोबल वार्मिंग का नाम से दुनिया संबोधित करती है, गांव के आम लोग इसे “धरती को बुखार” का नाम देते हैं। जब समाज की आंखों से नदियां गायब होती हैं तो नदियां भी सूखने लगती हैं और जब नदियों और पानी को बचाने के लिए समाज उठ खड़ा होता है, तो सरकारों को समाज के पास आना ही पड़ता है।

उन्होंने आगे कहा कि-जल प्रबंधन प्रणाली जितना विकेंद्रित होंगी, नदियों के पुनर्जीवन की संभावनाएं उतना संभव हो पाएगा। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि आज सरकारें खासकर नीति निर्धारक पारंपरिक देशज ज्ञान को नजरअंदाज करते रहे हैं। यही कारण है कि आज झारखंड ही नहीं भारत और पूरी दुनिया में पानी का संकट विकराल रूप लेता जा रहा है।

राजेन्द्र सिंह ने कहा कि – विगत 20 वर्षों के स्थानीय समुदाय के साथ काम करने के अपने अनुभवों के आधार पर हम दावा करते हैं कि हमने 17 मृत नदियों को पुनर्जीवित किया है और ये झारखंड के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं होगा। क्योंकि यहां समुदाय का देशज ज्ञान बहुत ही समृद्ध है और ये ऐतिहासिक समय से ही जल, जंगल, जमीन के प्रति संघर्ष की भूमि रहा है।

जमशेदपुर के विधायक सह दामोदर नदी को बचाने की मुहिम के प्रणेता सरयू राय ने कहा कि-सरकारों द्वारा निर्गत किये जानेवाले अनुदानों अथवा कर्ज राशि को खर्च करना हमेशा से प्राथमिकता रहती है। जिसके कारण जिनके ऊपर योजनाओं के क्रियान्वयन की जिम्मेवारी होती है, उनकी प्राथमिक मंशा होती है कि योजना में से अधिकांश हिस्सा कैसे बचे। इसे हमलोग भ्रष्टाचार कहते हैं। प्रकृति के प्रति मनुष्यों खासकर सरकारों के अत्याचार से परिस्थितियां विकराल होती जा रही हैं। इसे हर हाल में रोकना होगा।

सरयू राय, विधायक

भोजन का अधिकार अभियान से जुड़े सामाजिक कार्यकर्त्ता बलराम जी ने कहा कि-धरती में 71% पानी समुद्र में भंडारित है, 2.4% पानी ग्लेशियर में निहित हैं। इन दोनों श्रोतों का झारखंड में कोई संभावना नहीं है। यहां तो पानी का श्रोत है वो सिर्फ 0.6% है। इसी से हमारा पूरा जीवनचक्र चलता है।

सत्र को संबोधित करते हुए नवोदित मंत्री, कृषि, पशुपालन, सहकारिता एवं आपदा प्रबंधन विभाग की दीपिका पाण्डेय ने कहा कि – बतौर एक जन प्रतिनिधि समाज का बड़ा तबका का सवाल आज जल संकट का सामना करना पड़ता है। मुझे जो नई जिम्मेदारी सरकार ने सौंपी है, हमारी पूरी कोशिश होगी कि जल छाजन जैसी महत्वकांक्षी योजना को धरातल पर उतारें। इसे ग्राम पंचायतों और ग्राम सभाओं के जिम्मे कार्यान्वयन के बिंदुओं पर नए सिरे से विचार किये जाएंगे।

वहीं पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित चामी मुर्मू ने सेमीनार में अपील की कि – झारखंड का संघर्ष हमेशा से जल, जंगल, जमीन जैसी प्राकृतिक संसाधनों पर समुदाय का अधिकार स्थापित करने की रही है। इसी दिशा में सरकार और समाज दोनों के आपसी समन्वय से नदियों के पुनर्जीवन का सपना साकार हो सकेगा।

वरिष्ठ पत्रकार मधुकर ने अपने सम्बोधन में कहा कि झारखंड का गठन ही जल, जंगल, जमीन के पृष्ठभूमि पर हुई थी। दुनिया में विज्ञान से हमने आधुनिक सुविधाओं का उपभोग करना सीखा है, लेकिन दुनिया में आज तक एक कारखाना नहीं है जहां पानी और मिट्टी जैसे प्राकृतिक संसाधनों का निर्माण किया जा सके। इनके बेहत्तर प्रबंधन के लिए तो हमें समुदायों के पास ही सीखने जाना होगा। उनके पास पारंपरिक ज्ञान के अकूत भंडार भरे पड़े हैं।

दूसरे सत्र में समुदाय विशेषज्ञ बहादुर उरांव ने व्यक्तिवादी जीवनशैली को समस्या की जड़ बताया। वहीं तरुण भारत संघ की इंदिरा खुराना ने प्राकृतिक आपदाओं को रेखांकित करते हुए समुद्र जल स्तर में निरंतर बढ़ोतरी, ग्लेशियरों के तेजी से पिघलना, असमय बारिश जैसे मुद्दों को सेमीनार में रखा।

बीआईटी मेसरा के वैज्ञानिक एपी कृष्णा स्वर्ण रेखा नदी के बेसिन में हो रहे नकारात्मक प्रभावों के शोध को साझा किया।
पलामू इलाके में काम करने वाले सम्पूर्ण ग्राम विकास केंद्र के विनोद कुमार ने पारंपरिक पाईन आहार ज्ञान पद्धति को फिर से अभ्यास में लाने की वकालत की।

अन्य वक्ताओं में मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में पानी पर काम करने वाले संजय सिंह, झारखंड जल गुणवत्ता यूनिट से डॉ० विपुल सुमन, बिहार में पानी के मुद्दे पर काम कर रहे विनोद मिश्रा, बंगाल से तुहिन सुबरा मंडल शामिल थे।

नदियों के पुनर्जीवन के इस क्षेत्रीय सेमीनार में झारखंड के विभिन्न जिलों के प्रतिभागियों बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा से 60 प्रतिभागी शामिल हुए। कार्यक्रम का संचालन गुरजीत सिंह और सुकान्ता सरकार ने संयुक्त रूप से किया।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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