उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर फटने से भयावह आपदा, भारी पैमाने पर जान-माल के नुकसान की आशंका

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उत्तराखंड से आपदा की भयावह खबर आ रही है। राज्य के चमोली जिले में ग्लेशियर फटने से भारी नुकसान की आशंका जताई जा रही है। रैणी ग्लेशियर के फटने के कारण धौली गंगा नदी में भीषण बाढ़ आ गई है। जिस वजह से चमोली से हरिद्वार तक हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है। स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के मुताबिक आज सुबह रैणी ग्लेशियर के फटने के कारण तपोवन व आसपास के इलाकों में अचानक बाढ़ आने के कारण नदी के किनारे बसे सैकड़ों घर व लोग इसकी चपेट में आ गये हैं। जान माल का भारी नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है। ऋषि गंगा, धौली गंगा व अलकनंदा नदी का जल स्तर काफी बढ़ा हुआ है। स्थानीय प्रशासन ने घटना की भयावहता को देखते हुए आपदा प्रबंधन हेतु अपनी टीमें रवाना कर दी हैं। चमोली व कर्णप्रयाग में नदी के किनारे रहने वाले लोगों को अलर्ट कर तुरंत घरों को खाली करने के आदेश दे दिये गए हैं।

खबर आ रही है कि ऋषि गंगा पर बना 11 मेगावाट का पावर प्लांट पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका है साथ ही पावर हाउस में काम कर रहे कई स्थानीय लोग बह गए हैं। वहीं दूसरी ओर धौली गंगा के ऊपर निर्माणाधीन 500 मेगावाट के पावर प्लांट को भी भारी नुकसान होने की खबर आ रही है। प्रशासन द्वारा हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है। पुलिस नदी के किनारे रह रही आबादी को तुरंत हटने के आदेश दे रही है। श्रीनगर में भी पुलिस ने अलकनंदा के आसपास रह रही आबादी को तुरंत वहाँ से हटने के निर्देश दिये हैं। साथ ही श्रीनगर जल विद्युत डैम को तुरंत प्रभाव से पानी कम करने के निर्देश जारी कर दिये गये हैं ताकि अलकनंदा का जल स्तर बढ़ने से क्षेत्र में ज़्यादा नुकसान न हो। ऋषिकेश में रिवर राफ़्टिंग पर तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी गई है व बोट संचालकों को नदी से हटने के लिए कह दिया गया है।

चमोली व आसपास के क्षेत्रों से भारी नुकसान की खबरें आ रही हैं। ग्लेशियर फटने से तपोवन बैराज बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है। जिससे नदियों में बाढ़ आ गई है। करंट लगने के कारण कई लोगों के हताहत होने की आशंका जताई जा रही है। 2013 की केदारनाथ आपदा जैसा ही कुछ इस आपदा को भी देखा जा रहा है लेकिन इस आपदा के कारण कितना नुकसान हुआ है और जान माल की कितनी हानि हुई है यह जांच पड़ताल के बाद ही पता चल पाएगा। फिलहाल प्रशासन स्थिति को काबू में कर लोगों को बाढ़ की भयावहता से बचाने की कोशिश में लगा हुआ है। इस बाढ़ के बाद एक बार फिर उत्तराखंड जैसे संवेदनशील पहाड़ी राज्य में बांधों का लगातार बनाया जाना चर्चा के केंद्र पर आ गया है। केदारनाथ आपदा के समय भी कहा गया था कि बांधों ने बाढ़ से पैदा होने वाले खतरों को कई गुना बढ़ा दिया था और आज फिर बाँधों के आसपास से ही भारी नुकसान की खबरें आ रही हैं।

रैणी, चिपको आंदोलन की ध्वजवाहक रही गौरा देवी का गांव है जहां के स्थानीय लोगों ने हमेशा ही वहां बनाई जा रही जल विद्युत परियोजनाओं का विरोध किया है लेकिन इन विरोधों के बावजूद रैणी के आसपास बांध बनाने की इजाजत दी गई जिसके परिणाम स्वरूप आज बाढ़ के कारण भारी क्षति होने की आशंका जाहिर की जा रही है। विकास की इस अंधी दौड़ में हमें एक बार पुन: उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति पर गहन विमर्श करना होगा और सतत विकास के मॉडल को अपनाना ही होगा अन्यथा इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं में मनुष्य की अंधाधुंध विकास नीतियां हमेशा ही जान माल के नुकसान में उत्प्रेरक की भूमिका अदा करेंगी। उत्तराखंड के मुख्य सचिव ने सौ से डेढ़ सौ मौत की आशंका जताई है।

(कमलेश जोशी के फेसबुक वाल से साभार लिया गया है।)

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