नारायणपुर। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियों ने कमर कस ली है। राज्य की सत्तारुढ़ पार्टी कांग्रेस और विपक्षी भाजपा ने अपने प्रत्याशियों की सूची भी जारी कर दी है। फिलहाल 7 नवंबर को होने वाले पहले चरण के मतदान के लिए कांग्रेस और भाजपा ने अपने प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है। बाकी अन्य पार्टियों ने भी अपने प्रत्याशी मैदान में उतार दिए हैं। नवरात्रि के मद्देनजर फिलहाल इतनी चुनावी हलचल देखने को नहीं मिल रही है। लेकिन कुछ जानकारों का मानना है कि त्योहारी सीजन खत्म होते ही चुनावी लहर तेज हो जाएगी।
प्रमुख है नारायणपुर सीट
इस बीच जनचौक की टीम ने अपनी चुनावी यात्रा की शुरुआत नारायणपुर विधानसभा से की है। भौगोलिक दृष्टिकोण से यह विधानसभा अन्य विधानसभा से बहुत भिन्न है। इतना ही नहीं इस विधानसभा का कुछ भाग बस्तर जिला और कुछ कोंडागांव जिले में पड़ता है। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस के प्रत्याशी चंदन कश्यप और भाजपा के केदार कश्यप दोनों ही बस्तर जिले के भानपुरी से ताल्लुक रखते हैं। जिसके कारण नारायणपुर जिले की जनता में इस बात को लेकर भी नाराजगी है। वहीं दूसरी ओर सीपीआई के फूलसिंह कचलाम और आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी नरेंद्र नाग नारायणपुर जिले के निवासी हैं।
भाजपा की नजर बस्तर की खनिज संपदा पर
प्रत्याशियों के नाम की घोषणा के बाद सीएम भूपेश बघेल नारायणपुर में जनसभा को संबोधित करने आए थे। गुरुवार को हुई इस जनसभा में बघेल ने पांच साल के अपने कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाने के साथ-साथ भाजपा को भी आड़े हाथों लिया।
उन्होंने कहा कि इनकी (भाजपा) नजर बस्तर की खनिज संपदा पर है। नगरनार के प्लांट को निजी हाथों में दे रहे हैं। इन सबसे सीधा फायदा अडानी को होगा। इसलिए हमें इनसे सावधान रहने की जरुरत है। ये बस्तर को बेचना चाहते हैं लेकिन हम इसे बचाने आए हैं।
कोरोना काल का जिक्र करते हुए भूपेश बघेल ने जनता को याद दिलाया कि जिस वक्त भाजपा की सरकार आपसे थाली-ताली बजवा रही थी। उस वक्त राज्य की कांग्रेस सरकार ने जनता को तीन महीने मुफ्त राशन दिया था।
पहले चरण के चुनाव के लिए नामांकन की आखिरी तारीख 20 अक्टूबर थी। 19 अक्टूबर को कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और सीपीआई के उम्मीदवारों समेत अन्य लोगों ने अपना पर्चा भरा। 20 अक्टूबर को भाजपा के केदार कश्यप ने अपने समर्थकों के साथ पर्चा भरा।
नारायणपुर जिले का अबूझमाड़ हिस्सा आज भी नक्सल प्रभावित क्षेत्र है। जहां आजतक कई जगहों पर न तो बिजली पहुंची है और न ही सड़क पानी की कोई सुविधा है।
गांव छोड़ा लेकिन उसकी स्थिति नहीं बदली
मुख्यमंत्री की रैली के दौरान इसी क्षेत्र को छोड़कर शहर में बस चुकी महिलाओं ने मुझे अपनी आपबीती बताई। रवा उसेंडी नाम की महिला और उसकी दो साथी मुख्यमंत्री को देखने आई थी। रवा पूरी तरह से आदिवासी वेशभूषा में आईं थीं। वह बताती हैं कि उनका परिवार ग्राउंड के पास ही बने क्वार्टर में रहता है। उसकी सहेली भी वहीं रहती हैं, जो एक पैर से अपहिज थी। यह तीनों बांस के सामान बनाने का काम करती हैं।
रवा ने बताया कि उन्हें किसी ने कहा कि कोई मंत्री आ रहा है इसलिए वह मैदान में आई थी। वह अबूझमाड़ की स्थिति का मुझसे जिक्र करते हुए वह बताती हैं कि “आज भी हमारे यहां वो लोग (नक्सली) रहते हैं। आज से करीब आठ दस साल पहले हम यहां (नारायणपुर) आ गए थे। लेकिन गांव की स्थिति आज भी नहीं बदली है”।
वह कहती हैं “मैं हर साल अपने गांव में जाती हूं जो माड़ में पड़ता है। वहां जाना इतना आसान नहीं है। शहर से थोड़ी दूर जाने के बाद से ही कच्चा रास्ता शुरू हो जाता है। पैदल जाने पर मुझे दो दिन का समय लगता है। साथ में चावल लेकर जाती हूं ताकि रात में रुकते समय चावल बनाकर खा लूं। पूरा रास्ता आज भी कच्चा है। गांव में पीने के पानी की सुविधा नहीं है लोग नदी से पानी लाकर पी रहे हैं। मेरी कुछ सहेलियां और बहनें हैं जिनसे मिलने जाती हूं”।
इसके बाद हमने नारायणपुर के गांव मटावांट में गए। इस गांव की स्थिति भी ऐसी ही थी। शहर की मुख्य सड़क से यह गांव अंदर की तरफ लगभग 10 किलोमीटर दूर है। इस गांव में जाते वक्त साफ पता चल रहा था कि एक दो दिन पहले ही लाल मिट्टी से रास्ते को बनाया गया है।

लेकिन इस लाल मिट्टी के रास्ते से आगे गांव का तो कोई रास्ता ही नहीं था पगडंडी के सहारे लोग आते-जाते हैं। गांव में लोगों के घर अच्छे थे लेकिन रास्ता नहीं था। इस गांव के युवाओं ने चुनाव को लेकर अपनी राय को हमसे शेयर किया और वहां की समस्याओं को गिनाया।
सड़क के अभाव में 108 तक नहीं पहुंच पाती
गांव में कई परिवार ईसाई भी थे। जो मत देते वक्त बस्तर में ईसाईयों पर हो रहे अत्याचार को ध्यान में रखने की बात कर रहे थे। संतलाल पोटाई एक युवा किसान हैं। सरकार के पांच साल के कार्यकाल के बारे में वह कहते हैं कि “हम यह नहीं कह सकते हैं कि सरकार ने कुछ नहीं किया। जितने वायदे किए उतने तो पूरे नहीं किए लेकिन कुछ तो पूरे किए हैं और उसमें से भी किसानों के लिए तो एमएसपी और कर्ज माफी सही रही”।
लेकिन हमारे गांव में तो पक्की सड़क नहीं है जबकि यह इलाका जिला मुख्यालय से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर है। हमारा परिवार और गांव वाले लंबे समय से वोट कर रहे हैं। कई चुनाव हमने देखे लेकिन आजतक कोई नेता चुनाव जीतने के बाद हमारे गांव में नहीं आया है। नेता लोग नारायणपुर आते हैं और वहीं से वापस चले जाते हैं।

संतलाल पोटाई से मैंने पूछा कि इस बार वोट के दौरान आपका सबसे बड़ा मुद्दा क्या रहेगा। इसका जवाब देते हुए वह कहते हैं कि “दो ही चीज मेरे जहन में हैं पहली हमारी सुरक्षा और दूसरा सड़क”।
सड़क न होने के कारण हमारे यहां सरकारी गाड़ी 108 भी नहीं आ पाती है। कई बार लोग जब ज्यादा बीमार हो जाते हैं तो किसी तरह से जुगाड़ कर उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ता है। इसलिए मैं इस बार सड़क को मुख्य मुद्दे के तौर पर देखता हूं।
ईसाईयों पर अत्याचार बड़ा मुद्दा
उमेश कुमार पोटाई ने ईसाई आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार को अपना सबसे बड़ा मुद्दा बताया। उनका कहना था कि नारायणपुर में धर्मान्तरण के नाम पर आदिवासी ईसाईयों को बहुत परेशान किया जा रहा है। इस दौरान न तो सरकार न ही विपक्ष की तरफ से हमें कोई सहयोग मिला।
ऐसी मुसीबत के समय सिर्फ सीपीआई पार्टी के लोग ही हमारा साथ देने के लिए आगे आए हैं। ऐसे में हम जैसे युवाओं के लिए यह जरुरी हो जाता है कि वोट करते वक्त हम इस बात को ध्यान में रखें कि किसने हमारा साथ दिया है।
इस चुनाव में बस्तर में भाजपा धर्मान्तरण के मुद्दे को हवा देने में लगी है।
(छत्तीसगढ़ से पूनम मसीह की रिपोर्ट।)
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