जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों का उभरता परिदृश्य

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जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने का इन दोनों डिवीजन पर बहुत बुरा असर पड़ा है। भाजपा ने उसका अपनी साम्प्रदायिक राजनीति के लिए फायदा उठाया। ब्रिटिश राज में प्रिन्सली स्टेट रहे कश्मीर का भारत में विलय का आधार यही धारा थी। भाजपा की सरकारों ने बाद में इस धारा के असर को कमजोर करना शुरू कर दिया। भारत के संविधान के तहत अन्य राज्यों को जो भी अधिकार मिले कश्मीरियों के अधिकार उससे भी कमतर होते गए। भाजपा के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के कदमों से वहां कोई न अलग विधान रहा और न ही कोई मुख्यमंत्री रहा।

मोदी सरकार ने कश्मीर के बहुत लोगों को लम्बे समय तक जेल में बंद कर दिया गया। उनको चुनावों में अपने प्रतिनिधि चुनने के लोकतान्त्रिक अधिकार से वंचित कर दिया गया। ऐसे में कश्मीर के लोगों के लिए धारा 370 का भावनात्मक महत्व ही रह गया था। इससे कश्मीरी जनता में भारत से अलगाव की भावना उत्पन्न हो गई।

मोदी सरकार दावा करती रही है कि धारा 370 कश्मीर से हटाने से वहां आतंकवाद की कमर टूट गई पर वास्तविकता यह है कि उसके बाद के 32 माह में आतंकी हिंसा में 70 लोग मारे गए। इन हिंसा में सुरक्षा बालों के भी 52 जवान मारे गए। आतंकवादियों ने कश्मीर के बाद जम्मू डिवीजन के क्षेत्रों में भी वारदात किए । ऐसे वारदात से निपटने के लिए जम्मू और कश्मीर दोनों डिवीजन के सभी क्षेत्रों में सेना के जवान चप्पे चप्पे पर तैनात कर दिए गए।

मोदी सरकार समझ ही नहीं सकी कि कश्मीरी लोगों का विश्वास हासिल किए बिना ऐसे वारदात को रोकने के लिए जरूरी माहौल नहीं बन सकता है। बहुत बाद में मोदी सरकार को समझ आई कि वहां स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करना जरूरी है। पर अभी भी वह कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करना नहीं चाहती है। मोदी सरकार से कश्मीरियों का अलगाव इतना बढ़ गया कि भाजपा को पिछले लोक सभा चुनावों में खड़ा करने के लिए आसानी से प्रत्याशी नहीं मिले। प्रधानमंत्री मोदी 2019 के लोक सभा चुनावों के 5 वर्ष बाद वहां दौरे पर गए!

निर्वाचन क्षेत्रों के नए सिरे से परिसीमन के बाद

निर्वाचन क्षेत्रों के नए सिरे से डिलिमिटेशन के बाद विधानसभा के लिए जम्मू डिवीजन में 43 सीटें कर दी गईं और सदन में विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए दो, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लोगों के लिए दो और महिलाओं के मनोनीत एक सीट की व्ययवस्था कर कर दी गई। इस तरह सदन की कुल 48 सीटें हो गईं। यह विधान सभा में कश्मीर डिवीजन के क्षेत्रों के लिए तय 47 सीटों से एक ज्यादा है। इस व्यवस्था ने कश्मीर के लोगों को और भी भड़का दिया है।

जम्मू डिवीजन के 34 निर्वाचन क्षेत्रों में हिंदू समुदाय के लोगों का वर्चस्व है। लोक सभा के 2024 के चुनावों में इनमे से 29 क्षेत्रों में भाजपा और दो में कांग्रेस आगे रही थी। भाजपा जम्मू डिवीजन पुंछ क्षेत्र के लोगों को ‘पहाड़ी समुदाय’ का दर्जा देकर और गुज्जर मुस्लिम समुदाय के नेता चौधरी जुल्फिकार अली को अपने पाले में करके नया दांव चला है। लोक सभा के 2024 के चुनावों में भाजपा को 29, नेशनल कांफ्रेंस को 34, कांग्रेस को 7, पीडीपी को 5, इंजीनियर रशीद की पार्टी को 14 और सज्जाद लोन की पार्टी को एक विधान सभा खंड में बढ़त मिली थी।

सीएसडीएस सर्वे

जम्मू कश्मीर में सी. एस. डी. एस. के हालिया सर्वे के अनुसार वहां के 35 फीसद चाहते हैं कि अब राहुल गांधी भारत के प्रधानमंत्री बनें जबकि 27 प्रतिशत वोटर नरेंद्र मोदी के पक्ष में हैं। अभी साफ नहीं है कि कांग्रेस की अगुवाई के इंडिया अलायंस में शामिक दल कैसे चुनाव लड़ेंगे। नेशनल कांफ्रेंस ने अपने बूते पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी।

महबूबा मुफ्ती की पीडीपी ने इसे ‘गुपकार समझौता’ की भावना के खिलाफ कहा है। वैसे नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के बीच सीटों का कुछ तालमेल हो जाने की संभावना है। कश्मीर की लगभग सभी पार्टियां धारा 370 को चुनावी मुद्दा बना रही हैं। कांग्रेस ने जम्मू -कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाली को अपना मुख्य मुद्दा बनाया है। मोदी सरकार के शासन में लोकतंत्र की तबाही सभी विपक्षी दलों का मुद्दा है।

कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच गठबंधन

जम्मू -कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच गठबंधन होने की खबरें भी मिली है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर विधान सभा चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाहती है और इसके लिए दोनों के बीच बातचीत चल रही है। नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के नेताओं ने गठबंधन के बारे में श्रीनगर में बैठक की। कांग्रेस कश्मीर घाटी के 12 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ना चाहती है और उसने नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए जम्मू डिवीजन में 12 निर्वाचन क्षेत्र छोड़ने की पेशकश की है।

कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला से उनके श्रीनगर आवास जाकर भेंट की जिसके दौरान इस पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी मौजूद थे। बताया जाता है कि उमर अब्दुल्ला गठबंधन के तहत कांग्रेस के लिए 25 से 30 सीटें छोड़ने तैयार हैं ।

पर कांग्रेस विधान सभा की कुल 90 में से 40 सीटें मांग रही है। संकेत हैं कि इस गठबंधन के तहत कांग्रेस जम्मू में और नेशनल कॉन्फ्रेंस श्रीनगर में ज्यादा क्षेत्रों में चुनाव लड़ेगी। सीपीएम के पूर्व विधायक यूसुफ तारिगामी के लिए एक सीट दी जाएगी। कांग्रेस चाहती है कि इंडिया अलायंस बना रहे इसके लिए पीडीपी को भी गठबंधन में शामिल किया जाए। लेकिन उमर अब्दुल्ला इसके खिलाफ हैं। उनका कहना है कि महबूबा मुफ्ती के भाजपा के साथ विगत में सरकार बना लेने से उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

भाजपा की जम्मू-कश्मीर इकाई के अध्यक्ष रविंदर रैना

नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच गठबंधन की बातचीत की खबरों पर भाजपा की जम्मू-कश्मीर इकाई के अध्यक्ष रविंदर रैना ने तंज कसते हुए कहा कि कल तक नेशनल कॉन्फ्रेंस दावा कर रही थी कि उसका किसी के साथ गठबंधन नहीं होगा। पर अब नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस को रातों-रात ऐसा कौन सा डर आ गया कि वे एक-दूसरे से हाथ मिलाने को मजबूर हो गए।

नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस द्वारा घोषित गठबंधन से साफ पता चलता है कि इस गठबंधन में शामिल होने वाले राजनीतिक दल हार से डरे हुए हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने भाजपा से डर के मारे हाथ मिला लिया है। पर वे चाहे जितने भी गठबंधन कर लें उनको विधान सभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ेगा।

निर्वाचन आयोग का चुनाव कार्यक्रम

निर्वाचन आयोग ने विधान सभा चुनावों के लिए वोटिंग तीन चरणों में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को कराने और उनकी गिनती 4 अक्टूबर को सुबह शुरू करने का कार्यक्रम बनाया है। सभी निर्वाचन क्षेत्रों की वोट काउंटिंग पूरी होने के बाद 4 अक्टूबर की शाम तक परिणाम घोषित कर देने की संभावना है।

(चंद्र प्रकाश झा स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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